Move to Jagran APP

मिलावटी दूध बेचने का आरोप झेल रहे दूधवाले को 40 साल बाद मिला न्याय, सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी

अभियोजन पक्ष के अनुसार दूध के तीन नमूनों को एक स्वतंत्र गवाह की उपस्थिति में तीन सीलबंद बोतलों में एकत्र किया गया था।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 01 Aug 2019 01:24 AM (IST)Updated: Thu, 01 Aug 2019 01:24 AM (IST)
मिलावटी दूध बेचने का आरोप झेल रहे दूधवाले को 40 साल बाद मिला न्याय, सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी
मिलावटी दूध बेचने का आरोप झेल रहे दूधवाले को 40 साल बाद मिला न्याय, सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी

नई दिल्ली, प्रेट्र। मिलावटी दूध बेचने के आरोप में 40 साल से अदालतों का चक्कर काट रहे एक दूध वाले को अंतत: बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया। शीर्ष अदालत ने दो जून 1987 के मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले को रद कर दिया, जिसमें गाजियाबाद निवासी विजेंद्र को खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के तहत दोषी ठहराते हुए 1,000 रुपये जुर्माने के साथ ही छह महीने जेल की सजा सुनाई गई थी। विजेंद्र अपील के दौरान जमानत पर बाहर था। कोर्ट ने 1988 के गाजियाबाद सत्र न्यायालय के आदेश और 9 दिसंबर, 2014 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को भी रद कर दिया है, जिसमें उसकी सजा को बरकरार रखा गया था।

loksabha election banner

जस्टिस आर भानुमति और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि दूधवाले के संबंध में सरकारी एजेंसी द्वारा जो रिपोर्ट सौंपी गई थी, उसके समय को लेकर विवाद है। ऐसी स्थित में उसे कोलकाता स्थित केंद्रीय खाद्य प्रयोगशाला का संदर्भ लेने का अधिकार है। शीर्ष अदालत ने एक स्वतंत्र गवाह के बाद में मुकरने का भी संज्ञान लिया। पीठ ने कहा कि संदेह से परे अपीलकर्ता के अपराध को साबित नहीं किया जा सका है। ऐसी स्थिति में उसे दोषी ठहराया जाना न्यायसंगत नहीं होगा।

क्या है मामला

शिकायतकर्ता आरसी कंसल भोजपुर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बतौर खाद्य निरीक्षक के पद पर तैनात थे। 16 अक्टूबर, 1979 को लगभग आठ बजे के आसपास उन्होंने देखा कि उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के पिलखुवा स्थित अचलगढ़ी रोड पर विजेंद्र नाम का एक दूधवाला भैंस का दूध बेचने जा रहा है। जब खाद्य निरीक्षक ने उससे दूध बेचने का लाइसेंस मांगा तो पता चला कि विजेंद्र के पास वह नहीं है।

अभियोजन पक्ष के अनुसार दूध के तीन नमूनों को एक स्वतंत्र गवाह की उपस्थिति में तीन सीलबंद बोतलों में एकत्र किया गया और एक बोतल को जांच के लिए 17 अक्टूबर, 1979 को लखनऊ भेजा गया। बाकी दो बोतलें मुख्य चिकित्सा अधिकारी गाजियाबाद कार्यालय भेजी गई।

लखनऊ से आई रिपोर्ट के मुताबिक भैंस के दूध के नमूने में वसा की मात्रा में 12 फीसद की कमी थी और गैर-वसायुक्त ठोस (एसएनएफ) पदार्थो में 27 फीसद की कमी थी। ऐसे में यह निष्कर्ष निकाला गया कि नमूना मिलावटी था। इसके बाद विजेंद्र के खिलाफ खाद्य अपमिश्रण निरोधक कानून के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अब खबरों के साथ पायें जॉब अलर्ट, जोक्स, शायरी, रेडियो और अन्य सर्विस, डाउनलोड करें जागरण एप


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.