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पाकिस्तान में आतंकियों को सिखाए जाते हैं हिंदू रीति-रिवाज

नई दिल्ली [जागरण संवाददाता]। पाकिस्तान में चल रहे आतंकी शिविरों में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे युवाओं को हिंदू रीति-रिवाज से भी परिचय कराया जा रहा है। आइएसआइ इन्हें बाकायदा भारतीय लहजे में बातचीत और आसानी से लोगों में घुल-मिल जाने की कला भी सिखा रही है। इसके अलावा 26/11 जैसे किसी बड़े हमले के लिए आतंकियों के हिंदू नाम

By Edited By: Published: Tue, 20 Aug 2013 08:32 AM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2013 11:53 AM (IST)

नई दिल्ली [जागरण संवाददाता]। पाकिस्तान में चल रहे आतंकी शिविरों में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे युवाओं को हिंदू रीति-रिवाज से भी परिचय कराया जा रहा है। आइएसआइ इन्हें बाकायदा भारतीय लहजे में बातचीत और आसानी से लोगों में घुल-मिल जाने की कला भी सिखा रही है। इसके अलावा 26/11 जैसे किसी बड़े हमले के लिए आतंकियों के हिंदू नाम रखने की कोशिश भी होती है। आइएसआइ की सलाह पर इंडियन मुजाहिदीन [आइएम] ने भी यह तरीका अपनाया है। इसके पीछे सोच है कि वे भारतीय समाज में आसानी से घुलमिल जाएंगे। वहीं कोई आतंकी किसी हमले में मारा जाए तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे भारत का अंदरूनी मसला करार दिया जाए। जांच एजेंसियों ने लश्कर आतंकी टुंडा से इस बाबत कई जानकारियां प्राप्त की हैं।

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टुंडा पर लगा था लश्कर के फंड के दुरुपयोग का आरोप

लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी शिविरों में सर्वाधिक नवयुवक पाकिस्तान में पंजाब प्रांत से आते हैं। टुंडा ने बताया कि मदरसों में बचपन से ही इन युवकों के दिल-ओ-दिमाग में जेहाद का मुलम्मा इस कदर चढ़ाया जाता है कि वे इस्लाम के नाम पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो जाते हैं। इन्हें दिहाड़ी मजदूर से भी कम मजदूरी मिलती है। उन्हें रहने-खाने की सुविधा के साथ अधिकतम चार हजार रुपये तक दिए जाते हैं।

टुंडा का आका था आइएसआइ का पूर्व प्रमुख

पाकिस्तान के मुजफ्फराबाद, लाहौर, पेशावर, इस्लामाबाद, रावलपिंडी, कराची, मुल्तान, सियालकोट और गुंजरावाला समेत कई शहरों में लश्कर व जमात-उद-दावा के दफ्तर हैं। यहां पर आतंकी बनाने के लिए नवयुवकों की भर्ती का काम भी होता है। जेहाद के लिए काम करने वाले युवा विभिन्न मदरसों तथा ग्रामीण इलाकों से यहां पहुंचते हैं। भर्ती लेने से पूर्व युवकों की पृष्ठभूमि का पता लगाया जाता है।

टुंडा लश्कर के प्रशिक्षिण शिविरों के विषय में भी विस्तार से जानकारी दे रहा है। उसने बताया कि पंजाब प्रांत के मुरीदके में लश्कर मुख्यालय में कई बार वह लश्कर चीफ हाफिज सईद व लश्कर कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी से मिला है। कई बार उसने प्रशिक्षण शिविर में आतंकियों के समक्ष जेहादी भाषण भी दिए। नए भर्ती होने वाले युवाओं का हृदय परिवर्तन करने के लिए उलेमाओं की मदद से 42 दिन का 'बैत-उर-रिजवान' कोर्स चलाया जाता है। इसमें जेहादी विचारक भाग लेते हैं। इसके बाद हथियारों का प्रशिक्षण देने के लिए तीन माह का 'दौरा ए आम' तथा विस्फोट करने, हमला करने या फिदायीन हमले में विशेषता हासिल करने के लिए 21 दिन का 'दौरा-ए-खास' कोर्स कराया जाता है।

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