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सीमांत गांधी की स्मृति भी हुई लहूलुहान

आतंकियों के हमले का शिकार बना बाशा खान विश्वविद्यालय खान अब्दुल गफ्फार खान की स्मृति में 2012 में बना था।

By Sachin BajpaiEdited By: Published: Wed, 20 Jan 2016 08:11 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jan 2016 08:20 PM (IST)
सीमांत गांधी की स्मृति भी हुई लहूलुहान

नई दिल्ली, जागरण न्यूज नेटवर्क । आतंकियों के हमले का शिकार बना बाशा खान विश्वविद्यालय खान अब्दुल गफ्फार खान की स्मृति में 2012 में बना था। महात्मा गांधी के सहयोगी, अनुयायी और स्वतंत्रता सेनानी खान अब्दुल गफ्फार खान को बादशाह खान के नाम से भी जाना जाता था। वह भारत में सीमांत गांधी के नाम से मशहूर थे, तो पाकिस्तान में बाशा खान के नाम से। भारत सरकार ने 1987 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था। आतंकियों ने उनके नाम पर बने विश्वविद्यालय में ठीक उसी दिन धावा बोला जिस दिन (20 जनवरी) उनकी पुण्यतिथि थी। बुधवार को उनकी 28वीं पुण्य तिथि थी। इस अवसर पर विश्वविद्यालय ने उनके स्मरण और सम्मान में एक मुशायरे का आयोजन किया था।

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6 फरवरी, 1890 को जन्मे खान अब्दुल गफ्फार खान ने आजादी की लड़ाई के दौरान खुदाई खिदमतगार नामक एक आंदोलन चलाया था। इसका मकसद अहिंसा के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता का विरोध करना था। वह पेशावर के उन बिरले नेताओं में से थे, जिन्होंने भारत विभाजन का सख्त विरोध किया था। उन्हें इसका श्रेय जाता है कि उन्होंने सख्त मिजाज पख्तूनों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। वह जेहाद के सच्चे रूप यानी अपने अंतस को संवारने वाले नेता के तौर पर जाने जाते थे। जिस धरती पर उन्होंने अपने लोगों को अहिंसा के रास्ते पर चलना सिखाया, वह आज बर्बर आंतक के लिए जानी जाती है। वह देश के विभाजन से हताश-निराश थे। उन्हें पाकिस्तानी शासकों की रीति-नीति पसंद नहीं थी और वह उनका विरोध भी करते रहते थे। इसके चलते उन्हें कई बार जेल में डाला गया और पेशावर जाने पर पाबंदी भी लगाई गई।

सीमांत गांधी का निधन 20 जनवरी 1988 को हुआ। निधन के कुछ समय पहले वह इलाज के लिए भारत में थे। उन्होंने इच्छा जताई थी कि उन्हें अपने घर जलालाबाद, अफगानिस्तान में दफनाया जाए। लोग उनके जनाजे में शामिल हो सकें, इसके लिए अफगानिस्तान में मुजाहिदीनों से लड़ रहे सोवियत संघ की सेना ने एक दिन के लिए युद्धविराम घोषित किया और पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा को खोल दिया गया। इस इलाके में कभी किसी के जनाजे में उतने लोग शामिल नहीं हुए जितने अहिंसा के दूत खान अब्दुल गफ्फार खान के जनाजे में उमड़े।


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