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    मीडिया दिव्यांगों को या तो नायक या फिर दया का पात्र दिखाता है, इससे आगे बढ़ने की जरूरत है

    Updated: Mon, 22 Sep 2025 09:34 PM (IST)

    दिव्यांगता-समावेशी रिपोर्टिंग पर एक कार्यशाला में मीडिया से दिव्यांगजनों को नायक या दया का पात्र दिखाने से आगे बढ़ने का आग्रह किया गया। राइजिंग फ्लेम की निधि गोयल ने दिव्यांगों की आवाज बुलंद करने की दिशा में मीडिया के संवेदीकरण को महत्वपूर्ण बताया। संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य संगठनों द्वारा कार्यशाला किया गया आयोजित।

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    दिव्यांगजनों की रिपोर्टिंग मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला में उठी आवाज (फोटो सोर्स- जेएनएन)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। अक्सर मीडिया हम विकलांग लोगों को या तो नायक या फिर दया का पात्र दिखाता है। हमें इन दोनों से आगे बढ़ने की जरूरत है। ये आवाज सोमवार को दिव्यांगता- सामवेशी रिपोर्टिंग पर मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला में उठी।

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    दिव्यांगजनों के बारे में रिपोर्टिंग करते समय किस तरह की संवेदनशीलता होनी चाहिए। दिव्यांगजन के बारे में जो घिसी-पिटी सोच है जो बातचीत के दौरान दिखाई देती है या फिर कई बार फिल्मों में भी नजर आती है इसे समाप्त किये जाने की जरूरत पर कार्यशाला में जोर दिया गया। ये बताया गया कि मीडिया में धारणाओं को आकार देने और सामाजिक परिर्वतन लाने की अपार शक्ति है।

    किसने कार्यशाला किया आयोजित

    दिव्यांगता समावेशी रिपोर्टिंग पर यह एक दिवसीय कार्यशाला भारत में संयुक्त राष्ट्र संघ, यूएन वोमेन और गैर सरकारी संगठन राइसिंग फ्लेम व इंटरनेशनल पर्पल फेस्ट ने मिल कर दिल्ली स्थित यूनाइटेड नेशन्स हाउस में आयोजित हुई। इस कार्यशाला को भारत सरकार के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग, गोवा के दिव्यांगजन राज्य आयुक्त, भारत में संयुक्त राष्ट्र और यूएन वोमेन (संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था) ने मिलकर आयोजित किया और इसमें भाग लिया।

    द्विव्यांगजनों की रिपोर्टिंग में मीडिया के संवेदीकरण पर बोलते हुए राइसिंग फ्लेम की संस्थापक और कार्यकारी निदेशक निधि गोयल जो कि स्वयं दृष्टिबाधित दिव्यांग हैं, ने कहा कि अक्सर मीडिया हम विकलांग लोगों को या तो नायक या फिर दया का पात्र दिखाता है। हमें हमें इन दोनों से आगे बढ़ने की जरूरत है।

    दिव्यांगों की आवाज होगी बुलंद

    उन्होंने कहा कि राइसिंग फ्लेम की स्पाटलाइट मीडिया कार्यशाला, दिव्यांगों की आवाजों को बुलंद करने की दिशा में एक कदम है। चूंकि मीडिया सार्वजनिक समझ को आकार देने और नीति को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए इन कार्यशालाओं का आयोजन यह सुनिश्चित करता है कि दिव्यांगता को सही तरीके से गरिमा और अधिकार आधारित दृष्टिकोण से कवर किया जाए।

    हालांकि उन्होंने माना कि दिव्यांगजनों के बारे में सोच पहले से बदली है और बहुत कुछ अंतर आ चुका है। कानून की भी भाषा बदली है। इस मौके पर भारत में यूएन के रेजीडेंट क्वार्डिनेटर शोम्बी शार्प ने कहा कि मीडिया में धारणाओं को आकार देने और सामाजिक परिवर्तन लाने की अपार शक्ति है।

    गोवा में आयोजित होगा फेस्ट

    केद्र सरकार के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के सचिव राजेश अग्रवाल ने दिव्यांगजनों के अक्टूबर में गोवा में आयोजित होने वाले अंतर्राष्ट्रीय पर्पल फेस्ट की चर्चा करते हुए कहा कि यह सिर्फ एक उत्सव नहीं है, बल्कि मानसिकता और व्यवस्था को बदलने का एक आंदोलन है।

    वैश्विक विशेषज्ञों , नव प्रर्वतकों, नीति निर्माताओं और समुदायों को एक साथ लाकर, यह फेस्ट यह प्रदर्शित करेगा कि कैसे समावेशी सोच और सार्वभौमिक डिजाइन हमारे समाजों को नया रूप दे सकते हैं। यहां प्रस्तुत नये शोध, अग्रणी तकनीकें और रचनात्मकता विचार दिव्यांग व्यक्तियों के लिए सशक्तिकीरण, स्वतंत्रता और समान अवसरों के द्वार खोलेंगे।