उभरते हुए संक्रमणों पर नियंत्रण के उपाय, मच्छर जनित समस्या का समाधान
Zika Virus जीका जैसे विषाणुओं के डीएनए में विकासवादी प्रवृत्तियों पर एक व्यवस्थित शोध की जरूरत है जिसके लिए कोविड के संदर्भ में विकसित की गई आनुवंशिक अनुक्रमण यानी डीएनए सिक्वेंसिंग क्षमता का इस्तेमाल किया जा सकता है।
डा. यूसुफ अख्तर। इस धरती पर वायरस यानी विषाणु सर्वव्यापी हैं। हालांकि इनमें से अधिकांश हानिकारक नहीं होते हैं, लेकिन कोरोना विषाणु की तरह हाल के वर्षो में कुछ अन्य विषाणु मानवीय अस्तित्व के लिए बहुत ही घातक साबित हुए हैं। हाल ही में जीका वायरस का प्रकोप एक बार फिर से बढ़ता दिख रहा है। दरअसल पहली बार यह वर्ष 1947 में युगांडा के जीका जंगल में सामान्य बंदरों में पाया गया था। फिर कुछ वर्षो के बाद मनुष्यों में पाया गया। वर्ष 1947 के बाद के करीब छह दशकों में एशिया और उष्णकटिबंधीय अफ्रीका में यह केवल 14 मनुष्यों में पाया गया था।
जीका विषाणु का सबसे पहला प्रकोप वर्ष 2007 में प्रशांत महासागर में यैप द्वीप में देखा गया था, जो कि माइक्रोनेशिया का एक संघीय राज्य है। मार्च 2015 में ब्राजील में जब इसका प्रकोप व्यापक हुआ तो एक बार फिर इस विषाणु के प्रति वैश्विक चिंता बढ़ी। उस समय यह मध्य और दक्षिण अमेरिका समेत आसपास के कई अन्य देशों में तेजी से फैल रहा था। इस प्रकोप से बहुत से अजन्मे बच्चों में माइक्रोसिफली पाई गई। यह एक ऐसी स्थिति है जिसके परिणामस्वरूप भ्रूण में मस्तिष्क का विकास अवरुद्ध हो जाता है।
एक फरवरी, 2016 को जीका विषाणु के प्रकोप को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अंतरराष्ट्रीय चिंता का एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित कर दिया गया जो किसी बीमारी को महामारी के रूप में घोषित किए जाने से एक कदम पहले का वर्गीकरण है। वर्ष 2015 और 2017 के बीच विश्व भर में लगभग साढ़े पांच लाख संदिग्ध और करीब पौने दो लाख पुष्टि वाले जीका विषाणु के मामले सामने आए थे। हालांकि 2017 के मध्य तक इसका प्रकोप कुछ कम हो गया, लेकिन 2019 के अंत तक दुनिया भर में कम से कम 87 देशों से जीका विषाणु के संक्रमण के मामले सामने आए थे।
भारत में जीका का मामला : भारत में जीका विषाणु के संक्रमण का पहला प्रत्यक्ष मामला वर्ष 2017 में दर्ज किया गया था। हाल के दिनों में भारत में इसका खतरा किस प्रकार बढ़ गया है इसे महज एक तथ्य से समझा जा सकता है कि पिछले करीब एक माह के दौरान केवल कानपुर में ही इसके सौ से अधिक मामलों की पुष्टि हुई है। उल्लेखनीय है कि जीका विषाणु मुख्य रूप से एक मच्छर जनित संक्रमण है, जो चिकनगुनिया और डेंगू फैलाने वाले एडीज मच्छरों द्वारा फैलाया जाता है। इस बीमारी के लक्षण अन्य सामान्य विषाणु संक्रमण जैसे ही हैं। यदि किसी क्षेत्र में जीका विषाणु का संक्रमण फैला है, किसी व्यक्ति ने हाल में ऐसे क्षेत्र की यात्र की है, या एक पुष्ट संक्रमण वाले व्यक्ति के साथ हाल में संपर्क में आया है, तो ऐसे व्यक्तियों में संक्रमण का संदेह बढ़ जाता है। इस बीमारी को रोकने के लिए अभी कोई भी पंजीकृत टीका उपलब्ध नहीं है और कोई विशिष्ट दवाई भी उपलब्ध नहीं है।
इसी प्रकार से नए विषाणुओं की अगली किस्त में अभी पिछले सप्ताह ही केरल के वायनाड जिले में नोरो विषाणु के संक्रमण की जानकारी सामने आई है। दरअसल यह एक अत्यधिक संक्रामक और पेट में बीमारी पैदा करने वाले विषाणु हैं। हालांकि जीका और नोरो विषाणुओं के ताजा प्रकोप की वर्तमान रिपोर्ट भारत में नागरिकों के लिए तत्काल चिंता का विषय नहीं है। लेकिन यह जानते हुए कि जीका विषाणु को फैलाने के लिए जिम्मेदार एडीज मच्छर भारत के सभी राज्यों में मौजूद हैं, इसलिए पूरी तरह से सतर्क रहने की आवश्यकता है। चूंकि नोरो विषाणु विशुद्ध रूप संक्रमित पानी और खाने से फैलता है, इसलिए इससे बचने के लिए साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
हाल के दिनों में सामने आए रोगों के प्रकोपों से संबंधित आंकड़ों का उपयोग सरकार को देश में रोग निगरानी प्रणाली और इस बारे में लोगों की जानकारियों को दुरुस्त करने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। पिछले करीब 18 महीनों में विकसित की गई कोविड प्रयोगशाला क्षमता को अन्य उभरते विषाणु संक्रमणों के खिलाफ बेहतर उपयोग करने की आवश्यकता है। वैसे 2015 में ब्राजील में होने वाले जीका विषाणु के प्रकोप का कारण म्यूटेशन के द्वारा उसका एक विशेष बदला हुआ रूप था जिसके बारे में यह माना जाता है कि उसकी उत्पत्ति अमेरिका से हुई थी। चूंकि यह दक्षिण एशियाई वंश से उत्पन्न हुआ था, इसलिए इसे ही माइक्रोसिफेली और अन्य मस्तिष्क एवं तंत्रिका विकार की उच्च घटनाओं के लिए जिम्मेदार माना गया था। वहीं भारत में जीका विषाणु के पिछले सभी प्रकोप दक्षिण-पूर्व एशियाई वंश के कारण हुए हैं, और देश में माइक्रोसिफेली का कोई मामला अभी तक सामने नहीं आया है।
यह देखते हुए कि कई राज्यों ने पहली बार जीका और नोरो विषाणु की सूचना दी है, इनके लिए परीक्षण किट के साथ निगरानी और प्रयोगशालाओं को लैस करने की आवश्यकता है। उन क्षेत्रों में जहां मामले दर्ज किए जाते हैं, सक्रिय मामले के निष्कर्ष और निगरानी समेत मच्छर नियंत्रण उपाय, प्रजनन स्थलों का उन्मूलन और जन जागरूकता अभियानों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके साथ-साथ सार्वजनिक स्थानों पर मिलने वाली खाने-पीने की चीजों पर जो भी नियामक बने हुए हैं, उनको सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।
यह राज्यों की सरकारों और नगर निगमों के बीच संक्रामक रोगों के खिलाफ संयुक्त कार्ययोजना विकसित करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यो के लिए जिम्मेदारियों को साझा करने के लिए समन्वित कार्रवाई सुनिश्चित करने का भी समय है। नए-नए संक्रामक रोगों का एक बार उभरना और उनका फिर से भविष्य में उभरना, इसकी आशंका हमेशा बनी रहेगी। ऐसे में एक मजबूत सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं स्वच्छता प्रणाली, महामारी विज्ञान के सिद्धांतों और आंकड़ों के कुशल उपयोग के साथ हम इन बीमारियों के दुष्प्रभावों को कम अवश्य कर सकते हैं।पिछले लगभग पौने दो वर्षो से समूचा विश्व वायरस जनित कारणों से महामारी की चपेट में है। हालांकि हमारा देश अब धीरे-धीरे इससे उबरता हुआ दिख रहा है, लेकिन कुछ अन्य वायरस भी हमलावर होते दिख रहे हैं। ऐसे में नए उभर रहे जीका संक्रमण को समग्रता में समझना होगा।
[असिस्टेंट प्रोफेसर, बायोटेक्नोलाजी, बीआर अंबेडकर विवि, लखनऊ]
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