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    'नाबालिग से शादी करके दुष्कर्म के आरोपों से मुक्त नहीं हो सकते', हाईकोर्ट ने मामला रद करने से किया इनकार

    By Agency Edited By: Jeet Kumar
    Updated: Wed, 01 Oct 2025 07:14 AM (IST)

    बांबे उच्च न्यायालय ने एक 29 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ दुष्कर्म का मामला रद करने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने कहा है कि उसे केवल इसलिए पॉक्सो अधिनियम के तहत आरोपों से मुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने नाबालिग लड़की से शादी कर ली और अब उनका एक बच्चा भी है। बांबे हाईकोर्ट ने मामला रद करने से इनकार कर दिया।

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    'नाबालिग से शादी करके दुष्कर्म के आरोपों से मुक्त नहीं हो सकते', बांबे हाईकोर्ट (सांकेतिक तस्वीर)

     पीटीआई, मुंबई। बांबे उच्च न्यायालय ने एक 29 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ दुष्कर्म का मामला रद करने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने कहा है कि उसे केवल इसलिए पॉक्सो अधिनियम के तहत आरोपों से मुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि उसने नाबालिग लड़की से शादी कर ली और अब उनका एक बच्चा भी है।

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    उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी फाल्के और न्यायमूर्ति नंदेश देशपांडे ने 26 सितंबर को पारित आदेश में आरोपित व्यक्ति के इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उसने 17 वर्षीय लड़की के साथ सहमति से संबंध बनाए थे और शादी का पंजीकरण भी तभी कराया जब वह 18 वर्ष की हो गई थी।

    अदालत ने कहा कि नाबालिगों के बीच या उनके साथ संबंध में तथ्यात्मक सहमति यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पाक्सो) अधिनियम के प्रविधानों के तहत अप्रासंगिक है।

    अदालत ने आरोपित और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा दायर उस आवेदन को खारिज कर दिया जिसमें इस साल जुलाई में अकोला पुलिस द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी को रद करने की मांग की गई थी। उन पर भारतीय न्याय संहिता, पॉक्सो अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था।

    अभियोजन पक्ष के अनुसार, जब पीड़िता की शादी हुई तब उसकी उम्र 17 साल थी और इसी साल मई में उसने एक बच्चे को जन्म दिया। पीड़िता का विवाह आरोपित से तब कराया गया जब उसके परिवार को पता चला कि आरोपित ने उसका यौन उत्पीड़न किया है।

    आरोपित ने दावा किया कि उसने लड़की के साथ सहमति से संबंध बनाए और लड़की 18 साल की होने के बाद उनकी शादी कानूनी रूप से पंजीकृत हुई थी। उसने यह भी दावा किया कि अगर उस पर मुकदमा चलाया गया और उसे सजा दी गई तो पीड़िता और उसके बच्चे को नुकसान होगा और उन्हें समाज में स्वीकार नहीं किया जाएगा। लड़की भी अदालत में पेश हुई और उसने कहा कि उसे एफआइआर रद करने पर कोई आपत्ति नहीं है।

    उच्च न्यायालय ने कहा कि अभियुक्त और पीडि़त लड़की का कहना है कि विवाह मुस्लिम रीति-रिवाजों और धर्म के अनुसार हुआ था, लेकिन तथ्य यह है कि उस समय उसकी आयु 18 वर्ष से कम थी।

    अदालत ने कहा कि पीडि़ता ने जब बच्चे को जन्म दिया था, तब भी उसकी उम्र 18 साल नहीं थी। शादी के समय आरोपित की उम्र 27 साल थी और उसे यह समझना चाहिए था कि उसे लड़की के 18 साल का होने तक इंतजार करना चाहिए।

    पीठ ने कहा, ''सिर्फ इसलिए कि लड़की ने अब एक बच्चे को जन्म दिया है, हमारा मानना है कि आरोपितों के गैरकानूनी कृत्यों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।''