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महाराष्ट्र में मराठों के लिए आरक्षण का रास्ता साफ, फड़नवीस ने की घोषणा

मुख्यमंत्री फड़नवीस ने मराठा समुदाय को शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण देने की घोषणा कर दी है। मराठा समुदाय इसके लिए 1981 से ही संघर्षरत है। इस सरकार के आने के बाद यह आंदोलन और तेज हो गया था।

By TaniskEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 09:16 PM (IST)Updated: Mon, 19 Nov 2018 12:22 AM (IST)
महाराष्ट्र में मराठों के लिए आरक्षण का रास्ता साफ, फड़नवीस ने की घोषणा

मुंबई, राज्य ब्यूरो। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने मराठा समुदाय को शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण देने की घोषणा कर दी है। सोमवार से शुरू हो रहे विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में ही सभी औपचारिकताएं पूरी कर मराठों को आरक्षण दे दिया जाएगा। 

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विधानमंडल के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से ठीक पहले रविवार शाम हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में सरकार ने मराठों को शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण देने का निर्णय किया। इसके बाद ही पत्रकारों से बात करते हुए मुख्यमंत्री फड़नवीस ने कहा कि हमने महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिशें मान ली हैं।

मुंबई उच्चन्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एन.जी.गायकवाड की अध्यक्षता वाले आयोग ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट मुख्य सचिव डी.के.जैन को सौंप दी थी। सूत्रों के अनुसार रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य की 32 फीसद मराठा आबादी में 25 फीसद पिछड़ों के दायरे में आते हैं। इसलिए उन्हें शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण दिया जा सकता है। राज्य सरकार मराठों को यह आरक्षण पिछड़े वर्गों को मिल रहे आरक्षण से छेड़छाड़ किए बगैर देगी।

महाराष्ट्र में फिलहाल 52 फीसद आबादी को आरक्षण का लाभ मिल रहा है। सरकार मराठों को 16फीसद आरक्षण देना चाहती है। ऐसी स्थिति में आरक्षण सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 फीसद से काफी ऊपर पहुंच जाएगा। बता दें कि मराठा समुदाय लंबे से शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण की मांग करता रहा है। पिछली संप्रग सरकार 2014 में मराठों को 16 फीसद आरक्षण देने के लिए विधेयक भी लाई थी। लेकिन सरकार के इस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दिए जाने के बाद उच्चन्यायालय ने इस कानून के अमल पर रोक लगा दी थी।

बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने भी उच्चन्यायालय द्वारा लगाई गई रोक को हटाने से इंकार कर दिया था। इसके कारण वर्तमान सरकार ने मराठों को आरक्षण देने के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का सहारा लिया।माना जा रहा है कि उच्चन्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले आयोग की सिफारिश के बाद सरकार के लिए मराठों को आरक्षण देना आसान हो जाएगा।

बता दें कि मराठा समुदाय आरक्षण पाने के लिए 1981 से ही संघर्षरत रहा है। राज्य में फड़नवीस सरकार आने के बाद तो यह आंदोलन और तेज हो गया था। 2016 के बाद सूबे के सभी जिलों में पहले 58 शांतिपूर्ण रैलियां निकाली गईं। इसके बाद राज्य में हिंसक आंदोलन भी हुए। तभी दबाव में आकर मुख्यमंत्री फड़नवीस ने नवंबर तक आरक्षण का मसला सुलक्षा लेने का वायदा किया था। इसके बाद ही उन्होंने राज्य पिछड़ वर्ग आयोग से अपने काम में तेजी लाने का निवेदन किया।

समय पर काम पूरा करने के लिए आयोग को अतिरिक्त संसाधन भी मुहैया कराए गए। मराठा समुदाय को आरक्षण देना फड़नवीस सरकार के लिए राजनीतिक कारणों से भी जरूरी हो गया था। क्योंकि राज्य में 32 फीसद की आबादी वाला मराठा समुदाय राजनीतिक रूप से कांग्रेस एवं राष्ट्रवादी कांग्रेस का वोटबैंक माना जाता रहा है। जबकि फड़नवीस भाजपा नेतृत्व द्वारा दिए गए ब्राह्मण मुख्यमंत्री हैं। माना जा रहा है कि उनकी सरकार द्वारा मराठों को दिया गया आरक्षण भाजपा को राजनीतिक लाभ भी पहुंचाएगा।   


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