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    साल 2026 की समय सीमा से पहले ही माओवादी समस्या का हो जाएगा खात्मा, बातचीत के मूड में नहीं सरकार

    Updated: Mon, 13 Oct 2025 11:30 PM (IST)

    केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा मार्च 2026 तक माओवादी आंदोलन समाप्त करने के लक्ष्य के बावजूद, सुरक्षा अधिकारी इसे पहले ही खत्म होने की उम्मीद कर रहे हैं। शीर्ष माओवादी नेता वेणुगोपाल राव की सशस्त्र संघर्ष समाप्त करने की इच्छा आंदोलन के पतन का स्पष्ट संकेत है।

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    साल 2026 की समय सीमा से पहले ही माओवादी समस्या का हो जाएगा खात्मा (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश में माओवादी आंदोलन के खात्मे के लिए मार्च 2026 की समय सीमा तय की थी। हालांकि इस समय सीमा में अभी कुछ महीने बाकी हैं, लेकिन सुरक्षा अधिकारियों को भरोसा है कि यह समस्या इससे पहले ही समाप्त हो सकती है।

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    आंदोलन के पतन का स्पष्ट संकेत 70 वर्षीय मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ सोनू द्वारा लिखे गए पत्र से मिलता है, जो एक शीर्ष माओवादी नेता हैं। उन्होंने भाकपा-माओवादी को बचाने के लिए सार्वजनिक रूप से सशस्त्र संघर्ष को समाप्त करने की इच्छा जाहिर की थी।

    हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इस प्रस्ताव पर उन्हें सभी स्तरों का समर्थन प्राप्त है या नहीं। लेकिन, एक संदेश स्पष्ट है और वह यह है कि 1967 में शुरू हुआ यह आंदोलन जल्द ही समाप्त होने वाला है। राव ने अपने भूमिगत ठिकाने से आंदोलन से जुड़े सभी लोगों से माफी मांगी थी और कहा था कि अब परिस्थितियों के अनुसार बदलाव का समय आ गया है।

    हालांकि, नरेन्द्र मोदी सरकार अपने इस रुख पर अड़ी हुई है कि माओवादियों से कोई बातचीत नहीं होगी। इन अभियानों की निगरानी कर रहे केंद्रीय गृह मंत्री शाह का कहना है कि उनके लिए या तो आत्मसमर्पण करना या फिर मुठभेड़ में मारे जाना ही एकमात्र विकल्प है। माओवादियों के खिलाफ रणनीति बनाने वाले एक अधिकारी ने बताया कि जब राव का पत्र पहली बार सामने आया था, तब आगे की रणनीति पर चर्चा हुई थी।

    सरकार का स्पष्ट मानना था कि इस तरह के हथकंडे पहले भी अपनाए जा चुके हैं और इस बार सुरक्षा बल उनके झांसे में नहीं आने वाले। पहले, माओवादी जब भी नाकाम होते थे तो सरकार से बातचीत की अपील करते थे। इससे उन्हें संभलने का समय मिल जाता था और पिछली सरकारों को यह एहसास हो जाता था कि उन्हें बेवकूफ बनाया गया है।

    सुरक्षा विश्लेषकों का कहना है कि इस बार माओवादियों ने स्थिति को गलत समझा। जब 2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार सत्ता में आई थी तो माओवादियों समेत कई लोगों को लगा था कि यह ज्यादा दिन नहीं चलेगी। लेकिन, 2019 में जब सरकार दोबारा सत्ता में आई तभी माओवादियों ने सरकार को गंभीरता से लेना शुरू किया। तब से, माओवादियों के खिलाफ लड़ाई भीषण रही है।

    सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए न सिर्फ जवानों और गोलाबारी का इस्तेमाल किया, बल्कि उनको मुख्यधारा में लाने एवं उनके विकास के लिए भारी निवेश भी किया। इससे स्थानीय लोगों की सोच बदल गई और वे माओवादियों की आंख-कान नहीं रहे। यह माओवादी आंदोलन के लिए सबसे बड़े झटकों में से एक था, और आज कोई भी देख सकता है कि कितनी तेजी से उनका सफाया किया जा रहा है।

    अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि माओवादियों का आखिरी गढ़ 'बस्तर' जल्द ही ढह जाएगा। उन्होंने यह भी कहा, ''हमारा मानना है कि वेणुगोपाल राव वहीं छिपे हैं और उनका पत्र स्पष्ट संदेश देता है कि आंदोलन अपने अंतिम चरण में है।'' माओवादियों ने अतीत में कई सरकारें देखी हैं। इस समस्या से निपटने के लिए हमेशा एक ही रास्ता अपनाया गया है। हालांकि, इस बार तरीका बिल्कुल अलग है..और सरकार ने हार नहीं मानी है।