गणतंत्र दिवस पर हो सकती है नक्सल मुक्त भारत की घोषणा, सरकार ने कर ली तैयारी
माओवादी नेताओं के समर्पण के बाद, केंद्र सरकार 26 जनवरी 2026 तक भारत को माओवाद मुक्त घोषित करने की योजना बना रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने पहले 31 मार्च 2026 तक का लक्ष्य रखा था। वर्तमान में, छत्तीसगढ़ के बीजापुर, नाराणपुर और सुकमा जैसे कुछ ही जिले अत्यधिक प्रभावित हैं। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, और नक्सलियों में नेतृत्व का संकट भी है।

केवल तीन जिले इस समस्या से अत्यधिक प्रभावित बच गए हैं (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नीलू रंजन, जागरण, नई दिल्ली। माओवादियों के शीर्ष नेताओं समेत बड़ी संख्या में कैडर के समर्पण के बाद केंद्र सरकार 26 जनवरी 2026 को माओवाद मुक्त भारत की घोषणा कर सकती है। माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन लगी सुरक्षा एजेंसियां इसे संभव बनाने की कोशिश में जुट गई है। ध्यान देने की बात है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने माओवाद मुक्त भारत के लिए 31 मार्च 2026 की तारीख तय कर रखी है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए अगले एक से दो महीने में बाकी बचे नक्सलियों के एनकाउंटर में मार गिराए जाने या फिर समर्पण की संभावना बढ़ गई है। ऐसे में माओवाद मुक्त भारत के एलान के लिए 31 मार्च तक इंतजार की जरूरत नहीं पड़ेगी। उत्तरी बस्तर और अबूझमाड़ के माओवाद मुक्त होने की घोषणा के बाद केवल तीन जिले इस समस्या से अत्यधिक प्रभावित बच गए हैं।
सिर्फ चार जिले माओवादी हिंसा से प्रभावित
ये तीनों बीजापुर, नाराणपुर और सुकमा छत्तीसगढ़ के हैं। इसके अलावा अन्य चार जिले दंतेवाड़ा, गरियाबंद, कांकेर, मोहल्ला-मानपुर-अंबागढ़चौकी माओवाद से कम प्रभावित जिलों में हैं। छत्तीसगढ़ के बाहर सिर्फ चार जिले माओवादी हिंसा से प्रभावित बचे हैं। इनमें झारखंड का एक जिला पश्चिमी सिंहभूम, मध्यप्रदेश का एक जिला बालाघाट, महाराष्ट्र का एक जिला गढ़चिरौली और ओडिशा का एक जिला कंधमाल शामिल हैं।
जाहिर है अब सुरक्षा बलों को आने वाले महीने में इन्हीं जिलों में विशेष ध्यान केंद्रित करना है। इन जिलों में माओवादी गतिविधियों की खुफिया जानकारी जुटाने और उनके खिलाफ आपरेशन लांच करने पर काम शुरू हो गया है। आत्मसमर्पण करने वाले माओवादियों को कानून तथा संवैधानिक व्यवस्था की मुख्यधारा में आने का संदेश देने के लिए संविधान की प्रति उनके हाथों में थमाई जा रही है।
नक्सलियों में नेतृत्व का संकट भी खड़ा
सीमित होते क्षेत्र के अलावा नक्सलियों में नेतृत्व का संकट भी खड़ा है। वेणुगोपाल उर्फ भूपति के गढ़चिरौली में समर्पण के बाद माओवादी की शीर्ष इकाई पोलित ब्यूरो में केवल तीन सदस्य थिप्परी तिरूपति उर्फ देवजी, एम लक्ष्मण राव उर्फ गणपति और मिसिर बेसरा ही बचे हैं। इनमें देवजी के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन का सचिव है। मिसिर बेसरा झारखंड में हैं। गणपति लंबे समय तक महासचिव रहे, लेकिन बीमारी के कारण बाद में बसव राजू को महासचिव बना गया था। लेकिन गणपति अभी जिंदा है और बताया जा रहा है कि जिस मुठभेड़ में बसव राजू मारा गया, वहां गणपति भी मौजूद था, लेकिन बच निकला।
इसके अलावा सेंट्रल कमेटी में प्रोन्नत हुआ हिडमा और सबसे बड़ी सैन्य यूनिट बटालियन का प्रमुख कुलरी प्रसाद राव उर्फ चंद्रन्ना प्रमुख है। हिडमा भी बटालियन का प्रमुख रह चुका है। इसके अलावा ओडिशा और झारखंड में कुछ वरिष्ठ माओवादी सक्रिय है, लेकिन उनका प्रभाव और क्षमता दोनों सीमित है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मिल रही खुफिया जानकारी के मुताबिक बचे हुए शीर्ष नेता बटालियन के संरक्षण में है।
बटालियन में आटोमैटिक हथियारों से लैस 300 माओवादी कैडर हैं। फिलहाल बटालियन और उसके साथ रहने वाले शीर्ष नेताओं की गतिविधियां नहीं देखी जा रही है। माना जा रहा है कि वे छत्तीसगढ़ और तेलंगाना से सटे इलाके में कहीं छिपे हो सकते हैं। उन्हें ढूंढकर खत्म करना सुरक्षा बलों की पहली प्राथमिकता है। इसमें सफलता मिलने के बाद बाकी बचे कैडर अपने-आप समर्पण कर देंगे।
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