बढ़ते पेंशन बोझ से विदेशी मुल्क भी हैं मुसीबत में, अमेरिका सहित कई विकसित देश निपटने के लिए कर रहे उपाय
अमीर देश भी बढ़ते पेंशन बोझ से परेशान हैं और अधिकांश देशों में भारत की तरह ही सरकार की तरफ से दी जाने वाली पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस ) की जगह स्व-योगदान वाली एनपीएस को लागू करने की कोशिश की जा रही है । अमेरिका में भी पेंशन को लेकर हाल के वर्षों में काफी चर्चा हो रही है ।

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पुरानी पेंशन योजना की बहाली के समर्थन में रामलीला मैदान में विभिन्न राज्यों के जुटे लाखों कर्मचारियों की भीड़ संकेत दे रही है कि आगामी पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और उसके बाद आम चुनाव में पेंशन का मुद्दा गरमाने वाला है। बहुत संभव है कि वित्त मंत्रालय की तरफ से नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) में सुधार पर गठित समिति की रिपोर्ट भी सामने आ जाए।
अमीर देश भी पेंशन बोझ से परेशान
अब आगे क्या फैसला होता है यह बहुत कुछ राजनीति नफा-नुकसान देख कर होगा लेकिन इस बीच आरबीआइ ने एक रिपोर्ट के जरिए दुनिया भर में पेंशन की मौजूदा व्यवस्था और इसके असर की तरफ सभी का ध्यान आकर्षित करवाया है। रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह है कि अमीर देश भी बढ़ते पेंशन बोझ से परेशान है और अधिकांश देशों में भारत की तरह ही सरकार की तरफ से दी जाने वाली पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) की जगह स्व-योगदान वाली एनपीएस को लागू करने की कोशिश की जा रही है।
20 प्रमुख अमीर देशों में पेंशन के लिए 78 ट्रिलियन डॉलर की कमी
कई बड़े अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों को एक जगह रखने वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के 20 प्रमुख अमीर देशों में ही पेंशन दायित्व व पेंशन भुगतान के बीच 78 ट्रिलियन डॉलर (एक ट्रिलियन एक लाख करोड़ के बराबर) की कमी है यानी सरकारों को इस राशि का इंतजाम कहीं ना कहीं से करना होगा।
कई देशों में है पोषित पेंशन स्कीम
एशियाई देशों को लेकर यह अध्ययन रिपोर्ट कहती है कि फिलीपींस, थाइलैंड, विएतनाम, पाकिस्तान जैसे देशों में सरकार की तरफ से पोषित पेंशन स्कीम है लेकिन चीन, श्रीलंका, भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर जैसे देशों ने हाल के वर्षों में अपनी पेंशन व्यवस्था में कई तरह के सुधार किये हैं ताकि कर्मचारियों के योगदान पर आधारित पेंशन भुगतान हो।
2015 में ब दरियादिली योजना
सरकारी कर्मचारियों को पेंशन देने की सबसे दरियादिली योजना चीन की थी, जिसके तहत कर्मचारियों से कोई योगदान नहीं लिया जाता था लेकिन उन्हें सेवानिवृत्त होने पर अंतिम वेतन का 80 से 100 फीसद वेतन बतौर पेंशन दिया जाता था। इसकी व्यवस्था केंद्र, राज्य या निकायों के वेतन से होता था। यह नियम वर्ष 2015 में बदली जा चुकी है। अब वहां एक फंड का निर्माण होता है जिसमें सरकार का योगदान कर्मचारी के वेतन का 20 फीसद व कर्मचारी का योगदान 8 फीसद होता है।
अमेरिका में भी हो रही है पेंशन की चर्चा
अमेरिका में भी पेंशन को लेकर हाल के वर्षों में काफी चर्चा हो रही है। वर्ष 2019 में अमेरिकी सरकार के पास पेंशन के लिए एकत्रित फंड उसके पेंशन दायित्व के मुकाबले 1.25 ट्रिलियन डॉलर कम थी। इसकी भरपाई के लिए सरकार की तरफ से कर्मचारियों व नियोक्ताओं का योगदान बढ़ाया गया है। अमेरिका के कुछ राज्यों में पेंशन के लिए फंड की कमी काफी गंभीर रूप ले चुकी है।
स्व-पोषित पेंशन व्यवस्था की तरफ बढ़ रहे कई देश
अध्ययन रिपोर्ट बताती है कि अधिकांश देशों में स्व-पोषित पेंशन व्यवस्था की तरफ बढ़ा जा रहा है। चिली, डेनमार्क, हंगरी, मैक्सिको, पोलैंड जैसे कुछ देशों में ही पूरी तरह से सरकार पोषित पेंशन व्यवस्था है। वैसे इनमें से भी कई देश अपनी पेंशन बोझ घटाने के कई दूसरे तरह के उपाय कर रही हैं। आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, फिनलैंड, जर्मनी, आयरलैंड, स्वीडेन जैसे विकसित देशों में पेंशन सुधार लागू हो चुका है, जिसमें पहले से नियोक्ता व कर्मचारियों के योगदान वाली व्यवस्था को बढ़ावा दिया गया है।
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पेंशन के बोझ तले दब रहे कई राज्य
सनद रहे कि इसी रिपोर्ट में आरबीआइ ने एनपीएस की जगह ओपीएस को लागू करने को लेकर चेतावनी दी थी। इसके मुताबिक, 1990 के दशक में भारतीय राज्यों का पेंशन बोझ उनके कुल जीडीपी का 0.6 फीसद था जो वर्ष 2022-23 में बढ़ कर 1.7 फीसद हो चुका है। अधिकांश राज्यों के राजस्व में होने वाली वृद्धि के मुकाबले उनके पेंशन दायित्व का बोझ तेजी से बढ़ रहा है। कई राज्य अपने कुल राजस्व संग्रह का 25 फीसद हिस्सा पेंशन भुगतान में कर रहे हैं।
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