Manmohan Singh: अपने शब्दों के अनुकूल सहज व्यक्तित्व की मिसाल रहे मनमोहन सिंह, सत्ता सियासत के गुरूर से मीलों दूर थे
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के इस उद्गार की गूंज उनके जाने के बाद चौतरफा सुनाई पड़ रही है। इस उद्गार के अनुरूप व्यक्तित्व में भी डॉ. सिंह उदार होने के साथ-साथ सत्ता सियासत के गुरूर से मीलों दूर थे। व्यक्तिगत जीवन की उनकी यह सादगी तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को देश के शीर्षस्थ पद की आभा भी किसी रूप में बदल नहीं सकी।

संजय मिश्र, नई दिल्ली। 'उम्मीद है कि इतिहास मेरी परख उदारता से करेगा।' पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के इस उद्गार की गूंज उनके जाने के बाद चौतरफा सुनाई पड़ रही है। इस उद्गार के अनुरूप व्यक्तित्व में भी डॉ. सिंह उदार होने के साथ-साथ सत्ता सियासत के गुरूर से मीलों दूर थे। व्यक्तिगत जीवन की उनकी यह सादगी तथा मानवीय मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को देश के शीर्षस्थ पद की आभा भी किसी रूप में बदल नहीं सकी।
मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व की इन खूबियों से बीते ढाई दशक के दौरान कई बार करीब से रूबरू होने का मौका मिला जिसमें उनकी सहजता और सादगी अविस्मरणीय छाप छोड़ती नजर आई।ऐसे ही एक यादगार क्षण से रूबरू होने का पहला मौका 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान मिला था जब दक्षिण दिल्ली से मनमोहन सिंह पहली बार कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे थे।
'उम्मीदवार के साथ एक दिन' की कवरेज के दौरान मुलाकात
'उम्मीदवार के साथ एक दिन' की कवरेज के लिए उनसे आग्रह किया तो बड़े ही सहज ढंग से वह राजी हो गए और अगले दिन सुबह सात बजे अपने आवास पर आने के लिए कहा। तब वित्त मंत्री रह चुके मनमोहन सिंह की राजनीतिक शख्सियत देश के अग्रणी नेताओं में की जाने लगी थी। इसलिए समय की पाबंदी का ख्याल रखते हुए मैं सुबह साढ़े छह बजे ही उनके सफदरजंग रोड के सरकारी आवास पर पहुंच गया। तब वहां दो-तीन कांग्रेस कार्यकर्ताओं के सिवाय कोई चहल-पहल नहीं थी।
इसमें से ही प्रेम टोकास नाम के एक कार्यकर्ता ने घर के अंदर जाकर पत्रकार के आने की सूचना दी। आश्चर्य यह देखकर हुआ कि तब प्रचार पर निकलने के लिए तैयार हो रहे डॉ. सिंह पजामा व पूरी बाजू की बनियान में ही अपने ड्राइंग रूम में तत्काल पहुंच गए और बैठने का आग्रह करते हुए कुछ मिनटों में ही साथ चलने की बात कही।
प्रचार के दौरान एक जगह गुरुद्वारे में भीड़
कुछ मिनटों बाद दूसरा आश्चर्य तब हुआ जब उनकी पत्नी ने ड्राइंग रूम में आकर खुद पानी और खूरमा मिठाई टेबल पर रखते हुए डॉ. साहब के आने तक चाय पीने का आग्रह किया। समय के पाबंद डॉ. सिंह ठीक सात बजे बाहर आए और मुझे अपनी अंबेसडर कार में साथ लेते हुए चुनाव प्रचार के लिए निकल गए। तिलक नगर, राजौरी गार्डन इलाके में जाने के दरम्यान कार में उनसे बातचीत का मौका मिला। प्रचार के दौरान एक जगह गुरुद्वारे में भीड़ इतनी ज्यादा हो गई कि उनके साथ चल रहे लोग पीछे छूट गए, तब उन्होंने खुद हस्तक्षेप कर मुझे आगे बुलाया।
इस दिन उनके प्रचार में कुछ जगह दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी शामिल हुई थीं और एक छोटे वार्तालाप में शीला दीक्षित ने उनका हौसला बढ़ाते हुए कहा था कि डॉ. साहब चिंता की बात नहीं, आप चुनाव जीतेंगे। इस पर तुरंत डॉ. सिंह ने कहा था कि हार या जीत की चिंता इसलिए नहीं है कि वह सिद्धांतों और देश व पार्टी के मकसद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। निजी रूप से तो वह चुनावी राजनीति की डगर पर जाने को कभी इच्छुक ही नहीं थे। वादे के अनुरूप मनमोहन सिंह ने इस दौरान इंटरव्यू के लिए भी वक्त निकाला और ऐसी जगह कार से उतारा जहां से मुझे अपने गंतव्य तक जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन सुविधा मिल सके।
पत्रकारों के लिए सीजीएस स्वास्थ्य सुविधा का मसला सुलझाया
प्रधानमंत्री के तौर पर भी डॉ. सिंह से कई बार कार्यक्रमों, पत्रकार वार्ताओं और विदेशी दौरों पर रूबरू होने का अवसर मिला। उनके मानवीय नजरिये की एक झलक तब देखने को मिली जब संप्रग-1 के कार्यकाल में पत्रकारों के लिए सीजीएस स्वास्थ्य सुविधा का मसला उनके पास पहुंचा तब उनके हस्तक्षेप से इसकी बहाली हुई। इसमें पीएमओ में तब राज्यमंत्री रहे पृथ्वीराज चव्हाण ने इसमें भूमिका निभाई थी।
2005 में वह युद्ध से निकल रहे अफगानिस्तान की यात्रा पर जाने वाले विश्व के चु¨नदा नेताओं में से एक थे। तब तालिबान की सुरक्षा चुनौतियों का खतरा पूरी तरह खत्म नहीं हुआ था और इसलिए उनके साथ गए पत्रकार जब काबुल में भ्रमण करने के लिए निकलना चाहते थे तो विदेश मंत्रालय और उनकी सुरक्षा टीम ने इसकी यह कहते हुए इजाजत नहीं दी कि प्रधानमंत्री का साफ निर्देश है कि यहां की सुरक्षा चुनौतियों में कोई रिस्क नहीं लिया जा सकता।
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