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    Manipur Violence: संवैधानिक संकट का सामना कर रहा मणिपुर! कांग्रेस दे रही तंत्र के ध्वस्त होने का साक्ष्य

    By Shalini KumariEdited By: Shalini Kumari
    Updated: Tue, 22 Aug 2023 10:14 AM (IST)

    मणिपुर सरकार के अनुरोध के बाद भी राज भवन की ओर से मणिपुर विधानसभा के एक विशेष सत्र को लेकर कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई जिसके कारण भ्रम की स्थिति बन गई और अंत में इसे रद्द करना पड़ा है। इसको लेकर विपक्ष ने राज्य सरकार पर निशाना साधा है। विपक्षी कांग्रेस ने इसे संघर्षग्रस्त राज्य में संवैधानिक तंत्र के ध्वस्त होने का साक्ष्य बताया है।

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    कांग्रेस का दावा है कि प्रदेश में ध्वस्त हुआ संवैधानिक तंत्र

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। मणिपुर विधानसभा का एक विशेष सत्र, जो राज्य में चल रहे जातीय संघर्ष पर चर्चा के लिए सोमवार को शुरू होना था, वह रद्द हो गया। दरअसल, राज्य सरकार के सिफारिश करने के बावजूद राज भवन की तरफ से इस संबंध में कोई अधिसूचना जारी नहीं की गई, जिसके कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई थी।

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    इसी बीच, विपक्षी कांग्रेस ने इसे संघर्षग्रस्त राज्य में संवैधानिक तंत्र के ध्वस्त होने का साक्ष्य बताया है। गौरतलब है कि मणिपुर कैबिनेट ने 4 अगस्त को राज्यपाल से सत्र बुलाने की सिफारिश की थी।

    प्रदेश में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह ध्वस्त

    कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 'स्वयंभू विश्वगुरु की भूमिका' में और गृह मंत्री अमित शाह चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। उन्होंने कहा कि इस दौरान मणिपुर के लोगों पीड़ा में हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश में संवैधानिक तंत्र पूरी तरह ध्वस्त हो गया है।

    उन्होंने सोशल मीडिया एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया, "27 जुलाई को मणिपुर की सरकार ने प्रदेश के राज्यपाल से अगस्त के तीसरे सप्ताह में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया था। चार अगस्त को राज्यपाल से एक बार फिर विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया गया है, लेकिन इस बार एक निश्चित तिथि यानी 21 अगस्त को सत्र बुलाने के लिए कहा गया। आज 21 अगस्त है और विशेष सत्र नहीं बुलाया गया है। विधानसभा का कोई मानसून सत्र भी नहीं हुआ है।"

    बीच मझधार में फंसी सरकार

    संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक, विधानसभा के दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतर नहीं हो सकता। मणिपुर विधानसभा का पिछला सत्र तीन मार्च को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था।

    सूत्रों का कहना है कि ऐसे में सरकार के पास राज्य में संवैधानिक संकट को रोकने के लिए एकमात्र विकल्प यह बचा है कि वह 2 सितंबर तक आपातकालीन सत्र बुलाए। पिछले सप्ताह, 10 कुकी विधायकों ने पार्टी से ऊपर उठकर मणिपुर में जारी हिंसा के बीच विधानसभा सत्र में भाग लेने में खुद को असमर्थ बताया था।

    पैनल ने शीर्ष अदालत में सौंपी रिपोर्ट

    मणिपुर में जातीय हिंसा के पीड़ितों की राहत और पुनर्वास की देखरेख के लिए सुप्रीम कोर्ट ने न्यायमूर्ति गीता मित्तल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस समिति ने सोमवार को शीर्ष अदालत में तीन रिपोर्ट पेश कीं। इन रिपोर्टों में पहचान दस्तावेजों के पुनर्निर्माण, मुआवजे के उन्नयन और इसकी सुविधा के लिए डोमेन विशेषज्ञों की नियुक्ति की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

    शीर्ष अदालत ने तीन रिपोर्टों पर ध्यान देते हुए कहा कि वह पैनल के कामकाज को सुविधाजनक बनाने और प्रशासनिक आवश्यकताओं और अन्य खर्चों को पूरा करने के लिए धन से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए 25 अगस्त को कुछ प्रक्रियात्मक निर्देश पारित करेगी। पैनल द्वारा किए जा रहे कार्यों को आवश्यक प्रचार प्रदान करने के लिए एक वेब पोर्टल बनाया जाएगा।

    नगा समुदाय ने किया कुकी समुदाय के मांग का विरोध

    इस बीच, मणिपुर में नागा जनजातियों की शीर्ष संस्था यूनाइटेड नगा काउंसिल (यूएनसी) ने कुकी, समूहों द्वारा अलग प्रशासन की मांग का कड़ा विरोध किया है। नगा लोगों को इस बात का डर सताने लगा है कि अगर केंद्र सरकार ने कुकी इलाकों में प्रशासनिक व्यवस्था के नाम पर किसी तरह का कोई कदम उठाया तो, अंतिम चरण में चल रही नगा शांति वार्ता को नुकसान हो सकता है।

    अब तक 160 से अधिक लोगों की मौत

    3 मई से राज्य में फैली हिंसा में अब तक 160 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। दरअसल, मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल किए जाने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया था। इसके बाद से मणिपुर में जातीय झड़पें छिड़ी हुई है, जो थमने का नाम नहीं ले रही।

    गौरतलब है कि मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं। वहीं, कुकी और नागा समुदाय की आबादी 40 प्रतिशत से ज्यादा है, जो पहाड़ी जिलों में रहते हैं।