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    Manipur Voilence: मणिपुर में नहीं थमी हिंसा! हमला में कुकी समुदाय के 3 आदिवासियों की गोली मारकर हत्या

    By Jagran NewsEdited By: Abhinav Atrey
    Updated: Tue, 12 Sep 2023 11:38 AM (IST)

    महीनों से चल रही मणिपुर हिंसा रूकने का नाम नहीं ले रही है। कांगपोपकी जिले में प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों के उग्रवादियों ने कुकी-जो समुदाय के तीन आदिवासियों की मंगलवार (12 सितंबर) सुबह गोली मारकर हत्या कर दी। अधिकारियों ने कहा कि हमलावर एक वाहन में आए थे और इंफाल पश्चिम और कांगपोपकी जिलों के सीमावर्ती इलाकों में स्थित इरेंग और करम इलाकों के बीच ग्रामीणों पर हमला कर दिया।

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    मणिपुर में कुकी समुदाय के 3 लोगों की गोली मारकर हत्या (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    इंफाल, एजेंसी। महीनों से चल रही मणिपुर हिंसा रूकने का नाम नहीं ले रही है। कांगपोपकी जिले में प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों के उग्रवादियों ने कुकी-जो समुदाय के तीन आदिवासियों की मंगलवार (12 सितंबर) सुबह गोली मारकर हत्या कर दी।

    अधिकारियों ने कहा कि हमलावर एक वाहन में आए थे और इंफाल पश्चिम और कांगपोपकी जिलों के सीमावर्ती इलाकों में स्थित इरेंग और करम इलाकों के बीच ग्रामीणों पर हमला कर दिया। उन्होंने बताया कि यह गांव पहाड़ों में स्थित है और यहां आदिवासी लोगों का वर्चस्व है।

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    8 सितंबर को भी भड़की थी हिंसा

    अधिकारी ने कहा, "अभी हमारे पास ज्यादा जानकारी नहीं है। हम केवल इतना बता सकते हैं कि घटना सुबह करीब 8.20 बजे हुई जब अज्ञात लोगों ने इरेंग और करम वैफेई के बीच एक इलाके में तीन लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी।" बता दें कि यह घटना 8 सितंबर को तेंग्नौपाल जिले के पल्लेल में भड़की हिंसा के ठीक बाद सामने आई है, जिसमें 8 सितंबर को तीन लोगों की मौत हो गई थी और 50 से अधिक लोग घायल हो गए थे।

    3 मई से मणिपुर में जानलेवा हिंसा जारी

    मणिपुर में 3 मई से बहुसंख्यक मैतेई समुदाय और आदिवासी कुकी के बीच लगातार झड़पें हो रही हैं और अब तक 160 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' आयोजित किया गया, जिसके बाद राज्य में हिंसा भड़की।

    मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि नागा और कुकी सहित आदिवासी 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।