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    प्रत्याशियों से हिसाब मांग रहा पूरब का मैनचेस्टर

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    Updated: Sat, 26 Apr 2014 11:46 AM (IST)

    कानपुर के गली-मोहल्ले व बाजारों में होने वाली चुनावी गलचऊर अक्सर डॉ.जोशी और श्रीप्रकाश जायसवाल की सीधी भिड़ंत तक सिमट जाती है। एक ऐसी भिड़ंत जिसमें कानपुर के लिए घर वाले और बाहर वाले के बीच किसी एक को चुनने की कश्मकश है तो बदलाव की छटपटाहट भी। बीते कई वषरें से अटके जाजमऊ फ्लाईओवर

    कानपुर, [राजीव दीक्षित]। कानपुर के गली-मोहल्ले व बाजारों में होने वाली चुनावी गलचऊर अक्सर डॉ.जोशी और श्रीप्रकाश जायसवाल की सीधी भिड़ंत तक सिमट जाती है। एक ऐसी भिड़ंत जिसमें कानपुर के लिए घर वाले और बाहर वाले के बीच किसी एक को चुनने की कश्मकश है तो बदलाव की छटपटाहट भी।

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    बीते कई वषरें से अटके जाजमऊ फ्लाईओवर की खुदी पड़ी बुनियाद में जमा मिट्टी के ढेर से उठा धूल का गुबार दफ्तर जाते राजेश मिश्रा को मोटरसाइकिल का ब्रेक दबाने पर मजबूर कर देता है। बुनियादी सुविधाओं के विकास की यह कछुआ चाल मानो पूरे कानपुर की रफ्तार पर ब्रेक लगा रही हो। मोटरसाइकिल रुकी तो जेब से रुमाल निकाल कर उन्होंने चेहरे पर जमा गर्द को पोछा। भुनभुनाये और चेहरे पर झल्लाहट का भाव लिए फटफटिया का एक्सीलरेटर दबा आगे बढ़ गए।

    बिल्कुल वैसे जैसे रोज की दिक्कतों से जूझता 'पूरब का मैनचेस्टर' कानपुर 30 अप्रैल को होने वाले लोकसभा चुनाव की ओर मजबूत इरादों से कमर कस कर बढ़ रहा है। वादों-इरादों की इस जंग में कनपुरिया मतदाताओं का दिल जीतने को भाजपा के कद्दावर नेता डॉ.मुरली मनोहर जोशी खुद पर बाहरी होने के विरोधियों के आरोपों को धोने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। वहीं केंद्र सरकार के कोयला मंत्री और लगातार तीन बार से कानपुर के सांसद श्रीप्रकाश जायसवाल के समर्थक अपने नेता की सहज सुलभता और विनम्रता का हवाला देकर 'घर वाले' को जिताने के बूते मतदाताओं को रिझाने में जुटे हैं। यूं तो समाजवादी पार्टी के सुरेंद्र मोहन अग्रवाल, बहुजन समाज पार्टी के सलीम अहमद और मशहूर नेत्र सर्जन व आम आदमी पार्टी के डॉ.महमूद रहमानी भी वोटरों को रिझाने के लिए पसीना बहा रहे हैं।

    घर वाले और बाहर वाले की इस दिलचस्प चुनावी जंग में फैसला सुनाने से पहले कानपुर अपने दिये के बदले मिले का हिसाब मांग रहा है। कानपुर का उद्योग सरकार को सालाना 8.5 हजार करोड़ रुपये कर राजस्व देता है लेकिन बदले में शहर को क्या मिला? बदहाल सड़कें, बेतरतीब यातायात और बिजली-पानी की किल्लत।

    इस सवाल के साथ इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के प्रदेश उपाध्यक्ष सुनील वैश बेलाग तरीके से चुनाव का एजेंडा सामने रख देते हैं। उन्हें तकलीफ है कि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में उद्योग नगरी के उद्यमी मजबूरी में नई औद्योगिक इकाइयां लगाने को अब उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश का रुख कर रहे। कानपुर सिर्फ औद्योगिक इकाइयों का मकड़जाल नहीं। यहां रुक-रुक कर बन रहे फ्लाईओवर जब राहत देंगे तब देंगे लेकिन फिलहाल वे शहरवासियों के लिए दिक्कत का सबब बने हुए हैं। जेएनएनयूआरएम (जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय नवीकरण मिशन) के तहत जगह-जगह मुद्दत से खुदी सड़कें ऐसी जैसे शहर के पेट में चीरे लगाने के बाद डॉक्टर टांके लगाना भूल गया हो। 'इन खुदी सड़कों ने ही कानपुर से सिटी बसें छीन लीं।

    जेएनएनयूआरएम के तहत शहर को मिलीं दो सौ बसें सिर्फ इसलिए खड़ी हैं क्योंकि इन खस्ताहाल सड़कों पर वे चलें तो कैसे।' बर्रा में टैम्पो का इंतजार कर रहे अमित अवस्थी आवेश में बोले। वहीं मॉल रोड पर पत्रिका खरीदते मिले बैंक कर्मी मनोज त्रिपाठी को यह खलिश है कि जिस शहर को पहले मिलों के सायरन और समय से कारखाना पहुंचने को बेताब कामगारों की साइकिलों की घंटियां जगाती थीं, अब उसे पानी के लिए तड़के लगने वाली लंबी लाइनें और मुंह अंधेरे धोखा दे जाने वाली बिजली जगाती है। और कानपुर सरीखे महानगर में बिजली वाकई चंचला, चपला है। आने-जाने के लिए किसी की मर्जी की मोहताज नहीं। चावला मार्केट, गोविंदनगर में जागेश्वर अस्पताल के सामने ठेला लगाकर मट्ठा बेच रहे वीरेंद्र कुमार को बखूबी याद है दो दिन पहले दोपहर दो बजे जो बत्ती गुल हुई तो रात 11 बजे आई।

    कांग्रेस प्रत्याशी जायसवाल इन सवालों से भी जूझ रहे हैं तो पार्टी की गुटबाजी से भी। लोगों को याद नहीं कि कानपुर शहर के एकमात्र कांग्रेसी विधायक अजय कपूर जायसवाल के साथ कब चुनावी जनसंपर्क में दिखे थे। भितरघात का संकट डॉ.जोशी के सामने भी है। यही वजह है कि बीती 18 अप्रैल को कानपुर देहात में हुई रैली में नरेंद्र मोदी को मंच से ऐसे भितरघातियों को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए चेताना पड़ा।

    अब्दुल गनी रोड पर तलाक महल मार्केट के बारामदे में बैठे हाजी शफीक अहमद यदि बाहरी को हराना चाहते हैं तो बेकनगंज के बर्तन व्यवसायी अनवार अहमद का भी यही इरादा है। घर-बाहर की इस लड़ाई में बदलाव की बेताबी भी महसूस होती है। बर्रा में देना बैंक के बाहर आधार कार्ड बनवाने के लिए लाइन में लगे 22 वर्षीय बैंक अधिकारी नितिन मित्रा हों या शास्त्री नगर चौराहे पर स्कूटर मैकेनिक गिरिजेश पांडेय या फिर सीसामऊ बाजार में खरीदारी करने आये अरविंद जायसवाल, सभी को परिवर्तन की दरकार है। जायसवाल को यदि 'लोकल कनेक्ट' का लाभ है तो जोशी मोदी की लहर पर सवार। वह लहर जो कानपुर के गोविंदनगर की कच्ची बस्ती में जा पहुंची है। यहां घर के बाहर मोहल्ले की औरतों संग बैठी उर्मिला 'कमल' को वोट देना चाहती हैं लेकिन जब उनसे पूछा गया कि यह किस पार्टी का निशान है तो जवाब उनकी बगल में खड़े आठ साल के बब्लू ने दिया- 'मोदी।'।

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