तीस्ता जलसंधि पर अड़ी ममता, समझौते के आसार कम
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की सितंबर, 2011 की ढाका यात्रा के दौरान ही इस पर अंतिम सहमति की प्लानिंग थी लेकिन ममता के विरोध से नहीं हो पाया।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। देश की राजनीति किस तरह कूटनीतिक रिश्तों को प्रभावित करती है इसका सबसे ताजा उदाहरण पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का रवैया है। ममता बनर्जी भारत व बांग्लादेश के रिश्तों के लिए बेहद अहम समझे जाने वाले तीस्ता जल बंटवारे को लेकर तैयार नहीं हो रही हैं। यहां तक कि पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ से समझाने की कोशिश का भी कुछ खास नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है। लिहाजा बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना की शुक्रवार से शुरु हो रही भारत यात्रा के दौरान इस अहम समझौते पर संधि होने के आसार नहीं है। सरकार को डर है कि इसमें ज्यादा देरी होने पर कहीं ढाका का रुख चीन की तरफ न हो जाए।
सूत्रों के मुताबिक ममता बनर्जी को पीएम ने खास तौर पर शनिवार को भारत-बांग्लादेश के बीच होने वाली आधिकारिक द्विपक्षीय वार्ता में दौरान कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए बुलाया है। यह पीएम की तरफ से नई कोशिश है कि बनर्जी को तीस्ता जल बंटवारे समझौते पर रजामंद किया जा सके। बनर्जी ने दिल्ली आने का न्यौता तो स्वीकार कर लिया है लेकिन वह तीस्ता को लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रही हैं। बहरहाल, ममता अब हैदराबाद हाउस में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की अगुवाई में होने वाली आधिकारिक वार्ता में शामिल नहीं होंगी। कूटनीति सर्किल के लोग मान रहे हैं कि यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है कि तीस्ता पर केंद्र व राज्य के बीच छह वर्षो बाद भी सहमति नहीं बन पा रही है।
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चीन बांग्लादेश में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत चीन से आर्थिक मामले में मुकाबला नहीं कर सकता है। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की पिछले वर्ष हुई ढाका यात्रा के दौरान 25 अरब डॉलर के निवेश करने का समझौता किया है। जबकि भारत व बांग्लादेश का द्विपक्षीय कारोबार सिर्फ 6.5 अरब डॉलर का है और भारत ने वहां सिर्फ 3 अरब डॉलर का निवेश किया हुआ है। बांग्लादेश में भारत की कूटनीति की भावी सफलता बहुत हद तक तीस्ता से जुड़ी हुई है। भारत व बांग्लादेश के बीच तीस्ता जल बंटवारे पर नई संधि 2011 में हो गया था लेकिन पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से लगातार इसका विरोध होने से भारत इसे लागू नहीं कर पाया है।
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इस संधि के तहत बांग्लादेश को तीस्ता नदी के पानी का 37.5 फीसद हिस्सा मिलेगा जबकि भारत 42.5 फीसद पानी का इस्तेमाल करेगा। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की सितंबर, 2011 की ढाका यात्रा के दौरान ही इस पर अंतिम सहमति की प्लानिंग थी लेकिन ममता के जबरदस्त विरोध की वजह से नहीं हो पाया। बाद के चुनाव में ममता ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया। वर्ष 2015 में काफी आग्रह के बाद वह पीएम मोदी की ढाका यात्रा में शामिल हुई।
ऐसा माना गया था कि वह राज्य चुनाव के बाद तीस्ता संधि के लिए राजी हो जाएंगी। लेकिन इस बीच केंद्र के साथ उनकी तल्खी और बढ़ गई है। लेकिन इसका असर भारत व बांग्लादेश के बीच होने वाले पानी बंटवारे को लेकर होने वाले अन्य संधियों पर पड़ रहा है। दोनों देशों के बीच संयुक्त तौर पर 54 नदियां हैं जिसके बारे में समझौता किया जाना है। साथ ही गंगा बैराज और संयुक्त जल प्रबंधन को लेकर भी समझौता होना है। लेकिन यह सब अटका हुआ है।