मालेगांव ब्लास्ट में हाईकोर्ट पहुंचे पीड़ितों के परिजन, प्रज्ञा ठाकुर सहित 7 आरोपियों की रिहाई को दी चुनौती
मालेगांव विस्फोट कांड (2008) के पीड़ितों के परिजनों ने एनआईए कोर्ट के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। याचिका में विशेष अदालत द्वारा सात आरोपियों को बरी करने के आदेश को कानून की दृष्टि से गलत बताया गया है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से फैसले को रद्द करने की मांग की है। उनका तर्क है कि साजिश गुप्त थी इसलिए प्रत्यक्ष प्रमाण मिलना मुश्किल है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मालेगांव विस्फोट कांड (सिंतबर 2008) में मारे गए छह लोगों के परिजनों ने 31 जुलाई को आए इस मामले के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। विशेष एनआईए कोर्ट ने इस मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर एवं लेफ्टीनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित (सेवानिवृत्त) सहित सात लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।
उच्च न्यायालय में दायर याचिका में दावा किया गया कि दोषपूर्ण जांच या जांच में कुछ खामियां अभियुक्तों को बरी करने का आधार नहीं हो सकतीं। यह भी तर्क दिया गया कि षडयंत्र गुप्त रूप से रचा गया, इसलिए इसका कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हो सकता।
हाइकोर्ट पहुंचे पीड़ितों के परिजन
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि विशेष एनआईए अदालत द्वारा 31 जुलाई को सात आरोपितों को बरी करने का आदेश कानून की दृष्टि से गलत है, इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए। निसार अहमद सैयद बिलाल और पांच अन्य लोगों ने अपने वकील मतीन शेख के माध्यम से सोमवार को अपील दायर कर उच्च न्यायालय से विशेष अदालत के फैसले को रद्द करने की मांग की।
उच्च न्यायालय की वेबसाइट के अनुसार, यह अपील 15 सितंबर को न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आने की संभावना है।
29 सितम्बर 2008 को मुंबई से करीब 200 किमी. दूर महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित मालेगांव कस्बे में एक मस्जिद के पास मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक से विस्फोट किया गया था, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 अन्य घायल हो गए थे। दावे में कहा गया है कि निचली अदालत के न्यायाधीश को आपराधिक मुकदमे में "डाकिया या मूकदर्शक" की भूमिका नहीं निभानी चाहिए। इसमें आगे कहा गया है कि जब अभियोजन पक्ष तथ्य उजागर करने में विफल रहता है, तो निचली अदालत प्रश्न पूछ सकती है और/या गवाहों को बुला सकती है। दुर्भाग्यवश, ट्रायल कोर्ट ने मात्र एक डाकघर की तरह काम किया है और अभियुक्तों को लाभ पहुंचाने के लिए अपर्याप्त अभियोजन की अनुमति दी है।
'धीमी गति से कार्रवाई करने का दबाव बनाया'
अपील में यह भी बताया गया कि पिछली विशेष लोक अभियोजक रोहिणी सालियान ने आरोप लगाया था कि एनआईए ने आरोपितों के खिलाफ मामले में धीमी गति से कार्रवाई करने का दबाव बनाया था, जिसके बाद एक नए अभियोजक की नियुक्ति की गई थी। अपील में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा मामले की जांच और सुनवाई के तरीके पर भी चिंता जताई गई तथा आरोपितों को दोषी ठहराने की मांग की गई है।
ATS ने 7 लोगों को किया था गिरफ्तार
अपील में कहा गया है कि राज्य के आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने सात लोगों को गिरफ्तार करके एक बड़ी साजिश का पर्दाफाश किया और उसके बाद से अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी वाले क्षेत्रों में कोई विस्फोट नहीं हुआ है। इसमें दावा किया गया कि एनआईए द्वारा मामला अपने हाथ में लेने के बाद आरोपितों के खिलाफ आरोपों को कमजोर कर दिया।
अपील में आगे दावा किया गया कि विशेष अदालत ने यह निष्कर्ष निकालने में गलती की है कि विस्फोट में प्रयुक्त मोटरसाइकिल ठाकुर की नहीं थी और प्रयुक्त आरडीएक्स पुरोहित द्वारा नहीं खरीदा गया था।
सबूतों के अभाव में बरी हुए सभी आरोपी
इसमें कहा गया है कि यह दिखाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि आरोपियों ने विस्फोट की साजिश रची थी और विशेष अदालत ने यह मान कर गलती की है कि आरोपितों के खिलाफ केवल मजबूत संदेह था, लेकिन उन्हें दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं थे।
बता दें कि विशेष अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि मात्र संदेह वास्तविक सबूत का स्थान नहीं ले सकता तथा दोषसिद्धि के लिए कोई ठोस या विश्वसनीय सबूत नहीं है। एनआईए अदालत की अध्यक्षता कर रहे विशेष न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने कहा था कि आरोपितों के खिलाफ कोई भी ‘विश्वसनीय और ठोस सबूत’ नहीं है, जो मामले को संदेह से परे साबित कर सके।
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