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    13 Jan 1948 History: पांच दिन तक भूूूूखे रहे थे महात्मा गांधी, सांप्रदायिक उन्माद को खत्म करने की खातिर था अंतिम अनशन

    By Monika MinalEdited By:
    Updated: Wed, 13 Jan 2021 09:47 AM (IST)

    कलकत्ता में 13 जनवरी को महात्मा गांधी का आखिरी आमरण अनशन शुरू हुआ था। दरअसल वे चाहते थे कि शरणार्थी मुस्लिम अपने घरों को छोड़ शरणार्थी कैंपों में वापस आएं। इस अनशन में रखी गई शर्तों को 5 दिन बाद मंजूरी मिली और 18 जनवरी को बापू ने उपवास तोड़ा।

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    जब 5 दिनों तक अनशन पर थे महात्मा गांधी

     नई दिल्ली, एजेंसी। 13 जनवरी 1948 की तारीख राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन के आखिरी दिनों की खास घटनाओं में से एक है। इसी दिन उनका आखिरी आमरण अनशन शुरू हुआ था। उस दिन कलकत्ता की  सुबह 11:55 बजे गांधीजी ने अपने अनशन के आंदोलन को शुरू किया था। उनकी चाहत थी कि शरणार्थी मुस्लिम अपने घरों से कब्जा छोड़  उनके लिए बनाए गए शरणार्थी-कैंपों में लौट जाएं। 

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    गांधीजी के इस अनशन पर दुनिया की निगाहें थीं।  हिंदू और सिखों के अलावा पाकिस्तान से आए शरणार्थी समेत हजारों लोग इस अनशन में शामिल हुए थे। अनशन के इस आंदोलन में बापू को टस से मस न होता देख आखिरकार पांच दिनों बाद  18 जनवरी 1948 को सुबह 11.30 बजे विभिन्न संगठनों के 100 से अधिक प्रतिनिधियों ने उनसे मुलाकात की। इसके बाद देश में सांप्रदायिक उन्माद  की शांति के लिए गांधीजी की सभी शर्तों को मंजूरी दी। 

    1947 में देश को आजादी मिली थी और इसके बाद हुए विभाजन में भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बन गए। विभाजन के कारण देश में सांप्रदायिक हिंसा शुरू हुआ। विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच लकीरें खींच गई एक दूसरे की जान लेने को लोग आमादा हो गए जिसने गांधीजी को झकझोर कर रख दिया और उन्होंने अपनी मांगों के साथ अनशन शुरू कर दिया। 

    12 जनवरी की शाम को दिया था आखिरी भाषण 

    उल्लेखनीय है कि 13 जनवरी 1948 को अनशन की शुरुआत से पहले 12 जनवरी 1948 की शाम को  महात्मा गांधी ने अपना आखिरी भाषण दिया था। इसमें उन्होंने कहा था, 'देश में सांप्रदायिक दंगों में होती बर्बादी देखने से बेहतर मौत है।' 

    31 जनवरी को हुई थी हत्या

    18 जनवरी को अनशन समाप्त करने के 11 दिन बाद 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई। इससे तीन दिन पहले ही सांप्रदायिक दंगे से जल रही दिल्ली में शांति लाने के उद्देश्य से वे महरौली स्थित कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी दरगाह पर गए थे और वहां एक बड़ी सभा को संबोधित कर सांप्रदायिक सद्भाव और एकता का संदेश दिया था।

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