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    Mahatma Gandhi Birth Anniversary: केवल एक बार जम्मू कश्मीर गए थे गांधी जी, जानें- भारत में विलय को लेकर क्या थे बापू के विचार

    By Sanjeev TiwariEdited By:
    Updated: Wed, 02 Oct 2019 10:28 AM (IST)

    Mahatma Gandhi birth anniversary महात्मा गांधी अपने पूरे जीवनकाल में एक ही बार जम्मू कश्मीर आए। उनका यह दौरा करीब 10 दिन चला था। उनके इस दौरे को लेकर बहुत कुछ कहा-सुना और लिखा गया।

    Mahatma Gandhi Birth Anniversary: केवल एक बार जम्मू कश्मीर गए थे गांधी जी, जानें- भारत में विलय को लेकर क्या थे बापू के विचार

    नवीन नवाज, श्रीनगर। Mahatma Gandhi birth anniversary जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर आज देश में जहां बहुत कुछ कहा सुना जा रहा है, वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आजादी से कुछ दिन पूर्व एक अगस्त 1947 को कश्मीर के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह से भेंट करने जम्मू कश्मीर आए थे। महाराजा और महात्मा गांधी के बीच वार्ता का ब्योरा तो मौजूद नहीं है, लेकिन तत्कालीन राजनीतिक हालात और उसके बाद कश्मीर के घटनाक्रम में आए बदलाव के मद्देनजर माना जाता है कि बापू जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को यकीनी बनाने आए थे।

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    महात्मा गांधी अपने पूरे जीवनकाल में एक ही बार जम्मू कश्मीर आए। उनका यह दौरा करीब 10 दिन चला था। उनके इस दौरे को लेकर बहुत कुछ कहा-सुना और लिखा गया। अलबत्ता, 1947 के तत्कालीन हालात, जम्मू कश्मीर में महाराजा के खिलाफ जारी आंदोलन और विलय पर संशय के बीच यह दौरा अत्यंत अहम था।

    चिनार के पेड़ के नीचे महाराजा से मिले थे बापू

    महाराजा हरि सिंह और महात्मा गांधी की मुलाकात के गवाह हैं पूर्व सदर-ए- रियासत डा. कर्ण सिंह। उनके मुताबिक महाराजा हरि सिंह और रानी तारा देवी के साथ महात्मा गांधी की मुलाकात एक अगस्त 1947 को गुलाब भवन (अब यह हेरीटेज होटल में बदल चुका है) के प्रांगण में चिनार के एक पेड़ के नीचे हुई थी, यह चिनार आज भी है। डॉ. कर्ण सिंह ने अपनी किताब में लिखा है, महात्मा गांधी के आगमन पर पूरे महल को बड़ी सादगी और करीने से सजाया गया था। गुलाब महल के सामने चिनार के नीचे ही उनके बैठने की व्यवस्था की गई थी। महात्मा गांधी को लेने के लिए महाराज हरि सिंह खुद पोर्च तक गए। मां महारानी तारा देवी ने उनके लिए विशेष तौर पर बकरी का दूध और फल मंगवाए थे। उनकी महाराजा हरि सिंह के साथ करीब डेढ़ घंटे बैठक चली। अलबत्ता, दोनों के बीच बातचीत का ब्योरा डॉ. कर्ण सिंह ने नहीं दिया है।

    शेख अब्दुल्ला के परिवार से भी की थी मुलाकात

    महात्मा गांधी श्रीनगर में ठेकेदार सेठ किशोरी लाल के मकान में रुके थे। वहां आयोजित प्रार्थना सभा में नेशनल कांफ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला (जो उस समय जेल में थे) की पत्‍‌नी बेगम अकबर जहां और बेटी खालिदा शाह भी शामिल हुईं थीं। इसके बाद महात्मा गांधी उनसे मिलने सौरा स्थित उनके पैतृक निवास भी गए, जहां उन्होंने बेगम अकबर जहां से कुरान की कुछ आयतों को दोहराने को कहा था। उन्होंने बाद में महाराजा हरि सिंह से चर्चा कर जेल में बंद नेताओं को रिहा करने का आग्रह किया था।

    महात्मा गांधी को कश्मीर में नजर आई थी रोशनी की किरण

    महात्मा गांधी ने कश्मीर में सांप्रदायिक सौहार्द की पूरे देश में भड़की सांप्रदायिक हिंसा से तुलना करते हुए कहा था, अगर मुझे कहीं शांति, सदभाव और सांप्रदायिक सौहार्द की किरण नजर आती है तो वह कश्मीर ही है।

    बापू ने भारत में शामिल होने की दी थी सलाह

    जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार स्व. वेद भसीन ने जम्मू विश्वविद्यालय में वर्ष 2003 में आयोजित सेमिनार एक्सपीरियंस ऑफ पार्टिएशन : जम्मू 1947, में कहा था कि जिन हालात में गांधी जी श्रीनगर पहुंचे और महाराजा से मिले, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि महात्मा गांधी ने उन्हें भारत में शामिल होने की सलाह दी। यह बात अलग है कि महात्मा गांधी ने अपने दौरे को गैर राजनीतिक करार देते हुए कहा था कि वह महाराजा के साथ कश्मीर यात्रा के पुराने वादे को निभाने गए थे। हालांकि कई ऐतिहासिक तथ्य पुष्ट करते हैं कि गांधी जी कश्मीर के विलय को यकीनी बनाए आए थे।

    यह तथ्य साबित करते हैं - महाराजा भारत में शामिल होने को थे तैयार

    1. दिवंगत वेद भसीन का यह दावा निराधार नहीं कहा जा सकता। सरदार पटेल के पत्रों पर आधारित किताब सरदार पटेल कारसपोंडेंस (पेज 36) में उल्लेख है कि ऑल इंडिया स्पिनर्स एसोसिएशन के सचिव रामधर ने 14 जुलाई 1947 को पत्र लिखा था कि महाराजा भारत में शामिल होने के लिए तैयार हैं और वह प्रधानमंत्री रामचंद काक का विकल्प तलाश रहे हैं। स्पिनर्स एसोसिएशन का गठन महात्मा गांधी ने ही किया था। काक को आजादी समर्थक माना जाता था।

    2 : जोसेफ कोरबेल ने अपनी किताब कश्मीर इन डैंजर में लिखा है कि भारत लगातार कश्मीर में इंटरेस्ट ले रहा था और गांधी जी के प्रस्ताव से महाराजा काफी हद तक प्रभावित दिखे थे। तथ्य भी इसकी पुष्टि करते हैं, क्योंकि महात्मा गांधी के दौरे के अगले ही दिन काक को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया और उसके बाद शेख अब्दुल्ला ने भारत के साथ जाने का एलान कर दिया।

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