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    सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राजनीतिक संकट मामले को बड़ी बेंच को भेजने से किया इनकार, 21 फरवरी को अगली सुनवाई

    By AgencyEdited By: Achyut Kumar
    Updated: Fri, 17 Feb 2023 11:01 AM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राजनीतिक संकट मामले में शुक्रवार को सुनवाई की। इस दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि मेरिट के आधार पर मामले की सुनवाई होगी। फिलहाल बड़ी बेंच को केस भेजने की जरूरत नहीं है। मामले की अगली सुनवाई 21 फरवरी को होगी।

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    महाराष्ट्र राजनीतिक संकट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

    नई दिल्ली, एएनआई। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अयोग्यता याचिकाओं से निपटने के लिए विधानसभा अध्यक्षों की शक्तियों पर 2016 के नबाम रेबिया के फैसले पर पुनर्विचार के लिए महाराष्ट्र राजनीतिक संकट से संबंधित मामलों को तुरंत सात-न्यायाधीशों की एक बड़ी बेंच को संदर्भित करने से इनकार कर दिया।

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    21 फरवरी को अगली सुनवाई

    सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि नबाम रेबिया के फैसले को सात-न्यायाधीशों की बेंच को भेजा जाना चाहिए या नहीं, यह केवल महाराष्ट्र राजनीति मामले की सुनवाई के साथ ही तय किया जा सकता है। कोर्ट अब 21 फरवरी को महाराष्ट्र राजनीतिक संकट के मामलों की सुनवाई करेगी।

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    मेरिट के आधार पर मामले की सुनवाई होगी

    शिवसेना विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई की। इस दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि मेरिट के आधार पर मामले की सुनवाई होगी। फिलहाल बड़ी बेंच को केस भेजने की जरूरत नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले में अगली सुनवाई 21 फरवरी को होगी।

    गुरुवार को पांच सदस्यीय पीठ ने की सुनवाई

    बता दें, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने हटाने का नोटिस लंबित रहने के दौरान स्पीकर को अयोग्यता तय करने से रोकने की व्यवस्था देने वाले नबम रेबिया फैसले को सात न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजने की मांग पर सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रख लिया। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने ठाकरे और शिंदे गुटों की ओर से पेश वकीलों की दलीलें सुनीं। 

    शिवसेना (उद्धव गुट) की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने मामले को सात सदस्यीय बेंच को सौंपने की मांग की, जबकि शिंदे गुट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और एनके कौल ने इसका विरोध किया। नबाम-रेबिया का फैसला याचिकाओं से निपटने के लिए विधानसभा अध्यक्षों की शक्तियों से संबंधित है।

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