'अथॉरटीज की इजाजत के बगैर घर को प्रार्थना घर में नहीं कर सकते हैं तब्दील', मद्रास हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अधिकारियों की अनुमति के बिना किसी घर को प्रार्थना घर में नहीं बदला जा सकता। अदालत ने पादरी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि केवल लाउडस्पीकर का उपयोग न करने से समस्या का समाधान नहीं होगा। मुख्य मुद्दा यह है कि याचिकाकर्ता बिना अनुमति के घर को प्रार्थना घर में परिवर्तित नहीं कर सकते।

माला दीक्षित, नई दिल्ली। मद्रास हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि अथॉरिटीज की इजाजत के बगैर घर को प्रार्थना घर में तब्दील नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पादरी की ओर से हलफनामा दाखिल कर लाउडस्पीकर और माइक्रोफोन का प्रयोग किये बगैर शांतिपूर्ण ढंग से घर में प्रार्थना करने का भरोसा दिलाए जाने के बावजूद उसे घर को प्रार्थना घर की तरह प्रयोग करने की इजाजत नहीं दी।
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ लाउडस्पीकर या माइक्रोफोन का इस्तेमाल न करने से मुद्दे का हल नहीं होगा। मूल मुद्दा तो यह है कि याचिकाकर्ता प्रेयर मीटिंग के लिए घर को प्रार्थना घर में तब्दील नहीं कर सकता। यह फैसला मद्रास हाई कोर्ट के न्यायाधीश एन. आनंद वेंकटेश ने तमिलनाडु के तिरुवरूर जिले के कोडावसाल तालुक के पादरी एल जोसेफ विल्सन की याचिका निपटाते हुए 13 जून को दिया। इस मामले में पादरी ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर उसके प्रार्थना घर के खिलाफ की गई कार्रवाई रद कराने की मांग की थी।
सील कर दिया गया था परिसर
अथॉरिटीज ने घर में प्रार्थना सभा से आस पड़ोस के लोगों को हो रही परेशानी की शिकायत पर परिसर को सील कर दिया था। इससे पहले पादरी ने घर की जगह चर्च बनाने की इजाजत अथॉरिटी से मांगी थी जो कि नहीं मिली थी। इसके बाद पादरी ने हाई कोर्ट में यह याचिका दाखिल की थी। इस मामले में याचिकाकर्ता पादरी की वर्ड ऑफ गॉड मिनिस्ट्रीस ट्रस्ट नाम का एक ट्रस्ट था। इस ट्रस्ट की स्थापना 2007 में की गई थी और इस ट्रस्ट के नाम 2023 में पट्टा भी ट्रांसफर हुआ। उस परिसर में परिवार मित्रों और पड़ोसियों के साथ नियमित प्रार्थना सभा होती थी।
याचिकाकर्ता ने मांगी चर्च बनाने की इजाजत
याचिकाकर्ता ने दो जनवरी 2023 को वह संपत्ति खरीद ली और उसके बाद वहां लगातार प्रार्थना सभा करने लगा। उसके प्रार्थना सभा करने के खिलाफ अथॉरिटीज को शिकायत की गई जिसके बाद पुलिस ने वहां जाकर जांच की। याचिकाकर्ता ने वहां पर चर्च बनाने की इजाजत के लिए आवेदन किया, लेकिन जिला कलेक्टर ने आवेदन खारिज कर दिया। इस दौरान तहसीलदार ने उसे नोटिस जारी कर 10 दिन के भीतर प्रार्थना सभा बंद करने का आदेश दिया था। तभी याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी जिस पर फैसला आया है।
मामले में जिला कलक्टर की ओर से कोर्ट में दिए गए जवाब में कहा गया था कि याचिकाकर्ता इजाजत के बगैर प्रार्थना सभा नहीं चला सकता। उसके प्रार्थना सभा करने से आस पड़ोस और इलाके के लोग डिस्टर्ब होते हैं। इस संबंध में मद्रास हाई कोर्ट के ही एक पूर्व फैसले का हवाला दिया था जिसमें कोर्ट ने कहा था कि नियमों के तहत उचित ढंग से इजाजत लिए बगैर प्रार्थना सभागार में प्रार्थना सभा नहीं की जा सकती।
किसी स्थल को प्रार्थना सभा बनाने के लिए लेनी होती है इजाजत
मौजूदा फैसले में हाई कोर्ट ने पाया कि यह मामला 29 अप्रैल 2021 को दिए गए पूर्व फैसले से पूरी तरह कवर होता है। उस फैसले में कोर्ट ने माना था कि धार्मिक उद्देश्य से पूजा स्थल बनाने के लिए नियमों के तहत इजाजत लेनी होती है।
उस फैसले में हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कमिश्नर पुलिस बनाम वी. आचार्य जगदीश्वरानंद अवैधुता व अन्य के मामले में दिए फैसले को भी उद्धत किया था जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने धर्म की अनिवार्य और जरूरी प्रैक्टिस की व्याख्या की है। हाई कोर्ट ने अपने ताजा फैसले में कहा कि विभिन्न पूर्व फैसलों को देखने से स्पष्ट होता है कि प्रार्थना सभागार में प्रार्थना सभा करने के लिए संबंधित अथॉरिटी से नियमों के तहत इजाजत लेने की आवश्यकता होती है। और इसलिए याचिकाकर्ता अधिकार के तौर पर बिना इजाजत के प्रेयर हाल में प्रार्थना सभा नहीं कर सकता।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने अंडरटेकिंग देकर लाउडस्पीकर का उपयोग किये बगैर शांतिपूर्ण ढंग से प्रार्थना सभा करने की बात कही थी लेकिन कोर्ट नहीं माना। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ लाउडस्पीकर या माइक्रोफोन का इस्तेमाल न करने से मुद्दा हल नहीं होगा। मूल मुद्दा तो यह है कि याचिकाकर्ता घर को प्रार्थना सभागार में तब्दील नहीं कर सकता। इसके लिए अथारिटीज से उचित इजाजत लेनी होगी।
कब मिलेगी परिसर से सील हटाने की अनुमति
कोर्ट ने कहा कि वह अथॉरिटीज को परिसर से सील हटाने का आदेश तभी देगा जबकि संबंधित अथारिटी की इजाजत के बगैर संपत्ति का उपयोग प्रार्थना हाल में न किया जाए। हाई कोर्ट ने तहसीलदार को परिसर से सील हटाने का आदेश दिया है, लेकिन इसके साथ ही निर्देश दिया कि संपत्ति का इस्तेमाल प्रार्थना हाल की तरह नहीं किया जाएगा। अगर याचिकाकर्ता संपत्ति को प्रेयर हाल में तब्दील करना चाहता है तो वह इसके लिए जिला कलक्टर से इजाजत ले। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर दोबारा संपत्ति को प्रेयर हाल की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश की गई तो प्रशासन कानून के मुताबिक कार्रवाई करने को स्वतंत्र होगा।
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