मध्य प्रदेश : कब्जे के बाद भी 59 साल में भेल के नाम दर्ज नहीं हुई छह हजार एकड़ जमीन
भारी उद्योग मंत्रालय ने भेल को भूमि अधिकार अनुबंध करने के लिए दर्जनों पत्र लिखे लेकिन अधिकारियों ने अमल नहीं किया। 2010 में तत्कालीन भोपाल कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट में जमीन पर भेल का अधिकार नहीं होने का स्पष्ट उल्लेख किया था।

भोपाल [दीपक विश्वकर्मा]। केंद्र सरकार की नवरत्न कंपनियों में शामिल भारत हैवी इलेक्टि्रकल लिमिटेड (भेल) की सबसे बड़ी इकाई मध्य प्रदेश के भोपाल में 59 साल से स्थापित है। आश्चर्य की बात यह है कि यहां जिस 6000 एकड़ जमीन पर भेल का कब्जा है, उसने मध्य प्रदेश सरकार से अब तक उसका अधिकार पत्र (लीज डीड) ही नहीं बनवाया है। केंद्र के भारी उद्योग मंत्रालय ने 1962 में भूमि आवंटन के बाद भेल प्रबंधन को जमीन का अधिकार पत्र बनवाने के लिए दर्जनों पत्र लिखे। इसका उल्लेख 2010 में तत्कालीन भोपाल कमिश्नर मनोज श्रीवास्तव ने अपनी रिपोर्ट में किया था। साथ ही उन्होंने भेल को आवंटित जमीन की लीज डीड तत्काल तैयार करवाने की सिफारिश करते हुए यह भी स्पष्ट किया था कि लीज डीड नहीं होने की स्थिति में उपरोक्त जमीन पर भेल का अधिकार स्थापित नहीं होगा। बावजूद इसके भेल ने अब तक अधिकार पत्र नहीं बनवाया।
कहानी 1957 से शुरू होती है। दरअसल, 1957 से 1962 के बीच मप्र में कांग्रेस की कैलाशनाथ काटजू सरकार ने भोपाल में 6045 एकड़ जमीन केंद्र सरकार को भेल कारखाना स्थापित करने के लिए दी थी। अधिग्रहण से लेकर संबंधितों को मुआवजा भी राज्य सरकार ने ही दिया था। जमीन आवंटन के बाद गजट नोटिफिकेशन भी हुआ और भेल के पक्ष में भू-अर्जन अधिनियम की धारा 11 के तहत अवार्ड पारित किया गया। इसके बाद पांच-साला खसरा संशोधन में भी भेल के नाम प्रविष्टि हुई, लेकिन भेल ने अब तक राज्य सरकार से जमीन का अधिकार पत्र नहीं बनवाया। मुश्किल तब खड़ी हुई जब राज्य सरकार ने गोल्फ कोर्स और अन्य उपयोग के लिए भेल से खाली पड़ी जमीन वापस मांग ली। इसे लेकर भेल प्रबंधन हाई कोर्ट चला गया है, जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार ने जवाब मांगा है।
764.5 एकड़ पर हुआ अतिक्रमण
भेल को आवंटित जमीन में से करीब 4000 एकड़ जमीन पर कारखाना, आवासीय परिसर समेत अन्य निर्माण हैं, जबकि करीब 2000 एकड़ जमीन खाली पड़ी है। इसमें करीब 764.5 एकड़ पर अतिक्रमण हो चुका है। इसे लेकर 2010 में तत्कालीन भोपाल कमिश्नर मनोज श्रीवास्तव ने राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव को रिपोर्ट में स्पष्ट किया था कि भेल प्रबंधन ने अब तक अधिकार अनुबंध पत्र नहीं बनवाया है, इसलिए जमीन पर भेल का अधिकार नहीं रह जाता। इसके बाद राज्य सरकार ने बी और सी श्रेणी की 1161 एकड़ जमीन को 8 मई 2019 को वापस ले लिया था।
भोपाल के कलेक्टर अविनाश लवानिया ने कहा, 'भेल के नाम पर अब तक कोई लीज डीड नहीं बनाई गई है। जमीन आवंटन पर उसकी लीज डीड आवश्यक होती है। उसी में जमीन का क्षेत्र, लीज रेंट, लीज का समय और शर्तो का उल्लेख होता है, जिससे संबंधित का अधिकार स्थापित होता है।'
भेपाल भेल के वरिष्ठ प्रवक्ता ने कहा, 'भेल भारत सरकार का उपक्रम है। राज्य शासन ने भू-अर्जन कर केंद्र सरकार को जमीन दी थी। केंद्र सरकार ने यह उपक्रम लगाया है। इसमें कोई त्रुटि वाला सवाल नहीं उठता है।'
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