Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मध्य प्रदेश : मालवा से निकलीं गेहूं की दो जुड़वां किस्में, एक अहिल्या तो दूसरी वाणी

    By TaniskEdited By:
    Updated: Tue, 09 Feb 2021 10:29 AM (IST)

    मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र से गेहूं की दो जुड़वां किस्में एक साथ निकली हैं। जल्द ही ये गेहूं उत्पादक राज्यों के खेतों में लहलहाती नजर आएंगी। इनका नाम पूसा-अहिल्या और पूसा-वाणी है। बीज रूप में दोनों के माता-पिता एक ही हैं।

    Hero Image
    इंदौर स्थित गेहूं अनुसंधान केंद्र में लहलहाती अहिल्या और वाणी किस्म की गेहूं। सौ: अनुसंधान केंद्र

    जितेंद्र यादव, इंदौर। मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र से गेहूं की दो जुड़वां किस्में एक साथ निकली हैं। जल्द ही ये गेहूं उत्पादक राज्यों के खेतों में लहलहाती नजर आएंगी। इनका नाम पूसा-अहिल्या और पूसा-वाणी है। बीज रूप में दोनों के माता-पिता एक ही हैं। एक ही माता-पिता की दो संतानें रूप और गुण में हमेशा एक-सी नहीं होतीं, उसी तरह अहिल्या और वाणी में भी कुछ अंतर है। अहिल्या की परवरिश मध्य भारत की जलवायु के हिसाब से हुई है और वाणी को प्रायद्वीपीय (समुद्र तट) राज्यों की जलवायु के अनुकूल बनाया गया है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के इंदौर स्थित क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र ने दोनों प्रजातियों को विकसित किया है। दोनों में बहनों का रिश्ता इसलिए कहा जा रहा है, क्योंकि इन्हें गुजरात और पंजाब के बीजों की क्रासिंग करवाकर विकसित किया गया है। दोनों के मातृ-पितृ बीज एक ही हैं। एक ही अनुसंधान केंद्र पर एक ही समय, एक ही वातावरण में विकसित होने से दोनों जुड़वां मानी जा रही हैं।

    पूसा-वाणी का विज्ञानी नाम एचआइ-1633 है तो पूसा-अहिल्या का एचआइ-1634 है। केंद्र सरकार ने हाल ही में गजट में अधिसूचना प्रकाशित कर इनको मान्यता दे दी है। इंदौर के क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र के प्रभारी और बीज प्रजनक डा. एसवी साईप्रसाद का कहना है कि इन दोनों किस्मों की पैदावार ही नहीं गुणवत्ता भी पुरानी किस्मों से बेहतर है। पूसा-वाणी को विद्या और वाणी की देवी सरस्वती के नाम पर समर्पित किया गया है, जबकि पूसा-अहिल्या का नामकरण होलकर राजवंश की लोकमाता देवी अहिल्याबाई होलकर के सम्मान में किया गया है। अक्टूबर से इनका ब्रीडर (प्रजनक) बीज मिलेगा। बीज निगम और बीज उत्पादक संस्थाओं को इसका बीज उपलब्ध करवाकर फाउंडेशन (आधार) बीज तैयार किया जाएगा। इसके बाद प्रामाणिक बीज तैयार होगा, जो तीसरे साल किसानों को बोने के लिए मिल सकेगा।

    खूबी: अहिल्या पैदावार में धनवान, वाणी गुणों की खान

    पूसा-अहिल्या की पैदावार अधिक है, जबकि पूसा-वाणी गुणवत्ता में भारी है। दोनों किस्मों की रोटी मुलायम होगी। बिस्कुट बनाने में भी इसका बेहतर इस्तेमाल किया जा सकेगा। दोनों की फसल 110 से 115 दिन में तैयार होगी। पूसा अहिल्या का अधिकतम उत्पादन 70.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगा। इसमें आयरन 38.0 पीपीएम (पा‌र्ट्स पर मिलियन), जिंक 37.0 पीपीएम और प्रोटीन 12 प्रतिशत से अधिक है। यह देश के मध्य भाग यानी मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान के कोटा व उदयपुर क्षेत्र और उत्तर प्रदेश के झांसी क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल प्रजाति है। पूसा वाणी का अधिकतम उत्पादन 65.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होगा। इसमें आयरन, जिंक और प्रोटीन पूसा-अहिल्या से भी अधिक होगा। आयरन 41.6 पीपीएम, जिंक 41.1 पीपीएम और प्रोटीन 12.5 प्रतिशत से भी ज्यादा होगा। गेहूं की यह प्रजाति महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों के लिए उपयुक्त रहेगी।

    पहले निकली किस्मों से इसलिए बेहतर

    इंदौर क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र से इससे पहले 2007 में शरबती गेहूं की किस्म पूर्णा (एचआइ-1544) निकाली गई थी। इसके बाद 2010 में पूसा-111 (एचडी—2932) जारी हुई थी। दोनों किस्मों में प्रोटीन का स्तर 12 प्रतिशत से कम है। साथ ही आयरन और जिंक की मात्रा भी पूसा-वाणी और पूसा-अहिल्या के मुकाबले कम है। दोनों 120 से 125 दिन में पककर तैयार होती हैं।

    comedy show banner
    comedy show banner