पाक्सो कानून में प्रेम का पेच, प्यार में पड़े किशोरों को केस से बचाने की मांग ने पकड़ा जोर
गैर-इरादतन अपराधी बने इन लोगों को आपराधिक मामलों से बचाने के लिए पाक्सो कानून में संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र पर पुनर्विचार की मांग जोर पकड़ रही है। हाल ही में कर्नाटक हाई कोर्ट ने यह मुद्दा विचार के लिए विधि आयोग को भेजा था।

नई दिल्ली, माला दीक्षित। बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए लाया गया बाल यौन उत्पीड़न निरोधक कानून (पाक्सो) अपराधियों को पकड़ने और सजा देने के उद्देश्य पर तो बखूबी खरा उतर रहा है, लेकिन आजकल चर्चा कानून के दूसरे पहलू पर है। पाक्सो कानून में प्रेम का पेच फंस गया है और प्यार में पड़े किशोरों को आपराधिक मामलों से बचाने की मांग जोर पकड़ रही है। पहली आवाज न्यायपालिका से उठी है क्योंकि उसी के सामने ऐसे केस आ रहे हैं जिसमें 16 से 18 वर्ष के प्रेम में फंसे किशोर-किशोरियों के सहमति से बनाए गए यौन संबंध उन्हें यौन अपराधियों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर रहे हैं।
सहमति की उम्र पर पुनर्विचार की मांग पकड़ी जोर
गैर-इरादतन अपराधी बने इन लोगों को आपराधिक मामलों से बचाने के लिए पाक्सो कानून में संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र पर पुनर्विचार की मांग जोर पकड़ रही है। हाल ही में कर्नाटक हाई कोर्ट ने यह मुद्दा विचार के लिए विधि आयोग को भेजा था। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मदन लोकुर ने यही बात एक कान्फ्रेंस में कही थी। अब प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने विधायिका से पाक्सो कानून में सहमति की उम्र के मुद्दे पर विचार करने को कहा है। गेंद अब विधायिका के पाले में है।
कौन होगा पाक्सो कानून में अपराधी
पाक्सो कानून 18 वर्ष तक बच्चा मानता है। 18 वर्ष से कम उम्र में सहमति से संबंध बनाने का कानून में कोई महत्व नहीं है। ऐसे में अगर कोई प्रेम में पड़कर आपसी सहमति से नाबालिग से संबंध बनाता है तो भी संबंध बनाने वाला व्यक्ति पाक्सो कानून में अपराधी होगा। बांबे हाई कोर्ट ने 12 अप्रैल को नाबालिग पत्नी से संबंध बनाने के आरोपित पति को अग्रिम जमानत देने से इन्कार कर दिया था। वह मामला तब खुला जब नाबालिग महिला ने अस्पताल में बच्चे को जन्म दिया और उसने अपनी उम्र 17 वर्ष बताई तब पति के विरुद्ध एफआइआर दर्ज हुई थी।
पाक्सो एक्ट के मुद्दे पर विचार के लिए हुई बैठक
यह वाकया इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले माह मद्रास हाई कोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमेटी की जेजे एक्ट और पाक्सो एक्ट के मुद्दे पर विचार के लिए हुई बैठक में ठीक इस तरह के मामलों का उदाहरण दिया गया। अभी हाल में तीन दिसंबर को तमिलनाडु के डीजीपी ने राज्य की पुलिस को निर्देश दिया कि आपसी सहमति से प्रेम में बनाए गए संबंधों में जल्दबाजी में पाक्सो के तहत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी।
पहले नोटिस जारी करके मामले की जांच की जाएगी। अगर जरूरत हुई तो एसपी और डीसीपी की इजाजत से ही गिरफ्तारी की जाएगी। यानी कानून में बदलाव होगा तब होगा, लेकिन देश के एक राज्य तमिलनाडु में प्रेम में पड़कर नाबालिग से संबंध बनाने पर तत्काल गिरफ्तारी पर एक प्रकार से रोक लग गई है।
जुवेनाइल जस्टिस कमेटी और पाक्सो कमेटी की संयुक्त बैठक
तमिलनाडु के डीजीपी ने यह आदेश स्वयं नहीं दिया है, बल्कि हाई कोर्ट के निर्देश पर दिया है। मद्रास हाई कोर्ट की जुवेनाइल जस्टिस कमेटी और पाक्सो कमेटी की संयुक्त बैठक गत पांच नवंबर को हुई थी, इसमें प्रेम में पड़कर सहमति से बनाए गए नाबालिग से संबंध में पाक्सो के तहत आपराधिक मुकदमा चलने और पुरुष के जेल जाने की घटनाओं पर चिंता जताई गई थी। विचार-विमर्श के बाद उक्त प्रस्ताव पारित किया था जिसे पुलिस को लागू करने का निर्देश दिया गया था।
उस बैठक में चर्चा के दौरान पाया गया कि पाक्सो में दर्ज 60 प्रतिशत मामले आपसी सहमति से प्रेम में बने संबंधों के होते हैं। इन मामलों में प्रेम में पड़कर 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से संबंध बनाने पर किशोर के खिलाफ पाक्सो कानून की कठोर धाराओं में मुकदमा दर्ज होता है और वह जेल जाता है। सारे पहलुओं और सामाजिक स्थिति पर विचार के बाद कमेटी ने इस बावत प्रस्ताव पारित किया था, जिसे डीजीपी ने लागू किया है।
पाक्सो कानून में सहमति की उम्र पर विचार करने का आग्रह
शनिवार को प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने पाक्सो कानून पर दो दिवसीय कार्यक्रम के दौरान विधायिका से पाक्सो कानून में सहमति की उम्र पर विचार करने का आग्रह किया है। देखना होगा कि विधायिका क्या कदम उठाती है, लेकिन पाक्सो कानून में बदलाव में राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग (एनसीपीसीआर) की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
बाल आयोग के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो न्यायपालिका की ओर से पाक्सो कानून में संशोधन और सहमति की उम्र में बदलाव की उठ रही मांग पर कहते हैं कि जनवरी-फरवरी में राष्ट्रीय बाल आयोग की राज्य बाल आयोगों के साथ नियमित बैठक होगी और उसमें इस विषय से जुड़े सभी पहलुओं पर चर्चा होगी।
इस चर्चा में निष्कर्ष कुछ भी निकले, लेकिन बता दें कि राष्ट्रीय बाल आयोग की सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लंबित हैं जिसमें पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के 16 वर्ष की मुस्लिम लड़की की मर्जी से 21 वर्ष के मुस्लिम लड़के से की गई शादी को सही ठहराने के फैसले को चुनौती दी गई है। हाई कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में मुस्लिम ला लागू होगा।
लेकिन बाल आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि 18 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़की से शारीरिक संबंध बनाना पाक्सो कानून में यौन हमला माना जाएगा और उस बच्ची की शादी होने से भी इस स्थिति में कोई अंतर नहीं आएगा। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर 17 अक्टूबर को नोटिस जारी किया था। इन सब चीजों को देखते हुए पाक्सो कानून में संशोधन का मामला इतना आसान नहीं दिखता क्योंकि पाक्सो के साथ ही और कानून भी हैं जिनमें बदलाव की जरूरत होगी।
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