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    पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत, लोकपाल ने की खारिज; कहा- अन्य विकल्प अपनाने की छूट

    देश के पूर्व मुख्य न्यााधीश डीवाई चंद्रचूड़ के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार की शिकायत को लोकपाल ने खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता को अन्य विकल्प अपनाने की स्वतंत्रता है। मगर यह मामला हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है। लोकपाल के पास शिकायत 18 अक्टूबर 2024 को दाखिल की गई थी। वहीं 10 नवंबर को डीवाई चंद्रचूड़ मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।

    By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 06 Jan 2025 11:38 PM (IST)
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    पूर्व प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़। ( फाइल फोटो )

    पीटीआई, नई दिल्ली। लोकपाल ने पूर्व प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के विरुद्ध कथित भ्रष्टाचार की शिकायत को अधिकार क्षेत्र से बाहर होने के कारण खारिज कर दिया है। यह शिकायत 18 अक्टूबर, 2024 को दाखिल की गई थी तब जस्टिस चंद्रचूड़ प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) थे। शिकायत में खास राजनेताओं व राजनीतिक दलों को लाभ पहुंचाने व बचाने के लिए पद के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया था जो भ्रष्टाचार सरीखा है।

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    10 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए जस्टिस चंद्रचूड़

    जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हुए थे। लोकपाल ने अपने तीन जनवरी के आदेश में विस्तार से पड़ताल की कि क्या पदासीन सीजेआई या सुप्रीम कोर्ट का कोई न्यायाधीश लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम की धारा-14 के दायरे में आता है, लेकिन 382 पृष्ठों की शिकायत में शामिल विविध आरोपों पर विस्तारपूर्वक चर्चा से परहेज किया।

    शिकायतकर्ता अन्य विकल्प अपनाने को स्वतंत्र

    लोकपाल चेयरपर्सन जस्टिस एएम खानविलकर और पांच अन्य सदस्यों की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि शिकायतकर्ता कानून के तहत अन्य विकल्प अपनाने के लिए स्वतंत्र हैं। साथ ही कहा कि उन्होंने आरोपों की मेरिट पर कोई राय व्यक्त नहीं की है। लोकपाल ने अधिनियम की धारा-14 के तहत विभिन्न प्रविधानों की पड़ताल की। इसमें लोकपाल के क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, ग्रुप ए, बी, सी व डी के अधिकारी और केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल हैं।

    आदेश के अनुसार, कोई कार्यरत न्यायाधीश या प्रधान न्यायाधीश धारा-14 के प्रविधान ए से ई, जी और एच के दायरे में नहीं आएगा।

    सिर्फ प्रविधान एफ ही लागू हो सकता है जो कहता है कि कोई भी व्यक्ति जो किसी भी 'निकाय' या बोर्ड या निगम या प्राधिकरण या कंपनी या सोसायटी या ट्रस्ट या स्वायत्त निकाय का अध्यक्ष या सदस्य या अधिकारी या कर्मचारी है या रहा है और जो संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित या पूरी तरह या आंशिक रूप से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित या उसके द्वारा नियंत्रित है।

    मगर सुप्रीम कोर्ट संसद के अधिनियम नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद-124 द्वारा स्थापित है और वह केंद्र द्वारा पूर्ण या आंशिक रूप से वित्तपोषित भी नहीं है।

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