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    शहरों में चरमराते ढांचे का बड़ा कारण स्थानीय निकाय चुनाव व स्थानीय परिषदों के गठन में देरी, रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा

    Updated: Sun, 24 Aug 2025 10:39 PM (IST)

    शहरी ढांचे की समस्याओं पर एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश के 17 राज्यों में 61% शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव में देरी हुई है जिसके कारण कई शहरों में प्रशासकों के अधीन काम चल रहा है। CAG की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली और गुरुग्राम में 7 महीने और बेंगलुरु में 55 महीने की देरी हुई। रिपोर्ट में चुनाव में देरी के कई कारण बताए गए हैं।

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    रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा (फाइल फोटो)

    माला दीक्षित, नई दिल्ली। पूरे देश में शहरी ढांचे चरमरा रहे हैं। कहीं थोड़ी सी बारिश से बाढ़ के हालात हैं, तो कहीं आवारा पशु, स्वच्छता की कमी और प्रदूषण का बढ़ता स्तर समस्या है। बहुत जगह जनता पानी और सीवर की दिक्कतों से जूझ रही है। इसकी जिम्मेदारी स्थानीय निकायों और नगर निगमों की है।

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    इनकी लगाम कसते हैं स्थानीय निकाय चुनाव के जरिये जनता के चुने हुए प्रतिनिधि, जो जनता की आवाज बनकर तत्परता से काम कराते हैं। इसके लिए जरूरी है कि समय पर स्थानीय निकाय चुनाव हों और स्थानीय परिषदों का गठन हो। लगभग पूरे देश में स्थानीय निकाय चुनावों में काफी देरी होती है।

    रिपोर्ट में हुआ खुलासा

    एक रिपोर्ट बताती है कि देश के 17 राज्यों में 61 प्रतिशत शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों में देरी हुई।गैरसरकारी संगठन 'जनाग्रह' ने हाल में शहरी स्थानीय चुनावों में होने वाली देरी का विश्लेषण कर सुधार के मार्ग सुझाते हुए रिपोर्ट जारी की है। इसमें सीएजी की परफार्मेंस आडिट रिपोर्ट के हवाले से उपरोक्त तथ्य बताया गया है।

    देरी के लिए परिसीमन से लेकर परिषद गठन के तक कई कारण बताए गए हैं। चुनाव में देरी के परिणाम स्वरूप कई शहरों में निर्वाचित परिषदों और मेयरों (महापौर) के बजाय राज्य द्वारा नियुक्त प्रशासकों के अधीन काम चल रहा है।

    CAG की रिपोर्ट में कौन-सी बात आई सामने

    विलंब खत्म करने के लिए समान मतदाता सूची, राज्य चुनाव अधिकारियों की स्वायत्तता में वृद्धि और पारदर्शी रिपोर्टिंग तंत्र पर बल दिया गया है। अध्ययन में पाया गया है कि कई शहरों में नगरीय परिषद का कार्यकाल पूरा होने से पहले चुनाव नहीं कराए गए।

    सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक, सात महीने की देरी दिल्ली व गुरुग्राम में तो बेंगलुरु में 55 महीने की देरी हुई। नगर निगम के चुनाव कराने में कर्नाटक में औसतन 22 महीने की देरी हुई। इनमें मेयर के चुनाव और परिषद के गठन में औसतन 11 महीने की और देरी हुई।

    कब होगी बैठक

    रिपोर्ट में कहा गया है कि काउंसिल की पहली बैठक कब होगी इसके बारे में कोई कानूनी समयसीमा तय नहीं है और यहीं से पांच वर्ष के कार्यकाल में देरी आरंभ हो जाती है।

    देरी के हैं कई कारण

    देरी के कारणों में बताया गया है कि 34 राज्य चुनाव आयोगों में से सिर्फ आठ के पास वार्ड परिसीमन और आरक्षण की शक्ति है। कुछ राज्यों में परिसीमन और आरक्षण के मुद्दे के कारण देरी हुई जिसमें गुजरात, गोवा, हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक और उत्तराखंड हैं।

    महाराष्ट्र और कर्नाटक सहित कुछ राज्यों ने राज्य चुनाव आयोग से परिसीमन और आरक्षण की शक्ति वापस ले ली है। संवैधानिक प्रविधान कहते हैं कि काउंसिल का कार्यकाल समाप्त होने या फिर उसके भंग होने के छह महीने के भीतर चुनाव होने चाहिए, मगर अक्सर इसका उल्लंघन होता है।

    चुनाव बाद परिषद की पहली बैठक, मेयर और स्टैं¨डग कमेटी के सदस्यों के चुनाव आदि की टाइमलाइन तय नहीं होना भी देरी का कारण होता है। राज्यों में इस पर एक समान टाइमलाइन की जरूरत बताई गई है।

    स्थानीय चुनाव में देरी कई बार राजनीतिक कारणों और परिस्थितियों से भी होती है। कई बार मामले कोर्ट जाते हैं एवं उससे और देरी होती है। राज्य सरकारों द्वारा नियमों में संशोधन करने के कारण भी देरी होती है।

    असीमित शक्ति के कानून भी रोड़ा

    'जनाग्रह' के पॉलिसी एंगेजमेंट निदेशक संतोष नरगुंड कहते हैं कि स्थानीय निकायों के बारे में राज्यों को असीमित शक्ति देने वाले कानून भी इसमें रोड़ा बन रहे हैं। यहां तक कि जब निर्वाचित परिषदों का गठन हो जाता है, तब भी उन्हें राज्य सरकारों द्वारा भंग किया जा सकता है।

    विधानसभा से किसी मंजूरी की जरूरत नहीं है। सीएजी आडिट में पाया गया कि आडिट किए गए 18 राज्यों में से 14 राज्य सरकारों को शहरी स्थानीय निकाय भंग करने का अधिकार है।