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पीएमएलए मामले में देखना है, फैसले पर बड़ी पीठ पुनर्विचार करे या नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को डी की मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल संपत्ति को कुर्क करने और गिरफ्तारी की शक्तियों को बरकरार रखने संबंधी मामले में सुनवाई की। कोर्ट ने कहा कि पुनर्विचार करने की आवश्यकता है या नहीं। यह सीमित दायरा है। हमें यह भी देखना होगा कि क्या मामले को पांच जजों के पास भेजे जाने की जरूरत है।

By AgencyEdited By: Manish NegiPublished: Wed, 22 Nov 2023 11:23 PM (IST)Updated: Wed, 22 Nov 2023 11:23 PM (IST)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, फैसले पर बड़ी पीठ पुनर्विचार करे या नहीं

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि ईडी की मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल संपत्ति को कुर्क करने और गिरफ्तारी की शक्तियों को बरकरार रखने संबंधी 2022 के फैसले को लेकर उसे केवल यह देखना है कि क्या उस पर पांच जजों की बड़ी पीठ के पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया कि प्रिवेंशन आफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) देश के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। वहीं, याचिकाकर्ता ने दावा किया कि ईडी एक बेलगाम घोड़ा बन गया है और वह जहां चाहे वहां जा सकता है।

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जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की पीठ कुछ मानदंडों पर तीन जजों की पीठ द्वारा 27 जुलाई, 2022 के फैसले पर पुनर्विचार के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। उस फैसले में शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा था।

क्या बोले कपिल सिब्बल?

पीठ ने बुधवार को कहा, 'पुनर्विचार करने की आवश्यकता है या नहीं। यह सीमित दायरा है। हमें यह भी देखना होगा कि क्या मामले को पांच जजों के पास भेजे जाने की जरूरत है।' याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील शुरू करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, 'मैं यहां यह कहने नहीं आया हूं कि निर्णय सही है या गलत। मैं यहां केवल प्रथम दृष्टया आपको यह सुझाव देने के लिए उपस्थित हुआ हूं कि मुद्दे कानून के शासन के लिए इतने मौलिक हैं कि इस पूरे मुद्दे पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।'

शुरुआत में केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि जब 18 अक्टूबर को मामले की सुनवाई हुई थी तो याचिकाकर्ताओं ने 'व्यापक परिदृश्य' पर बहस शुरू कर दी थी और उन्होंने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि अधिनियम की धारा 50 और 63 को चुनौती के अलावा कोई दलील नहीं है। पीएमएलए की धारा 50 समन, दस्तावेज पेश करने और साक्ष्य देने के संबंध में अधिकारियों की शक्तियों से संबंधित है, वहीं धारा 63 गलत जानकारी या जानकारी देने में विफलता के लिए सजा से संबंधित है। मेहता ने कहा कि उन्हें एक संशोधित याचिका मिली है, जो पीएमएलए के तहत हर चीज को चुनौती देती है और कहती है कि 2022 के फैसले पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।

सिब्बल ने पीएमएलए के कई प्रविधानों का जिक्र करते हुए कहा कि कानून के शासन का मूल सिद्धांत यह है कि जिस व्यक्ति को जांच एजेंसी ने तलब किया है, उसे पता होना चाहिए कि उसे गवाह के रूप में बुलाया गया है या आरोपित के रूप में। उन्होंने कहा, 'अगर मुझे (किसी व्यक्ति) बुलाया जा रहा है तो मुझे पता होना चाहिए कि मुझे क्यों और किस हैसियत से बुलाया जा रहा है।'

क्या है याचिकाकर्ताओं का दावा?

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि ईडी आइपीसी की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) का इस्तेमाल करके आयकर चोरी जैसे मामलों में पीएमएलए लागू कर रहा है। पीठ ने कहा कि जब कथित साजिश किसी अनुसूचित अपराध से संबंधित नहीं है तो ईडी आइपीसी की धारा 120-बी का उपयोग करके पीएमएलए लागू नहीं कर सकता। मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी।


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