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    Life Insurance लेने के बाद आप भी तो नहीं कर रहे ये बड़ी गलती, क्लेम को लेकर SC ने सुनाया अहम फैसला

    Updated: Thu, 27 Feb 2025 05:20 PM (IST)

    SC on Life insurance claim जीवन बीमा पॉलिसी के क्लेम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। फैसले में बीमा पॉलिसी लेने वालों को सचेत भी किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीमा एक अत्यंत विश्वास का अनुबंध है और सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा करना बीमाधारक का कर्तव्य है। ऐसे तथ्य का खुलासा न करने पर दावे को खारिज किया जा सकता है।

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    SC on Life insurance claim सुप्रीम कोर्ट ने क्लेम पर फैसला सुनाया। (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जीवन बीमा पॉलिसी (Life Insurance Policy) के क्लेम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष न्यायालय ने अपने फैसले में बीमा पॉलिसी लेने वाले ऐसे ही लोगों को सचेत भी किया है। 

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    मौजूदा पॉलिसियों का खुलासा करना जरूरी

    दरअसल, कोर्ट ने कहा कि जीवन बीमा लेते वक्त अन्य मौजूदा पॉलिसियों का खुलासा न करने पर क्लेम दावे को खारिज किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीमा एक अत्यंत विश्वास का अनुबंध है और सभी महत्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा करना बीमाधारक का कर्तव्य है। ऐसे तथ्य का खुलासा न करने पर दावे को खारिज किया जा सकता है।

    हालांकि, कोर्ट ने मौजूदा केस में अपीलकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बीमा कंपनी को 9 फीसद सालाना ब्याज के साथ बीमा राशि देने को कहा।

    ये है पूरा मामला

    लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने वर्तमान मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि अपीलकर्ता के पिता ने प्रतिवादी (एक्साइड लाइफ इंश्योरेंस) से 25 लाख रुपये की बीमा पॉलिसी ली थी। अपने पिता की मृत्यु के बाद, अपीलकर्ता ने पॉलिसी के तहत लाभ के भुगतान के लिए दावा प्रस्तुत किया।

    अपीलकर्ता ने बीमा पॉलिसियों को छिपाया

    हालांकि, इस आधार पर दावे को खारिज कर दिया गया कि अपीलकर्ता के पिता ने अवीवा लाइफ इंश्योरेंस से ली गई केवल एक पॉलिसी का खुलासा किया जबकि अन्य जीवन बीमा पॉलिसियों को छिपाया। 

    इसके बाद अपीलकर्ता के दावे को राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने खारिज कर दिया था, इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    शुरू में सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता द्वारा बताई गई पॉलिसी 40 लाख रुपये की थी। यह राशि उन पॉलिसियों से काफी अधिक थी, जिनका खुलासा नहीं किया गया था, जिनकी कुल राशि 2.3 लाख रुपये थी।

    हालांकि, कोर्ट ने पाया कि इससे बीमाकर्ता को यह प्रश्न करने का अवसर मिल गया कि बीमाधारक ने इतने कम समय में दो अलग-अलग जीवन बीमा पॉलिसियां क्यों लीं।

    कोर्ट ने कहा- बीमाधारक ने पर्याप्त खुलासे किए

    हालांकि, वर्तमान मामले के संबंध में न्यायालय ने पाया कि बीमाधारक ने पहले ही पर्याप्त खुलासा कर दिया था, जबकि अन्य पॉलिसियां महत्वहीन राशि की थीं। 

    अपीलकर्ता के पिता ने प्रस्ताव फॉर्म दाखिल करते समय अपने द्वारा ली गई एक अन्य जीवन बीमा पॉलिसी का खुलासा किया था, लेकिन अन्य समान पॉलिसियों का खुलासा करने में विफल रहे। कोर्ट ने कहा कि जिन पॉलिसी की बात हो रही है वो मेडिक्लेम पॉलिसी नहीं थी, वो जीवनबीमा कवर है और बीमाधारक की मृत्यु दुर्घटना के कारण ही हुई है। कोर्ट ने कहा कि इस कारण दूसरी पॉलिसी का खुलासा न करना इस पॉलिसी के संबंध में महत्वहीन है।

    कंपनी को बीमा राशि देने का आदेश

    कोर्ट ने इसके बाद कहा कि कंपनी द्वारा दावा खारिज करना अनुचित है, इसलिए कंपनी को 9 फीसद प्रति वर्ष ब्याज के साथ बीमा राशि देनी होगी।

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