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    वामपंथियों पर बरसे हिमंत बिस्वा सरमा, बोले- नए सिरे से इतिहास लिखने की जरूरत

    गुवाहाटी में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 28वें राज्य सम्मेलन को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने कहा कि वामपंथियों ने हमेशा हमारे इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि इतिहास को नए सिरे से लिखने का वक्त आ गया।

    By AgencyEdited By: Anurag GuptaUpdated: Sun, 08 Jan 2023 11:10 PM (IST)
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    वामपंथियों ने इतिहास विकृत किया, फिर से लिखने की जरूरत : हिमंत (फोटो: @himantabiswa)

    गुवाहाटी, पीटीआई। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने वामपंथी इतिहासकारों पर भारतीय इतिहास को पराजय और समर्पण की कहानी बनाकर विकृत करने का आरोप लगाया और कहा कि देश की विजयगाथा दर्ज करने के लिए इतिहास को फिर से लिखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि वामपंथी विचारधारा के लोग दशकों से राज्य को भाषायी आधार पर विभाजित करने की कोशिश करते रहे हैं और लोगों को इनसे सतर्क रहना चाहिए।

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    वामपंथियों ने इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश की

    अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 28वें राज्य सम्मेलन को संबोधित करते हुए सरमा ने कहा कि वामपंथियों ने हमेशा हमारे इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश की है क्योंकि वे भारत को एक पराजित समुदाय के रूप में पेश करना चाहते थे। उन्होंने दावा किया वे उन राजाओं और नायकों की उपेक्षा करते हैं जिन्होंने मुगलों के हमलों का साहस के साथ सामना किया और उन्हें हराया।

    मुगलों के खिलाफ लड़ी गई सफलतापूर्वक जंग

    सीएम ने कहा कि वामपंथी इतिहासकारों ने केवल उनके बारे में लिखा जो हार गए। सरमा ने गुरु गोबिंद सिंह, छत्रपति शिवाजी, दुर्गा दास राठौर और लचित बोरफुकन का उदाहरण दिया, जिन्होंने मुगल सेनाओं के खिलाफ सफलतापूर्वक जंग लड़ी। सरमा ने आरोप लगाया कि वामपंथी इतिहासकार इतिहास लिखते समय अपने कारनामों से बाज नहीं आए।

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    इतिहास को नए सिरे से लिखने का आया समय

    उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि इतिहास को नए सिरे से लिखा जाए। उन्होंने कहा कि हमें इतिहास के छात्रों को इसे फिर से लिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए जो पराजय और गुलामी की कहानी न हो, बल्कि गौरव और उपलब्धि की कहानी हो। इससे हमारी नई पीढ़ी को देश निर्माण की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। शर्मा ने वामपंथी बुद्धिजीवियों पर असम के लोगों को भाषायी आधार पर बांटने का भी आरोप लगाया क्योंकि राज्य में कई भाषाएं बोली जाती हैं।

    उन्होंने कहा कि भाषा एक महत्वपूर्ण तत्व है लेकिन यह किसी समुदाय और धर्म की इकलौती पहचान नहीं हो सकती। इतिहास भी समान रूप से अहम भूमिकाएं निभाता है। उन्होंने कहा कि भाषा तभी जीवित रहेगी जब हमारा धर्म और संस्कृति जीवित रहेंगी।

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    आर्थिक आत्मनिर्भरता जरूरी

    उन्होंने कहा कि युवाओं को कौशल विकास, उद्यमशीलता तथा कृषि पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। एक समुदाय को सांस्कृतिक पहचान व राजनीतिक गौरव की आवश्यकता होती है लेकिन अगर हम आर्थिक रूप से प्रगति नहीं करते हैं तो हम आत्मनिर्भर नहीं बन सकते। उन्होंने कहा कि अपनी जमीन खेती के लिए दूसरों को न देकर युवा प्रगतिशील खेती का बीड़ा उठाएं।

    सरमा ने कहा कि गलत तरीके से यह धारणा बनाई गई कि असम और पूर्वोत्तर ऐतिहासिक रूप से भारत के शेष हिस्से से जुड़े हुए नहीं है। इससे आजादी के बाद देश के इस हिस्से में एक अलग विचारधारा जन्मी है।

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