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ब्रीफ के बिना वकील क्रिकेट मैदान पर बिना बल्ले के सचिन तेंदुलकर जैसा, सुप्रीम कोर्ट ने युवा अधिवक्ता को दी सलाह

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि ब्रीफ (मामले की फाइल) के बिना कोई वकील वैसे ही होता है जैसे क्रिकेट मैदान पर बिना बल्ले के सचिन तेंदुलकर। शीर्ष अदालत ने यह बात उस युवा वकील को सलाह देते हुए कही।

By TaniskEdited By: Published: Thu, 28 Oct 2021 10:57 PM (IST)Updated: Thu, 28 Oct 2021 10:57 PM (IST)
ब्रीफ के बिना वकील क्रिकेट मैदान पर बिना बल्ले के सचिन तेंदुलकर जैसा, सुप्रीम कोर्ट ने युवा अधिवक्ता को दी सलाह
सुप्रीम कोर्ट आफ इंडिया । (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि 'ब्रीफ' (मामले की फाइल) के बिना कोई वकील वैसे ही होता है जैसे क्रिकेट मैदान पर बिना बल्ले के सचिन तेंदुलकर। शीर्ष अदालत ने यह बात उस युवा वकील को सलाह देते हुए कही जिसने हाल ही में एक वकील के रूप में पंजीकरण कराया है। शीर्ष अदालत ने वकील से कहा कि उन्हें जब भी अदालत के सामने पेश होना हो तो वह मामले की फाइलें पढ़कर आएं।

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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की एक पीठ ने युवा वकील से यह बात तब कही जब वकील ने अपने वरिष्ठ की अनुपस्थिति के चलते दलीलें पेश करने की अनुमति मांगी और कहा कि इससे उन्हें उनके करियर को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। पीठ ने कहा, 'आपने अपने कालेज में मूट कोर्ट (परिकल्पित अदालत) में हिस्सा लिया होगा। इसे मूट कोर्ट मानें। हमारे पास भोजनावकाश में अभी 10 मिनट हैं। आपने ब्रीफ पढ़े होंगे। कृपया दलीलें पेश करें। हम जानते हैं कि आप दलीलें पेश कर सकते हैं। जब भी आपके वरिष्ठ अनुपस्थित हों तो आपको मामले में दलीलें पेश करने के अवसर का लाभ उठाना चाहिए।'

एक 'मूट कोर्ट' वह होती है जिसमें कानून के छात्र अभ्यास के लिए काल्पनिक मामलों पर दलीलें पेश करते हैं। शीर्ष अदालत ने वकील से पूछा कि वह कक्षों में क्या करते हैं और क्या वह मामले की फाइलें पढ़ते हैं। शीर्ष अदालत ने युवा वकील से कहा, 'आपको हमेशा मामले की फाइलों को पढ़ना चाहिए और जब भी आपको अदालत के सामने पेश होना हो तो ब्रीफ के साथ तैयार रहना चाहिए।'

वकील का वरिष्ठ का पदनाम अस्थायी रूप से किया बहाल

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक वकील यतिन एन. ओजा का वरिष्ठ का पदनाम दो साल के लिए अस्थायी रूप से बहाल कर दिया। अदालत और उसकी रजिस्ट्री के खिलाफ उनकी कथित टिप्पणियों के लिए गुजरात हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने सर्वसम्मति से उनसे यह पदनाम वापस ले लिया था। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस आरएस रेड्डी की पीठ ने कहा कि वे हाई कोर्ट के दृष्टिकोण का सम्मान करते हैं, लेकिन फिर भी वकील को एक और आखिरी मौका देने की कोशिश कर रहे हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ वकील के रूप में हाई कोर्ट ही उनके व्यवहार और आचरण को देखेगा और फैसला करेगा। इसके बाद उन्हें और कोई अवसर नहीं मिलेगा।


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