अब वित्तीय पारदर्शिता न अपनाने वाले शिक्षण संस्थानों को नहीं मिलेगा फंड, यूजीसी ने नोटिस जारी किया
यूजीसी ने देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों नोटिस जारी करके उन्हें सरकार से मिलने वाली राशि और उसके खर्च का पूरा ब्यौरा ऑनलाइन करने के निर्देश दिए हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों में वित्तीय पारदर्शिता कायम करने को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने बड़ी पहल की है। इसके तहत संस्थानों को अब सरकार से मिलने वाली राशि और उसके खर्च का पूरा ब्यौरा ऑनलाइन करना होगा। जो संस्थान ऐसा करने में विफल रहते है, उन्हें आगे से कोई भी वित्तीय मदद नहीं मिलेगी। उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए यूजीसी फिलहाल देश भर के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों को वित्तीय मदद देता है।
यूजीसी ने वित्तीय पारदर्शिता को लेकर यह पहल उस समय की है, जब उच्च शिक्षण संस्थानों से ऐसी अनियमितताओं की शिकायतें लगातार बढ़ रही है। हाल ही में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक ऐसे ही मामले में मानव संसाधन विकास मंत्रालय को दखल देनी पड़ी है। यूजीसी का मानना है कि संस्थानों में वित्तीय पारदर्शिता की एक मजबूत माड्यूल खड़ा कर ऐसी शिकायतों से बचा जा सकेगा।
उच्च शिक्षण संस्थानों को जारी नोटिस में यूजीसी ने संस्थानों से पीएफएमएस (पब्लिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम) से जुड़ने की मांग की है। साथ ही प्रत्येक संस्थानों से ईएटी (एक्सपेंडीचर, एडवांस और ट्रांसफर) माड्यूल के तहत मिलने वाली राशि का ब्यौरा रखने को कहा है।
यूजीसी के मुताबिक इस सिस्टम के तहत संस्थानों को उन लाभार्थियों को भी ब्यौरा देना होगा, जिन्हें छात्रवृत्ति सहित शोध के क्षेत्र में मानदेय दिया जाता है। इसके साथ ही इस व्यवस्था के तहत पैसों का पूरा लेन देन ऑनलाइन ही करना होगा। यानि पैसा सीधे लाभार्थियों के खाते में डालना पड़ेगा। यूजीसी ने संस्थानों को जारी नोटिस में यह भी कहा है कि उनकी ओर से संस्थानों को अब अगली वित्तीय मदद तभी जारी की जाएगी, जब संस्थान ईएटी माड्यूल के तहत पूरा लेखा-जोखा पेश करेंगे।
मौजूदा समय में यूजीसी के अधीन देश में करीब 900 विश्वविद्यालय और करीब 40 हजार कॉलेज संचालित है। सरकार ने हालांकि हाल ही में यूजीसी को खत्म करके उसकी जगह भारतीय उच्च शिक्षा आयोग बनाने की घोषणा की है। फिलहाल इससे जुड़ा प्रस्ताव अभी सरकार के पास ही लंबित है। इसके तहत उच्च शिक्षण संस्थानों से जुड़े नियामक अधिकार आयोग के पास होंगे, जबकि वित्तीय मदद देने का काम मंत्रालय के पास देने का प्रस्ताव है।
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