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    सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश किया खारिज, 33 साल पुराना है जमीन से जुड़ा ये मामला; पढ़ें क्या बोला SC?

    प्रीम कोर्ट ने जमीन के मामले पर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा किसी भी जमीन मालिक को अनिश्चित काल तक जमीन के इस्तेमाल से वंचित नहीं रखा जा सकता। जस्टिस जे बी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा जमीन ऑनर को कई सालों तक जमीन के इस्तेमाल से वंचित नहीं रखा जा सकता।

    By Jagran News Edited By: Shubhrangi Goyal Updated: Wed, 26 Feb 2025 04:07 PM (IST)
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    सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के जमीन मामले पर की सुनवाई (फाइल फोटो)

    डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जमीन के मामले पर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा, किसी भी जमीन मालिक को अनिश्चित काल तक जमीन के इस्तेमाल से वंचित नहीं रखा जा सकता। जस्टिस जे बी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

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    कोर्ट ने कहा, 'जमीन ऑनर को कई सालों तक जमीन के इस्तेमाल से वंचित नहीं रखा जा सकता। एक बार जब किसी जमीन ऑनर पर किसी विशेष तरीके से जमीन का इस्तेमाल न करने का प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तो बैन को अनिश्चित काल तक खुला नहीं रखा जा सकता है।'

    'जमीन को नहीं रखा जा सकता आरक्षित'

    पीठ ने महाराष्ट्र क्षेत्रीय एवं नगर नियोजन अधिनियम, 1966 की धारा 127 का हवाला देते हुए कहा कि पिछले 33 सालों से विकास योजना में जमीन को आरक्षित रखना कोई मतलब नहीं रखता। न्यायालय ने कहा कि प्राधिकरण ने न केवल जमीन ऑनर को जमीन का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी, बल्कि अब खरीदारों को भी जमीन का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जा रही है।

    जमीन मालिक को इस्तेमाल से नहीं कर सकते वंचित

    महाराष्ट्र क्षेत्रीय एवं नगर नियोजन अधिनियम, 1966 की धारा 126 के तहत जमीन अधिग्रहण के लिए दस साल की अवधि प्रदान की गई है। महाराष्ट्र अधिनियम 42, 2015 द्वारा संशोधन से पहले भूमि अधिग्रहण के लिए नोटिस देने के लिए जमीन ऑनर को एक अतिरिक्त वर्ष दिया जाता है। ऐसी समय-सीमा पवित्र है और इसका राज्य या राज्य के अधीन प्राधिकारियों द्वारा पालन किया जाना चाहिए।

    • टॉप न्यायालय एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहा था जिसमें एक खाली जमीन के ऑनर ने 2.47 हेक्टेयर के विकास के लिए भूमि विकास योजना प्रस्तुत की थी।
    • योजना को मंजूरी दी गई और शेष क्षेत्र को अधिनियम के तहत 1993 में संशोधित विकास योजना में एक निजी स्कूल के लिए आरक्षित दिखाया गया।
    • हालांकि, 1993 से 2006 तक महाराष्ट्र के अधिकारियों द्वारा निजी स्कूल के लिए संपत्ति अधिग्रहण करने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई।