भूमि अधिग्रहण विधेयक पर राहुल का वीटो
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। पांच केंद्रीय मंत्रियों के विरोध को दरकिनार करते हुए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर अपना वीटो लगा दिया है। तभी तो केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने दावे के साथ कहा कि यह विधेयक अपने मूल प्रारूप में ही संसद में पेश किया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई कुछ भी कहे मु
नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। पांच केंद्रीय मंत्रियों के विरोध को दरकिनार करते हुए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर अपना वीटो लगा दिया है। तभी तो केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने दावे के साथ कहा कि यह विधेयक अपने मूल प्रारूप में ही संसद में पेश किया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि कोई कुछ भी कहे मुआवजे और पुनर्वास से जुड़े बिल के प्रावधानों पर समझौता नहीं होगा।
ग्रामीण विकास मंत्री के अनुसार विधेयक के प्रावधान भू-स्वामियों के साथ-साथ निवेशकों के अनुकूल तैयार किए गए हैं। विधेयक में जिन सामाजिक प्रभावों के मूल्यांकन [एसएआइ] को लेकर सरकार के कई मंत्रियों को खासी दिक्कतें रही हैं, ग्रामीण विकास मंत्री उसे बिल की आत्मा बताते हैं। रमेश ने कहा कि विधेयक के मौजूदा प्रारूप में किसी तरह का संशोधन या बदलाव संभव नहीं होगा। भूमि अधिग्रहण बिल कांग्रेस का राजनीतिक एजेंडा है।
किसानों के प्रति कथित प्रतिबद्धता जताने वाले संगठन और औद्योगिक संगठन विधेयक के प्रावधानों से संतुष्ट नहीं हो सकते क्योंकि इसमें दोनों पक्षों में संतुलन बनाने की कोशिश की गई है। बीच का रास्ता अख्तियार किया गया है, जो उन्हें नहीं भाएगा। जयराम ने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कुछ चिंताएं हैं, जिन्हें विधेयक के मसौदे में तरजीह दी जाएगी। उनके अनुसार विधेयक के प्रावधान ऐसे नहीं होने चाहिए, जिनसे अफसरशाही का दखल बढ़े। विधेयक की प्रक्रिया सरल हो, जिसमें कम समय में निदान व निपटारा हो सके।
जयराम के मुताबिक किसानों पर दबाव बनाकर भूमि अधिग्रहण संभव नहीं होगा। विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक निजी कंपनियों द्वारा भूमि खरीद की एक सीमा होगी। उससे अधिक जमीन खरीदने वालों को राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। खेती वाली जमीन के अधिग्रहण में राज्यों को पूरी स्वतंत्रता होगी।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की पिछली बैठक में पांच वरिष्ठ मंत्रियों ने प्रस्तावित विधेयक के मसौदे के प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए उन्हें खारिज कर दिया था। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री ने इसे मंत्रिसमूह को सौंपने का एलान किया था, लेकिन मानसून सत्र में बिल पेश न होने का खामियाजा कांग्रेस को आगामी चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। राजनीतिक नफा-नुकसान को देखते हुए विधेयक को मूल स्वरूप में ही पारित कराना अब सरकार की प्राथमिकता हो सकती है।
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