Labour Law: UP-MP समेत 6 राज्यों ने बदला श्रम कानून, 10 बिन्दुओं में जानें अहम बदलाव और उसका असर
उद्योगों को राहत देने को UP MP समेत 6 राज्यों ने श्रम कानूनों में बदलाव किया है। माना जा रहा है कि बिहार समेत कुछ और राज्य भी जल्द ही लेबर कानून में बदलाव की घोषणा कर सकते हैं।
नई दिल्ली [ऑनलाइन डेस्क]। कोरोना महामारी की वजह से दुनिया के तमाम देशों को लॉकडाउन का सामना करना पड़ा रहा है। भारत में पिछले करीब डेढ़ महीने से लागू लॉकडाउन की वजह से उद्योग-धंधे ठप हो चुके हैं और पूरी दुनिया की तरह देश की अर्थव्यवस्था भी डगमगा गई है। इससे उबरने और उद्योगों को दोबारा पटरी पर लाने के लिए अब तक छह राज्य अपने लेबर कानूनों में कई बड़े बदलाव कर चुके हैं। माना जा रहा है कि जल्द ही कुछ और राज्य भी अपने यहां ऐसे बदलावों की घोषणा कर सकते हैं।
श्रम कानूनों में बदलाव की शुरूआत 5 मई को मध्य प्रदेश से हुई थी। इसके बाद 7 मई को उत्तर प्रदेश और गुजरात ने भी लगभग 3 साल के लिए श्रम कानूनों में बदलावों की घोषणा कर दी थी। अब महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा ने भी अपने यहां नए उद्योगों को आकर्षित करने और ठप पड़ चुके उद्योगों को गति देने के लिए यूपी, एमपी व गुजरात की तर्ज पर लेबर कानूनों में संशोधन की घोषणा की है। बिहार समेत कुछ और राज्यों ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए लेबर कानूनों में बदलाव पर विचार शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि बिहार समेत कुछ अन्य राज्य भी जल्द ही ऐसे बदलावों की घोषणा कर सकते हैं। आइये जानते हैं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व गुजरात ने श्रम कानूनों में कौन से 10 प्रमुख बदलाव किये हैं और इसका आप पर क्या असर पड़ेगा।
प्रधानमंत्री ने राज्यों से की थी अपील
पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों संग बैठक कर उद्योग-धंधों को दोबारा एहतियात के साथ शुरू कराने को लेकर चर्चा की थी। साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्रियों से कहा था कि भारत के पास ये अच्छा मौका है कि वह चीन से पलायन करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी तरफ आकर्षित करे। प्रधानमंत्री के इस आव्हान के बाद ही मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व गुजरात ने अपने लेबर कानूनों में बदलावों की घोषणा की थी। इसके बाद महाराष्ट्र, ओडिशा और गोवा ने भी अपने श्रम कानूनों में बदलाव किया है। और अब अन्य राज्य भी ऐसे बदलावों की तैयारी में जुटे हुए हैं।
तीन वर्ष की मिली है छूट
यूपी, एमपी व गुजरात ने लगभग तीन वर्ष (1000 दिन) के लिए उद्योगों को न केवल लेबर कानून से छूट दी है, बल्कि उनके रजिस्ट्रेशन और लाइसेंसिंग प्रक्रिया को भी ऑनलाइन व सरल कर दिया है। इसी तर्ज पर अन्य राज्य भी लेबर कानूनों में बदलाव कर रहे हैं। नए उद्योगों को अभी लेबर कानून की विभिन्न धाराओं के तहत पंजीकरण कराने और लाइसेंस प्राप्त करने में 30 दिन का वक्त लगता था, अब वह प्रक्रिया 1 दिन में पूरी होगी। इसके साथ ही उद्योगों को उत्पादन बढ़ाने के लिए तीन माह तक शिफ्ट में परिवर्तन करने, श्रमिक यूनियनों को मान्यता देने की अनिवार्यता खत्म करने जैसी कई छूट दी गई हैं। इन घोषणाओं से एक तरफ उद्योग जगत राहत महसूस कर रहा है तो वहीं श्रमिक संगठन आशंका जता रहे हैं कि इससे कर्मचारियों का शोषण बढ़ेगा। आइये जानते हैं उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व गुजरात द्वारा लेबर कानून में किए गए अहम बदलावों और उसके असर के बारे में।
उत्तर प्रदेश के लेबर कानून में हुए प्रमुख बदलाव
मध्य प्रदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 7 मई को लेबर कानूनों में बदलाव की घोषणा की है। यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अगले 1000 दिन के लिए लेबर कानूनों में कई अहम बदलाव किये हैं। यूपी सरकार ने इसके लिए 'उत्तर प्रदेश टेंपरेरी एग्जेम्प्शन फ्रॉम सर्टेन लेबर लॉज ऑर्डिनेंस 2020' को मंजूरी प्रदान कर दी है। आइये जानतें हैं कानून में किए गए प्रमुख बदलावों के बारे में...
1. संसोधन के बाद यूपी में अब केवल बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट 1996 लागू रहेगा।
2. उद्योगों को वर्कमैन कंपनसेशन एक्ट 1923 और बंधुवा मजदूर एक्ट 1976 का पालन करना होगा।
3. उद्योगों पर अब 'पेमेंट ऑफ वेजेज एक्ट 1936' की धारा 5 ही लागू होगी।
4. श्रम कानून में बाल मजदूरी व महिला मजदूरों से संबंधित प्रावधानों को बरकरार रखा गया है।
5. उपर्युक्त श्रम कानूनों के अलावा शेष सभी कानून अगले 1000 दिन के लिए निष्प्रभावी रहेंगे।
6. औद्योगिक विवादों का निपटारा, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों का स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति संबंधित कानून समाप्त हो गए।
7. ट्रेड यूनियनों को मान्यता देने वाला कानून भी खत्म कर दिया गया है।
8. अनुबंध श्रमिकों व प्रवासी मजदूरों से संबंधित कानून भी समाप्त कर दिए गए हैं।
9. लेबर कानून में किए गए बदलाव नए और मौजूदा, दोनों तरह के कारोबार व उद्योगों पर लागू होगा।
10. उद्योगों को अगले तीन माह तक अपनी सुविधानुसार शिफ्ट में काम कराने की छूट दी गई है।
मध्य प्रदेश के लेबर कानून में हुए प्रमुख बदलाव
मध्य प्रदेश के शिवराज सरकार ने उद्योगों को राहत व बढ़ावा देने के लिए सबसे पहले लेबर कानूनों में बदलाव की घोषणा की थी। मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य में अगले 1000 दिनों (लगभग ढाई वर्ष) के लिए श्रम कानूनों से उद्योगों को छूट दे दी है। आइये जानते हैं शिवराज सरकार ने श्रम कानून में क्या अहम बदलाव किये हैं...
1. छूट की इस अवधि में केवल औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 लागू रहेगी।
2. 1000 दिनों की इस अवधि में लेबर इंस्पेक्टर उद्योगों की जांच नहीं कर सकेंगे।
3. उद्योगों का पंजीकरण/लाइसेंस प्रक्रिया 30 दिन की जगह 1 दिन में ऑनलाइन पूरी होगी।
4. अब दुकानें सुबह 6 से रात 12 बजे तक खुल सकेंगी। पहले ये समय सुबह 8 बजे से रात 10 बजे तक था।
5. कंपनियां अतिरिक्त भुगतान कर सप्ताह में 72 घंटे ओवर टाइम करा सकती हैं। शिफ्ट भी बदल सकती हैं।
6. कामकाज का हिसाब रखने के लिए पहले 61 रजिस्टर बनाने होते थे और 13 रिटर्न दाखिल करने होते थे।
7. संशोधित लेबर कानून में उद्योगों को एक रजिस्टर रखने और एक ही रिटर्न दाखिल करने की छूट दी गई है।
8. 20 से ज्यादा श्रमिक वाले ठेकेदारों को पंजीकरण कराना होता था। ये संख्या बढ़ाकर अब 50 कर दी गई है।
9. 50 से कम श्रमिक रखने वाले उद्योगों व फैक्ट्रियों को लेबर कानूनों के दायरे से बाहर कर दिया गया है।
10. संस्थान सुविधानुसार श्रमिकों को रख सकेंगे। श्रमिकों पर की गई कार्रवाई में श्रम विभाग व श्रम न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं होगा।
गुजरात के लेबर कानून में हुए प्रमुख बदलाव
मध्य प्रदेश व यूपी के बाद गुजरात ने भी शुक्रवार देर शाम को लेबर कानूनों में बदलाव की घोषणा कर दी है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में 1000 दिन की छूट के मुकाबले गुजरात ने 200 दिन ज्यादा के लिए कानूनी छूट की घोषणा की है। गुजरात में उद्योगों को 1200 दिनों (3.2 साल) के लिए लेबर कानून से छूट प्रदान की गई है। जानते हैं गुजरात सरकार द्वारा किए गए अहम बदलावों के बारे में...
1. नए उद्योगों के लिए 7 दिन में जमीन आवंटन की प्रक्रिया को पूरा किया जाएगा।
2. नए उद्योगों को काम शुरू करने के लिए 15 दिन के भीतर हर तरह की मंजूरी प्रदान की जाएगी।
3. नए उद्योगों को दी जाने वाली छूट उत्पादन शुरू करने के अगले दिन से 1200 दिनों तक जारी रहेगी।
4. चीन से काम समेटनी वाली जापानी, अमेरिकी, कोरियाई और यूरोपीयन कंपनियों को लाने का है लक्ष्य।
5. गुजरात ने नए उद्योगों के लिए 33 हजार हेक्टेयर भूमि की चिन्हित।
6. नए उद्योगों के रजिस्ट्रेशन व लाइसेंस आदि की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी गई है।
7. नए उद्योगों को न्यूनतम मजदूरी एक्ट, औद्योगिक सुरक्षा नियम और कर्मचारी मुआवजा एक्ट का पालन करना होगा।
8. देश की जीडीपी में गुजरात की हिस्सेदारी 7.9 फीसद है। कुल निर्यात में हिस्सेदारी करीब 20 फीसद है।
9. उद्योगों को लेबर इंस्पेक्टर की जांच और निरीक्षण से मुक्ति।
10. अपनी सुविधानुसार शिफ्ट में परिवर्तन करने का अधिकार।
आप पर क्या होगा असर
1. उद्योग-धंधे बंद होने से नौकरियां खतरे में हैं और वेतन कटौती का सिलसिला शुरू हो चुका है। उद्योग शुरू होने से स्थिति सुधरेगी।
2. राज्य अगर चीन से पलायन करने वाली या अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाने में सफल होते हैं तो ये अर्थव्यवस्था और रोजदार दोनों के लिए लाभकारी होगा।
3. प्रतिमाह 15000 रुपये या कम वेतन वाले कर्मचारी की तनख्वाह में कटौती नहीं की जा सकती है।
4. पंजीकरण व लाइसेंसी प्रक्रिया तेज होने से उद्योगों के लिए अब कार्य विस्तार करना आसान होगा। इससे रोजगार भी बढ़ेगा।
5. काम के घंटे बढ़ाकर लॉकडाउन में कम लेबर से भी काम किया जा सकेगा और सोशल डिस्टेंसिंग भी बरकरार रहेगी।
6. अब श्रमिकों से 12 घंटे तक की शिफ्ट कराई जा सकेगी, लेकिन 8 के बाद किए गए कार्य के लिए ओवर टाइम अलग से देना होगा।
7. इतिहास की सबसे बड़ी बेरोजगारी व मंदी से बचने में काफी हद तक मददगार साबित हो सकता है।
8. श्रमिकों के शोषण जैसी आशंका पर विशेषज्ञ कहते हैं, इस वक्त जब बड़े पैमाने पर पलायन हो रहा या लोग लॉकडाउन में फंसे हुए हैं, उद्योगों को भी श्रमिकों की जरूरत है।
9. उद्योग शुरू होने से सरकार को भी राजस्व प्राप्त होगा, जो कोरोना की जंग लड़ने में सबसे अहम है।
आपके लिए संभावित खतरा
1. श्रमिक संगठनों को आशंका है कि उद्योगों को जांच और निरीक्षण से मुक्ति देने से कर्मचारियों का शोषण बढ़ेगा।
2. शिफ्ट व कार्य अवधि में बदलाव की मंजूरी मिलने से हो सकता है लोगों को बिना साप्ताहिक अवकाश के प्रतिदिन ज्यादा घंटे काम करना पड़े। हालांकि, इसके लिए ओवर टाइम देना होगा।
3. श्रमिक यूनियनों को मान्यता न मिलने से कर्मचारियों के अधिकारों की आवाज कमजोर पड़ेगी।
4. उद्योग-धंधों को ज्यादा देर खोलने से वहां श्रमिकों को डबल शिफ्ट करनी पड़ सकती है। हालांकि, इसके लिए भी ओवर टाइम का प्रावधान किया गया है।
5. पहले प्राधान था कि जिन उद्योग में 100 या ज्यादा मजदूर हैं, उसे बंद करने से पहले श्रमिकों का पक्ष सुनना होगा और अनुमति लेनी होगी। अब ऐसा नहीं होगा।
6. श्रमिक संगठनों को आशंका है कि मजदूरों के काम करने की परिस्थिति और उनकी सुविधाओं पर निगरामी खत्म हो जाएगी।
7. आशंका है कि व्यवस्था जल्द पटरी पर नहीं लौटी तो उद्योगों में बड़े पैमाने पर छंटनी और वेतन कटौती शुरू हो सकती है।
8. ग्रेच्युटी से बचने के लिए उद्योग, ठेके पर श्रमिकों की हायरिंग बढ़ा सकते हैं।
बदलावों और उसके प्रभाव पर नजर डालें तो पता चलता है कि कानून में संशोधन के बाद के संभावित खतरों से कहीं ज्यादा खतरा श्रमिकों के लिए उद्योग शुरू न होने पर है। संशोधन के बाद जो संभावित खतरें हैं, उनमें से कई की शुरूआत लॉकडाउन के दौरान कानून बदले जाने से पहले ही हो चुकी है। उम्मीद है कि संशोधन के बाद स्थिति में कुछ सुधार आएगा।
यह भी पढ़ेंः यूपी-एमपी सहित छह राज्यों ने श्रम कानूनों में किए बड़े बदलाव, जानें- क्या होगा फायदा?