जानिए, किस भारतीय महिला ने चार दशक पहले विदेश में पहली बार फहराया था भारत का झंडा
भीकाजी रुस्तो कामा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य केंद्र बिंदु और पहली महिला क्रांतिकारी थी। उनका जन्म 24 सितम्बर 1861 को एक पारसी परिवार में मुम्बई में हुआ था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। क्या आप जानते हैं कि आजादी से चार दशक पहले विदेश में किस भारतीय महिला ने पहली बार भारत का झंडा फहराकर गौरवान्वित किया था। यदि आपको उनके बारे में जानकारी नहीं है तो आपको ये खबर जरूर पढ़नी चाहिए। हम आपको बता रहे हैं उस भारतीय महिला का नाम। अब से 4 दशक पहले 1907 में 46 साल की पारसी महिला भीकाजी कामा ने जर्मनी ये झंडा फहराया था। उन्होंने ये झंडा जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी 'इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस' में फहराया था। उस समय ये झंडा भारत के आज के झंडे से अलग था।
भीकाजी रुस्तो कामा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की मुख्य केंद्र बिंदु और पहली महिला क्रांतिकारी थी। उनका जन्म 24 सितम्बर 1861 को एक पारसी परिवार में बॉम्बे (मुम्बई)मुम्बई में हुआ था। उनके पिता सोराबजी फरंजि पटेल और माता जैजीबाई सोराबजी पटेल शहर में काफी मशहूर थे। उनके पिता सोराबजी- पेशे से एक व्यापारी थे। उनके पिता पारसी समुदाय के नामी हस्तियों में से एक थे। उनको पढ़ाई के लिए अलेक्जेण्डर नेटिव गर्ल्स इंग्लिश इंस्टीट्यूट में डाला गया था। वो गणित में काफी कुशल थी, इसी के साथ एक होनहार छात्रा भी थी, उनको कई भाषाओं का ज्ञान था। 3 अगस्त 1885 को उनका विवाह रुस्तम कामा से हुआ, जो के.आर. कामा के पुत्र थे। उनके पति काफी अमीर परिवार से थे, वे एक ब्रिटिश वकील थे जो राजनीति में भी रूचि रखते थे।
भीकाजी ने अपने विवाह के बाद भी ज्यादा से ज्यादा समय और ऊर्जा सामाजिक कार्य और समाज कल्याण में व्यतीत की। 19 वीं सदी के आखिर में बम्बई शहर में प्लेग के महामारी फैली थी। उस समय उन्होंने लोगों को इस बीमारी से बचाने के लिए लगा दिया था। उनको सामाजिक कामों में हिस्सा लेना काफी अच्छा लगता था। लोगों को इलाज करने के दौरान ही उनको भी ये रोग लग गया, मगर वो उससे बच गई। उसके बाद उनके परिजनों ने उनको 1902 में यूरोप भेज दिया। जर्मनी, स्कॉटलंड और फ्रांस इन देशों में एक एक साल रहकर 1905 मे मैडम कामा लंदन चली आई।
तबीयत ठीक होने के बाद उन्होंने दादाभाई नौरोजी के खास सचिव के रूप में लगभग डेढ़ साल तक काम किया। लंदन में रहने के समय में उन्होंने बहुत जगह प्रभावी भाषण दिए। बाद में वो स्वातंत्र्यवीर सावरकर, श्यामजी कृष्णा वर्मा के संपर्क में भी आई। सावरकर, मैडम कामा और कुछ अन्य देशभक्तों ने मिलकर 1905 में अपने तिरंगा का प्रारूप पक्का किया। इस तिरंगे पर हरा, नारंगी और लाल ऐसे तीन रंगो की पट्टिया थी। सबसे ऊपर हरे रंग की पट्टी और उस पर दिखाया खिलता हुआ आठ पांखुडी का कमल, ये तत्कालीन भारत के 8 प्रांतों के जैसे प्रतिनिधित्व करने वाला था। बीच में नारंगी पट्टी पर देवनागरी लिपि में ‘वंदे मातरम्’शब्द भारत माता का अभिवादन के उद्देश्य से लिखा गया था।
1909 में ‘वंदे मातरम्’ साप्ताहिक लाला हरदयाल ने शुरु किया, ये साप्ताहिक चलाने के काम में भीकाजी कामा काफी मदद की थी। मेडम कामा उन महान लोगों में से एक है जिन्होंने व्यक्तिगत जीवन की परवाह किए बिना ही अपना जीवन सामाजिक कार्यों और विकास में व्यतीत किया।
मैडम कामा पर किताब लिखने वाले रोहतक एम.डी. विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर बी.डी.यादव बताते हैं कि उस कांग्रेस में हिस्सा लेने वाले सभी लोगों के देशों के झंडे फहराए गए थे और भारत के लिए ब्रिटेन का झंडा था, उसको नकारते हुए भीकाजी कामा ने भारत का एक झंडा बनाया और वहां फहराया। अपनी किताब 'मैडम भीकाजी कामा' में प्रो.यादव बताते हैं कि झंडा फहराते हुए भीकाजी ने जोरदार भाषण दिया और कहा कि ऐ संसार के कॉमरेड्स, देखो ये भारत का झंडा है, यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, इसे सलाम करो। मैडम कामा को भीकाजी और भिकाई जी, इन दोनों नाम से जाना जाता था।
उन्होंने वीडी सावरकर, एमपीटी आचार्य और हरदयाल समेत कई क्रांतिकारियों के साथ काम किया। पारसी शख़्सियतों पर शोध करने वाले लेखक केई एडुल्जी के भीकाजी कामा पर लिखे गए विस्तृत लेख के मुताबिक़ पहले विश्व युद्ध के दौरान वो दो बार हिरासत में ली गईं और उनके लिए भारत लौटना बेहद मुश्किल हो गया था। राष्ट्रवादी काम छोड़ने की शर्त पर आखिरकार 1935 में उन्हें वतन लौटने की इजाज़त मिली। तब तक वो बहुत बीमार हो चुकी थी। तबियत खराब होने की वजह से 1936 में उनकी मौत हो गई।
पूरा नाम – मैडम भीकाजी रुस्तूमजी कामा
जन्म – 24 सितंबर 1861
जन्मस्थान – बम्बई(मुंबई)
पिता – सोराबती फ्रेमजी पटेल
माता – जिजिबाई
शिक्षा – अलेक्झांडा पारसी लड़कियों के स्कूल में उन्होंने शिक्षा ली।
विवाह – रुस्तूमजी कामा के साथ (1885 में)
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