जानिए डेथ वारंट में क्या होती है फॉर्म-42 की भूमिका? कितना महत्वपूर्ण है ये फॉर्म
निर्भया केस में अब कोर्ट की ओर से डेथ वारंट जारी कर दिया गया है। डेथ वारंट क्या होता है और इसमें क्या-क्या चीजें भरनी होती है। ये जनाना भी जरूरी है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। साल 2012 से कोर्ट में चल रहे निर्भया केस में साल 2020 में अंतिम फैसला आ गया। कोर्ट की ओर से तमाम गवाहों और सबूतों को सुनने के बाद अब इन चारों आरोपियों के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिया गया है। इसी के साथ मौत की तारीख और समय भी तय कर दिया गया है।
अब इसी तारीख और समय पर इन चारों को फांसी पर लटका दिया जाएगा। डेथ वारंट जारी होने के बाद अब सभी लोग ये जानना चाह रहे हैं कि आखिर ये डेथ वारंट होता क्या है और इसमें किन चीजों को लिखा जाता है। हम आपको बता रहे हैं कि क्या होता है डेथ वारंट और इसमें किन-किन चीजों का जिक्र किया जाता है।
डेथ वारंट?
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर-1973, यानी दंड प्रक्रिया संहिता- 1973 (CrPC) के तहत 56 फॉर्म्स होते हैं। इसी में एक फॉर्म होता है, फॉर्म नंबर- 42। इसी फॉर्म नंबर-42 को ही डेथ वारंट कहा जाता है। इसके ऊपर लिखा होता है- वारंट ऑफ एक्जेक्यूशन ऑफ अ सेंटेंस ऑफ डेथ। इसे ब्लैक वारंट भी कहा जाता है। ये जारी होने के बाद ही किसी व्यक्ति को फांसी दी जाती है।
क्या-क्या भरना होता है इस फॉर्म के खाली कॉलम में ?
- जेल का नंबर।
- फांसी पर चढ़ाए जाने वाले सभी कैदियों के नाम (जितनी संख्या हो, जिनको फांसी दी जानी हो)
- केस नंबर।
- डेथ वारंट जारी होने की तारीख।
- फांसी देने की तारीख, समय और जगह।
मौत के बाद कोर्ट में जमा किया जाता है डेथ सर्टिफिकेट
एक खास बात और होती है। इस वारंट में ये भी लिखा है कि कैदी को फांसी पर तब तक लटकाया जाए, जब तक उसकी मौत न हो जाए। कोर्ट की ओर से जारी हुआ डेथ वारंट सीधा जेल प्रशासन के पास पहुंचता है। आरोपियों को फांसी होने के बाद कैदी की मौत से जुड़ा डेथ सर्टिफिकेट डॉक्टरों की ओर से दिया जाता है, उसके बाद इसे वापस कोर्ट में जमा किया जाता है। इसके अलावा डेथ वारंट भी वापस किया जाता है।