Howitzer ATAGS: स्वतंत्रता दिवस में गरजी होवित्जर तोप ATAGS, जानें क्या है इसकी मारक क्षमता, बेचैन हुए पड़ोसी मुल्क
लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान पारंपरिक 21 तोपों की सलामी के दौरान पहली बार स्वदेश विकसित होवित्जर तोप का इस्तेमाल किया गया। ऐसे में आइए जानते हैं कि इन तोपों की क्या खासियत है। आखिर देश की रक्षा प्रणाली में क्या भूमिका होगी। इनकी क्या खूबियां हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। Howitzer ATAGS: लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान पारंपरिक 21 तोपों की सलामी के दौरान पहली बार स्वदेश विकसित होवित्जर तोप का इस्तेमाल किया गया। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत इस तोप के लिए ‘एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम’ (ATAGS) विकसित की। आजादी के 76वें वर्ष पहली बार 21 तोपों की सलामी में परंपरागत रूप से इस्तेमाल की जा रही ब्रिटिश तोपों के साथ एटीएजीएस तोप का भी इस्तेमाल किया गया। रक्षा मंत्रालय ने कहा कि तोप का इस्तेमाल करने की पहल स्वदेश में ही हथियारों और गोला-बारूद विकसित करने की भारत की बढ़ती क्षमता का प्रमाण होगी। ऐसे में आइए जानते हैं कि इन तोपों की क्या खासियत है। आखिर डीआरडीओ ने आखिर इस तोप को किस हिसाब से प्लान किया है। देश की रक्षा प्रणाली में इसकी क्या भूमिका होगी। इनकी क्या खूबियां हैं। क्या है इस तोप की खासियत?
1- दरअसल, एटीएजीएस परियोजना की शुरुआत डीआरडीओ ने 2013 में की थी। इसका मकसद भारतीय सेना में सेवारत पुरानी तोपों की जगह आधुनिक 155एमएम की तोप को शामिल करना था। एडवांस टाड गन सिस्टम (ATAGS) को डीआरडीओ ने टाटा और भारत-फोर्ज कंपनियों के साथ मिलकर तैयार किया है। 155 x 52 कैलिबर की इस एटीएजीएस तोप की रेंज करीब 48 किलोमीटर है। जल्द ही यह भारतीय सेना के तोपखाने का हिस्सा बनने वाली है।
2- वर्ष 2018 में रक्षा मंत्रालय ने 150 अटैग गन खरीदने को मंजूरी दी थी। ATAGS एक विश्व स्तरीय गन प्रणाली है। स्वतंत्रता दिवस समारोह के लिए इसके गोले दागने में कुछ विशेष बदलाव किए गए हैं। मालूम हो कि एटीएजीएस परियोजना को 2013 में डीआरडीओ ने भारतीय सेना में पुरानी तोपों को आधुनिक 155 एमएम आर्टिलरी गन से बदलने के लिए शुरू की थी।
3- इन तोपों को DRDO की पुणे स्थित सुविधा आयुध अनुसंधान और विकास प्रतिष्ठान में निर्मित किया गया है। ATAGS परियोजना को DRDO द्वारा वर्ष 2013 में भारतीय सेना में पुरानी तोपों को आधुनिक 155 मिमी आर्टिलरी गन से बदलने के लिए शुरू किया गया था। राजस्थान के पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में इसका सफल परीक्षण किया गया था। इन तोपों को किसी भी स्थान पर ले जाकर तैनात किया जा सकता है। इन तोपों को DRDO की आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैबलिशमेंट, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड, महिंद्रा डिफेंस नेवल सिस्टम और भारत फोर्ज लिमिटेड ने मिलकर बनाया है।
भारतीय रक्षा प्रणाली में बेहद सटीक है स्वदेशी तोप
रक्षा मामलों के जानकार डा अभिषेक प्रातप सिंह का कहना है कि इन स्वदेशी तोपों की डिजाइन और क्षमता भारतीय रक्षा प्रणालियों के हिसाब से तैयार किया गया है। सुरक्षा के लिहाज से यह सहज और सरल तरीके से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। दुनिया के अन्य तोपों की तुलना में काफी हल्की है। इसे कहीं से भी संचालित किया जा सकता है। भारत का सीमावर्ती क्षेत्र कहीं पठारी है तो कहीं रेगिस्तान है। भारत की सीमा में ऊंची चोटियां हैं। इन स्वदेशी तोपों को देश के पहाड़ी इलाकों में भी आसानी से ले जाया जा सकता है। भारत की सेना में स्वदेशी तोपों के शामिल होने के बाद सुरक्षा और मजबूत होगी।
75 साल बाद लाल किले से स्वदेशी बंदूकों से सलामी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा जिस आवाज को हम हमेशा से सुनना चाहते थे, हम 75 साल बाद सुन रहे हैं। 75 साल बाद यह है कि तिरंगे को पहली बार भारत में बनी बंदूक से लाल किले पर औपचारिक सलामी मिली है। गौरतलब है कि अब तक औपचारिक सलामी के लिए ब्रिटिश तोपों का उपयोग किया जाता रहा है। स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान पहली बार एमआई-17 हेलीकाप्टरों ने लाल किले पर फूलों की वर्षा भी की है।
क्या है 21 तोपों की सलामी परंपरा
1- भारत में जब प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले पर तिरंगा फहराने के बाद मिलिट्री बैंड द्वारा राष्ट्रगान बजाया जाता है, तो एक आर्टिलरी रेजिमेंट से औपचारिक तौर पर 21 तोपों की सलामी दी जाती है। वैसे तोपों की सलामी की परंपरा पश्चिमी देशों की नौसेनाओं ने शुरू की थी। वहां बंदरगाहों से आने-जाने वाले जहाजों से तोपें एक विशेष तरीके से चलाई जाती थीं ताकि यह व्यक्त किया जा सके कि उनका कोई लड़ाई का इरादा नहीं है। बाद में इस परंपरा को सम्मान देने के तरीके के रूप में आगे बढ़ाया गया। जैसे क्राउन, रायल्स, सैन्य कमांडरों और राज्यों के प्रमुखों के आधिकारिक स्वागत के लिए इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।
2- भारत को यह परंपरा ब्रिटिश शासकों से विरासत में मिली। आजादी से पहले सर्वोच्च सलामी 101 तोपों की सलामी थी। इसे शाही सलामी के रूप में भी जाना जाता था। इसे केवल भारत के सम्राट यानी ब्रिटिश क्राउन को दी जाती थी। 101 के अलावा 31 और फिर 21 तोपों की सलामी का भी इस्तेमाल किया जाने लगा। भारत में, गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और अन्य अवसरों के साथ-साथ राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण समारोह के समय भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है।