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    जानिए क्या है एंटीबॉडी, एंटीजन और टी सेल्स, कोरोना से बचाव में कैसे करते हैं मदद

    By Vinay TiwariEdited By:
    Updated: Tue, 21 Jul 2020 02:40 PM (IST)

    कोरोनावायरस के संक्रमण से बचाव के लिए एंटीबॉडी एंटीजन और टी सेल्स की महत्वपूर्ण भूमिका होती है जिनके शरीर में ये कम हो जाता है वो संक्रमित हो जाते हैं।

    जानिए क्या है एंटीबॉडी, एंटीजन और टी सेल्स, कोरोना से बचाव में कैसे करते हैं मदद

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। कोरोनावायरस के संक्रमण को लेकर अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है मगर वैज्ञानिकों ने इस संक्रमण से बचने के लिए कई और चीजें बताई हैं जिसकी वजह से हम कोरोना संक्रमण होने के बाद भी उससे बच सकते हैं।

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    इसमें कुछ सबसे महत्वपूर्ण चीजें बताई जा रही है जिसमें एक एंटीजन, एक एंटीबॉडी और दूसरे टी सेल्स की भूमिका महत्वपूर्ण बताई जा रही है। इस खबर के माध्यम से हम आपको इनके बारे में विस्तार से बताएंगे जिससे आपको इन्हें समझने में आसानी हो। साथ ही आप ये जान पाएंगे कि यदि ये चीजें किसी के शरीर में कम हो जाती हैं तो उसके संक्रमित होने का खतरा कितना अधिक हो जाता है।

    क्या होता है एंटीबॉडी और टी सेल्स

    कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिए लड़ाई जारी है। कोरोना (covid19) को रोकने में टी-सेल (T cell) एक बड़ा हथियार साबित हो सकता है। कोरोना की रोकथाम में लगे वैज्ञानिकों को टी सेल्स की खोज के बाद एक उम्मीद की किरण नजर आई है। 

    वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना के कारण गंभीर रूप से बीमार हो रहे लोगों में रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं जिसमें इम्यून सेल (immune-cell) या टी-सेल (T-cell) की संख्या काफी कम हो जाती है। अब ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण में बताया कि यदि किसी संक्रमित मरीज के शरीर में टी-सेल (T-cell) की संख्या बढ़ा दी जाए तो वो संक्रमण से बच सकता है।

    क्या हैं टी-सेल (T-CELL)

    मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब भी हमारे शरीर पर किसी तरह के वायरस (virus) का हमला होता है तो उससे लड़ने और बीमारी को शरीर से बाहर निकालने का काम ये टी-सेल (T-cell) ही करती हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में एक माइक्रोलीटर रक्त में आमतौर पर 2000 से 4800 टी-सेल (T-cell) होती हैं, जिसे मेडिकल की भाषा में टी-लिम्फोसाइट्स (T-lymphocytes) भी कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने अपने टेस्ट में पाया कि कोरोना के मरीजों में इनकी संख्या 200 से 1000 तक पहुंच जाती है। इसीलिए उनकी हालत गंभीर हो जाती है।

    कितना है खतरा

    डॉक्टरों ने पाया कि आईसीयू (ICU) में आने वाले 70% कोरोना पीड़ित मरीजों में टी-सेल की संख्या 4000 से घटकर 400 तक आ जाती है। इसके साथ ही दो रिसर्च के बाद पता चला कि उन लोगों को संक्रमण नहीं हुआ जिनमें टी-सेल की संख्या ज्यादा पाई गई थी। 

    यहां एक बात ध्यान में रखने वाली है कि रोग की गंभीरता इन टी सेल प्रतिक्रियाओं के बल पर निर्भर हो सकती है। टी कोशिकाओं और बी कोशिकाओं में मुख्य अंतर यह है कि टी कोशिकाएं केवल संक्रमित कोशिकाओं के बाहर वायरल एंटीजन को पहचान सकती हैं और बी कोशिकाएं बैक्टीरिया और वायरस की सतह एंटीजन को पहचान सकती हैं।

    क्या है एंटीजन

    एंटीजन वो बाहरी पदार्थ है जो कि हमारे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबॉडी पैदा करने के लिए एक्टिवेट करता है। एंटीबॉडी बीमारियों से लड़ने में कारगर साबित होता है। एंटीजन वातावरण में मौजूद कोई भी तत्व हो सकता है, जैसे कि कैमिकल, बैक्टीरिया या फिर वायरस। एंटीजन नुकसानदेह है। शरीर में इसका पाया जाना ही इस बात का संकेत है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को एक बाहरी हमले से लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने पर मजबूर होना पड़ा है। 

    क्या है एंटीबॉडी 

    एंटीबॉडी शरीर का वो तत्व है, जिसका निर्माण हमारा इम्यून सिस्टम शरीर में वायरस को बेअसर करने के लिए पैदा करता है। संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज बनने में कई बार एक हफ्ते तक का वक्त लग सकता है, इसलिए अगर इससे पहले एंटीबॉडी टेस्ट किए जाएं तो सही जानकारी नहीं मिल पाती है। इसके अलावा इस टेस्ट से कोरोना वायरस की मौजूदगी की सीधी जानकारी भी नहीं मिल पाती है इसलिए अगर मरीज का एंटी बॉडी टेस्ट निगेटिव आता है तो भी मरीज का RT-PCR टेस्ट करवाया जाता है।

    क्यों जरूरी है एंटीबॉडी 

    जब कोई इंसान कोरोनावायरस से संक्रमित हो जाता है तो उसके शरीर में एंटीबॉडी बनते हैं ये वायरस से लड़ते हैं। ठीक हुए 100 कोरोना मरीजों में से आमतौर पर 70-80 मरीजों में ही एंटीबॉडी बनते हैं। अमूमन ठीक होने के दो हफ्ते के अंदर ही एंटीबॉडी बन जाता है। कुछ मरीजों में कोरोना से ठीक होने के बाद महीनों तक भी एंटीबॉडी नहीं बनता है। कोरोना से ठीक हुए जिन मरीजों के शरीर में एंटीबॉडी काफी वक्त बाद बनते हैं उनके प्लाज्मा की गुणवत्ता कम होती है, इसलिए आमतौर पर उनके प्लाज्मा का उपयोग कम ही किया जाता है। 

    लेकिन जिनके शरीर में ठीक होने के दो सप्ताह के भीतर ही एंटीबॉडी बन जाती है वो फिर सालों तक रहती है। ये लोग वो होते हैं जिनकी इम्यूनिटी मजबूत होती है ऐसे लोग एक बार प्लाज्मा डोनेट करने के 15 दिन बाद फिर से प्लाज्मा डोनेट कर सकते हैं, क्योंकि उनके शरीर में एंटीबॉडी बन जाता है। यानी अगर कोरोना से ठीक हुआ कोई मरीज प्लाज्मा डोनेट करने के लिए स्वस्थ हो तो वो लगातार प्लाज्मा डोनेट कर सकता है और किसी जरूरतमंद कोरोना मरीज के काम आ सकता है।

    एंटी बॉडी टेस्ट

    कोरोना की जांच के लिए एक और टेस्ट एंटीबॉडी टेस्ट है। एंटी बॉडी टेस्ट खून का सैंपल लेकर किया जाता है इसलिए इसे सीरोलॉजिकल टेस्ट भी कहते हैं। इसके नतीजे जल्द आते हैं और ये RT-PCR के मुकाबले कम खर्चीला भी होता है। ये टेस्ट ऑन लोकेशन पर किया जा सकता है।