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    नास्तिक नोबलिस्ट आइंस्टीन करते थे विश्व शांति की बात, निधन के बाद चोरी हो गया था दिमाग

    Albert Einstein Death Anniversary 2023। नास्तिक किस्म के महान भौतिकविद् अल्बर्ट आइंस्टीन को शायद ही कभी किसी ने भावुक होते देखा था लेकिन जर्मनी वापसी के बाद जब उनकी मां अपने अंतिम दिनों में आइंस्टीन के पास रहने आईं और फिर उनका इंतकाल हो गया...

    By Anurag GuptaEdited By: Anurag GuptaUpdated: Mon, 17 Apr 2023 11:30 PM (IST)
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    नास्तिक नोबलिस्ट आइंस्टीन करते थे विश्व शांति की बात, पंडित जी को भी लिखा पत्र

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। महान भौतिकविद्, ज्ञान का कीड़ा, एक नास्तिक और उथलपुथल जिंदगी जीने वाला... यह कोई और नहीं, बल्कि नोबल पुरस्कार से विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन को एक दफा एक डॉक्टर ने कहा था कि आप जरूरत से ज्यादा अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हैं। दरअसल, जर्मनी वापसी के कुछ समय बाद आइंस्टीन की तबीयत नासाज रहने लगी थी, वो नर्वस ब्रेकडाउन के शिकार हुए और तो और उन्हें पेट का रोग भी सताने लगा था। ऐसे में उनके करीबी लोग उन्हें डॉक्टर के पास ले गए और उनका गहन परीक्षण कराया। हालांकि, इस परीक्षण के बाद यह तो स्पष्ट हो गया था कि आइंस्टीन को कैंसर नहीं है, लेकिन वो पेट की समस्या से ग्रसित थे।

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    आलम कुछ ऐसा हो गया था कि एक तरफ उनका रिश्ता बिगड़ चुका था और दूसरी तरफ वो अपने स्वास्थ्य को लेकर परेशान थे। कहा तो यहां तक जाता है कि नींद के साथ उनका रिश्ता ऐसा था कि उन्हें जबरन सुलाना पड़ता था, वो खुद-ब-खुद नहीं सोते थे और जब सोते थे तो कई घंटों तक सोते रहते थे, ऐसे में उन्हें जबरन उठाना पड़ता था।

    नास्तिक किस्म के आइंस्टीन को शायद ही कभी किसी ने भावुक होते देखा था, लेकिन जर्मनी वापसी के बाद जब उनकी मां अपने अंतिम दिनों में आइंस्टीन के पास रहने आईं और फिर उनका इंतकाल हो गया, तो पहली बार लोगों ने आइंस्टीन को फूट-फूटकर रोते हुए देखा था।

    प्रारंभिक जीवन

    अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च, 1879  को जर्मनी के उल्म में एक यहूदी परिवार में हुआ था। उल्म वो जगह थी, जहां के अधिकतर लोग गणितज्ञ थे। ऐसे में उल्म (शहर) का प्रभाव भी आइंस्टीन के जीवन में पड़ा। आइंस्टीन के पिता ने अपने पिता के नाम पर अल्बर्ट का नाम रखा था। आइंस्टीन के पिता इंजीनियर और सेल्समैन थे और अपने बेटे को इंजीनियर बनाना चाहते थे, लेकिन उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। हालांकि, एक वक्त ऐसा भी आया जब आइंस्टीन इंजीनियर तो नहीं बने, लेकिन इंजीनियर्स उनसे सलाह-मशविरा लिया करते थे।

    आइंस्टीन की शिक्षा को लेकर एक अफवाह यह भी थी कि वो शुरुआती दिनों में पढ़ने में अच्छे नहीं थे, लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। हां, उन्हें अकेले रहना पसंद था। शुरुआती जीवन में उनके मित्र नहीं थे, लेकिन पढ़ाई के साथ उनका रिश्ता अच्छा था। हां, उन्हें रस्टाफिकेशन वाली थ्योरी नहीं पसंद थी, वो चाहते थे कि शिक्षक ऐसे हों, जो चीजों को समझाकर विस्तार से किसी विषय पर चर्चा करें। हालांकि, उन्होंने स्कूल के साथ ही जर्मनी भी छोड़ दिया था। आइंस्टीन के लालन-पालन की जिम्मेदारी उनके चाचा ने निभाई थी। 

    प्रसिद्ध समीकरण E=mc^2

    आइंस्टीन ने सबसे शानदार और प्रसिद्ध समीकरण 'ई ईक्वल्स एमसी स्क्वैयर' (E=mc^2) दिया था। उन्होंने साल 1905 में इस समीकरण को दुनिया के सामने रखा था और यह समझाया कि तारों और परमाणु विस्फोट में ऊर्जा कैसे बाहर आती है। बता दें कि इसी समीकरण की बदौलत एटम बम बना था, लेकिन हर सिक्के के दो पहलु होते हैं। एटम बम से इंसानियत को तबाह भी किया जा सकता है और बिजली का उत्पादन भी। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि आइंस्टीन शांत स्वभाव वाले इंसान थे और हिंसा उन्हें बिल्कुल भी नहीं पसंद थी। इसी वजह से उन्होंने जर्मनी युद्ध के दौरान शांति का प्रस्ताव रखा था। 

    उल्म में जन्में आइंस्टीन को जर्मनी कभी रास नहीं आया। इसी वजह से उन्होंने साल 1880 में म्यूनिख जाने का निर्णय लिया। उनकी वजह से पूरा परिवार भी म्यूनिख शिफ्ट हो गया था।

    निजी जीवन

    साल 1903 को आइंस्टीन ने मारीक के साथ शादी कर ली थी। इसके एक साल बाद ही 1904 में स्विट्जरलैंड में दंपत्ति ने पहले बच्चे को जन्म दिया। इसके बाद साल 1910 में ज्यूरिख में दूसरे बच्चे एडुअर्ड को जन्म दिया। आइंस्टीन के लिए एडुअर्ड काफी भाग्यशाली साबित हुए, क्योंकि एडुअर्ड के जन्म के तुरंत बाद ही आइंस्टीन की तनख्वाह में इजाफा हुआ था और उन्होंने घर में आया रखने का निर्णय लिया। काम की वजह से आइंस्टीन अपने परिवार से अलग रह रहे थे। उनका परिवार म्यूनिख में रह रहा था और उन्होंने 1913 में दोगुनी तनख्वाह के साथ बर्लिन लौटने का निर्णय लिया। 

    उस वक्त आइंस्टीन और उनकी पत्नी के बीच में पत्रों के माध्यम से संवाद होता था और देखते ही देखते दोनों के रिश्तों में काफी ज्यादा खटास आ गई। 

    शांति का प्रस्ताव 

    50 साल की उम्र तक पहुंचते पहुंचते आइंस्टीन बीमार रहने लगे थे, लेकिन उन्होंने अपना संदेश ग्रामोफोन में रिकॉर्ड करना जारी रखा। आइंस्टीन शांतिवादी थे, लेकिन कभी-कभी उनके बयानों की वजह से यह समझना मुश्किल होता था कि आइंस्टीन शांतिवादी हैं भी या नहीं ? उन्होंने एक दफा कहा था कि हिटलर और बेनिटो मुसोलिनी जैसे तानाशाहों को हथियार के दम पर भी शांत किया जा सकता है। हालांकि, आइंस्टीन अमूमन हथियार नहीं उठाने की बात किया करते थे।

    यह वो दौर था जब तकरीबन हर एक देश को यह लगता था कि दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए हथियार बहुत जरूरी थी, जबकि आइंस्टीन का मानना था कि हर एक देश को एक अंतरराष्ट्रीय संगठन के नीचे काम करना चाहिए। साथ ही अपने हथियारों को समाप्त कर देना चाहिए, ताकि शांति को स्थापित हो सके, क्योंकि युद्ध की वजह से देश तबाह हो जाते हैं।

    सैद्धांतिक भौतिकी में नोबेल पुरस्कार

    आइंस्टीन को 09 नवंबर, 1922 को 'सैद्धांतिक भौतिकी' में उनकी सेवाओं के लिए खासकर फोटोइलेक्ट्रिक इफेक्‍ट की खोज के लिए 'फिजिक्‍स में 1921 का नोबेल पुरस्कार' दिया गया था। इसके अतिरिक्त आइंस्टीन के 70वें जन्मदिन पर उनके सम्मान में लुईस और रोजा स्ट्रॉस मेमोरियल फंड द्वारा 'सैद्धांतिक भौतिकी में एक पुरस्कार' का वितरण शुरू किया गया था।

    पहली बार यह पुरस्कार साल 1951 में वितरित किया गया था। इस पुरस्कार से सम्मानित व्यक्ति को आइंस्टीन की मूर्ति और एक गोल्ड मेडल भेंट स्वरूप दिया जाता है। साथ में 5000 डॉलर की राशि भी दी जाती है। हालांकि, शुरुआती समय में पुरस्कार राशि 15,000 डॉलर थी। जिसे बाद में घटा दिया गया था।

    आइंस्टीन ने ठुकराया था राष्ट्रपति का पद

    अपनी शर्तों पर जिंदगी व्यतीत करने वाले आइंस्टीन को इजरायल का राष्ट्रपति बनने का निमंत्रण मिला था। यहूदी चाहते थे कि आइंस्टीन इस जिम्मेदारी को संभालें। हालांकि, उन्होंने कहा था कि मेरे भीतर राजनीति और देश संभालने का क्षमता नहीं है। 

    अरब देशों से घिरे रहने वाले इजरायल की हरमुमकिन सहायता के लिए अमेरिका मौजूद रहता था, लेकिन आइंस्टीन को यह चिंता लगी रहती थी कि कहीं अमेरिका को अरब देश अपने पाले में न मिला ले। हालांकि, ऐसा मौका नहीं आया। 1948 में इजरायल अस्तित्व में आया था और वहां के पहले राष्ट्रपति चेम वीज़मन बने थे। इसके बाद आइंस्टीन को राष्ट्रपति बनाने की आवाज उठने लगी थी।

    'विश्व शांति की अपील'

    आइंस्टीन हमेशा से नास्तिक ही रहे और बीमारी से ग्रसित होने के बावजूद अपने अंतिम दिनों में उन्होंने ईश्वर की उपासना नहीं की। वो हमेशा विश्व में शांति स्थापित करने के विषय पर ही चर्चा करते रहते थे। उन्होंने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखकर विश्व शांति को बढ़ाने की अपील की थी। जर्मनी में जन्में आइंस्टीन का 18 अप्रैल, 1955 को 76 साल की उम्र में अमेरिका के एक अस्पताल में निधन हो गया था। 

    निधन के बाद चोरी हुआ था दिमाग

    आइंस्टीन का दिमाग सबसे अलग और खास था। हालांकि, वो कभी नहीं चाहते थे कि उनके दिमाग और शरीर पर अध्ययन किया जाए, लेकिन उनके निधन के बाद पैथोलॉजिस्ट थॉमस हार्वे ने दिमाग चुरा लिया था।

    प्रेरणादायक बातें 

    भले ही आइंस्टीन दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी बातें आज भी लोगों को प्रेरित करने के लिए काफी हैं। इनमें ''कल से सीखें, आज के लिए जिएं, कल के लिए आशा करें और सबसे बड़ी बात, सवाल करने की आदत को कभी भी न छोड़ें'' और ''तर्क आपको A से B तक ले जाएगा, जबकि कल्पना के सहारे आप कहीं भी जा सकते हैं'' यह शामिल हैं।