कर्मफलों का चित्रण, आकर्षक अभिलेख; ब्रह्मांड का अध्ययन सिर्फ किताबों तक ही सीमित नहीं
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके कर्मों के क्या फल हो सकते हैं? जैन ब्रह्मांड विज्ञान के पास शायद इसका जवाब है- अगर आपने हिंसक या ईर्ष्यालु बर्ताव किया है या फिर किसी पर अपना मालिकाना हक जताया है या किसी को नुकसान पहुंचाया है तो आपके आत्मा का पुनर्जन्म नरक में होगा जो कि दुख और पीड़ा से भरा सात स्तरों का विस्तृत क्षेत्र है।

श्रेय मौर्य, मैप अकादमी। जैन ब्रह्मांड विज्ञान विस्तृत तौर पर संरचित है। इसके अनुसार, ब्रह्मांड अनंत और सनातन है। यहां ब्रह्मांड का अध्ययन सिर्फ किताबों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सभी लोकों का वर्णन करने के लिए एक विशेष दृश्य शब्दावली भी विकसित की गई है। सदियों से चित्रकार सचित्र जैन पांडुलिपियों कर्मफल की अवधारणा का चित्रण करते आए हैं...
क्या आपने कभी सोचा है कि आपके कर्मों के क्या फल हो सकते हैं? जैन ब्रह्मांड विज्ञान के पास शायद इसका जवाब है- अगर आपने हिंसक या ईर्ष्यालु बर्ताव किया है या फिर किसी पर अपना मालिकाना हक जताया है या किसी को नुकसान पहुंचाया है, तो आपके आत्मा का पुनर्जन्म नरक में होगा, जो कि दुख और पीड़ा से भरा सात स्तरों का विस्तृत क्षेत्र है, जहां आप लाखों-करोड़ों वर्षों तक रह सकते हैं, जब तक कि आप अपने कर्मों के पूर्ण फलों का अनुभव नहीं कर लेते। बेशक, आपके कर्मों के आधार पर यह भी संभावना है कि आपका पुनर्जन्म इंसानों, पेड़-पौधों या जानवरों की श्रेणी में हो। अगर आपने जीवन में अच्छे कर्म किए हैं तो आपका पुनर्जन्म स्वर्ग में भी हो सकता है, लेकिन स्वर्ग भी रहने के लिए आदर्श जगह नहीं है। मोक्ष प्राप्त करने के लिए-अर्थात जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र में फंसे आत्मा को मुक्त करने के लिए-जरूरी है कि आपका जन्म मानव श्रेणी में हो।
कई शैलियों में निरूपण
जैन ब्रह्मांड विज्ञान विस्तृत तौर पर संरचित है। उसमें एक हद तक बहुस्तरीय समरूपता और दोहराव नजर आता है। जैन धर्म के अनुसार, ब्रह्मांड अनंत और सनातन है- जैन धर्म में किसी तरह के विधाता के लिए कोई जगह नहीं है। किसी जैन तीर्थंकर का कार्य मोक्षधारी जिनों की सिद्ध आत्माओं और इस त्रुटिपूर्ण संसार के बीच मध्यस्थता करना है। इस विशद विचारधारा में ब्रह्मांड का अध्ययन सिर्फ किताबों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सभी लोकों का वर्णन करने के लिए एक विशेष दृश्य शब्दावली भी विकसित की गई है। यह बहुत लंबे कालखंड में विकसित और समृद्ध हुई है। सदियों से चित्रकार कई तरह की सचित्र जैन पांडुलिपियों में नरक के स्तरों का चित्रण करते आए हैं। इन चित्रों में हम देख सकते हैं कि नरक के अलग-अलग स्तरों पर आत्मा को किस तरह की यातनाओं का सामना करना पड़ेगा। जैन ब्रह्मांड का निरूपण कई शैलियों में किया गया है: 17वीं शताब्दी के वस्त्र चित्रणों में सीधे खड़े हुए ब्रह्मांडीय पुरुषों से लेकर 19वीं शताब्दी में प्रिंटिंग प्रेस द्वारा थोक में बनाए गए ब्रह्मांडीय नक्शों तक।
तीन लोक में विभाजित
इसके बुनियादी दर्शन को समझने के लिए हमें ब्रह्मांड की व्यापक संरचना और इसके सूक्ष्म जैन अध्ययन से शुरुआत करनी होगी, खासकर ब्रह्मांड के उस भाग से जहां सारे आत्मा बसते हैं और जिसे लोक आकाश के नाम से जाना जाता है। लोक आकाश खुद तीन लोकों में बंटा है। 17वीं शताब्दी तक इन तीन लोकों का चित्रण सीधे खड़े हुए ब्रह्मांडीय पुरुष के रूप में होने लगा। उसके पैरों से लेकर उसकी कमर तक पाताल लोक, जिसमें नरक के सात स्तर शामिल हैं, उसकी कमर पर जंबूद्वीप, जहां इंसान बसते हैं और उसके धड़ से लेकर गर्दन तक ऊर्ध्व लोक, वह स्वर्गीय क्षेत्र जहां भगवान बसते हैं।
जटिल नजरिए का आकर्षक अभिलेख
इस ब्रह्मांड के अन्य चित्रण लगभग नक्शों की तरह हैं। इन नक्शों में, जिनको आमतौर पर अढ़ाईद्वीप के नाम से जाना जाता है, हमें जंबूद्वीप देखने को मिलता है। यह महाद्वीप, जिसकी धुरी पर मेरु पर्वत है, लवणसमुद्र से घिरा हुआ है। उसके चारों ओर अंगूठी के आकार में बना धातकीखंडद्वीप और अन्य भौगोलिक विशेषताएं उस स्थल को चिह्नित करते हैं जिसके पार मनुष्य नहीं जा सकते। जैन ब्रह्मांड में अढ़ाईद्वीप ही सिर्फ एक ऐसा क्षेत्र है जहां आत्मा, मानव जीवन के द्वारा, अच्छे कर्म करके अपने आपको जीवन चक्र से मुक्त कर सकता है।
हालांकि जैन ब्रह्मांड विज्ञान के अनुसार आपका भाग्य दांव पर लगा है, इस बात को कोई नहीं नकार सकता कि ये चित्र एक जटिल वैश्विक नजरिए का चित्ताकर्षक अभिलेख हैं। इनके जरिए हमें जैन धर्म की दृश्य कलाकृतियों के बारे में दिलचस्प समझ प्राप्त होती है।
श्रेय मौर्य
(सौजन्य https://map-academy.io)
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।