जानें- अमेरिका और यूरोपीय देशों के लिए भी आखिर क्यों खास हो गया है SCO सम्मेलन और मोदी-पुतिन की बैठक
उजबेकिस्तान के समरकंद में हो रहे एससीओ सम्मेलन पर इस बार पूरी दुनिया की नजरें लगी हुई हैं। खासतौर पर रूस और भारत के राष्ट्राध्यक्षों के बीच होने वाली बैठक पर अमेरिका और यूरोपीय देशों की नजरें लगी हैं।

नई दिल्ली (आनलाइन डेस्क)। उजबेकिस्तान के समरकंद में गुरुवार 15 सितंबर से शंघाई सहयोग संगठन (SCO-2022) सम्मेलन शुरू हो रहा है। इस संगठन के सदस्य देशों के राष्ट्रप्रमुखों की परिषद की यह 22वीं बैठक है। इसमें भारत भारत की तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिस्सा लेंगे। उनके अलावा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, उजबेकिस्तान के राष्ट्रपति Shavkat Mirziyoyev और तजाखस्तान के राष्ट्रपति Emomali Rahmon भी इस बैठक में हिस्सा ले रहे हैं। इस बार आयोजित इस सम्मेलन पर पूरी दुनिया की नजरें हैं। खासतौर पर अमेरिका और यूरोपीय देश इस सम्मेलन पर इसलिए भी नजरें गड़ाए हुए हैं क्योंकि यूक्रेन पर हमले के बाद पहली बार रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने देश से बाहर किसी सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं।
यूक्रेन पर राय जानने को उत्सुक
अमेरिका और यूरोपीय देशों के लिए केवल ये ही खास बात नहीं है बल्कि ये इसलिए भी खास हो गया है क्योंकि अमेरिका से खार खाने वाले चीन और रूस दोनों ही इसमें हिस्सा ले रहे हैं। तीसरा इसकी महत्ता इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन से इतर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करने वाले हैं। भारत ने यूक्रेन पर हमले के बाद से यूएन की सुरक्षा बैठक के दौरान वोटिंग से बाहर रहते हुए परोक्ष रूप से रूस का साथ दिया है। हालांकि भारत ने हर बार कहा है कि वो दोनों देशों के बीच विवादों का बातचीत के जरिए हल निकालने का समर्थक है। अब जबकि पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच मुलाकात होने वाली है तो अमेरिका और यूरोपीय देश दोनों देशों के इस युद्ध को लेकर विचार और बयानों को जानने के लिए उत्सुक हैं।
द्वीपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने पर होगा जोर
विदेश मामलों के जानकार और जवाहरलाल नेहरू के प्रोफेसर एचएस भास्कर का कहना है कि रूस की तरफ से क्रेमलिन ने कहा है कि शुक्रवार को होने वाली इस मुलाकात के दौरान दोनों देशों के बीच द्वीपक्षीय समझौतों को आगे बढ़ाने पर बातचीत होगी। इसके अलावा एक बात और क्रेमलिन की तरफ से कही गई है। वो ये है कि ये बातचीत दोनों देशों के बीच एनर्जी और व्यापार को आगे बढ़ाने पर होगी। प्रोफेसर भास्कर की मानें तो रूस के यूक्रेन पर हमले और यूरोप को गैस की सप्लाई रोकने के बाद विश्वस्तर पर समीकरण तेजी से बदले हैं।
भारत-रूस के संबंध काफी पुराने
प्रोफेसर भास्कर के मुताबिक भारत और रूस के बीच के संबंध काफी पुराने हैं। इसलिए इनमें उतार-चढ़ाव भी नहीं देखा जाता है। बीते कुछ माह इस बात का पुख्ता सुबूत भी हैं। आपको बता दें कि इस संगठन के फिलहाल 8 सदस्य देश हैं, जिनमें भारत, चीन, कजाखस्तान, क्रिगीस्तान, रूस, पाकिस्तान, तजाकिस्तान और उजबेकिस्तान हैं। इसके आब्जरवर देशों के रूप में अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया हैं जबकि डायलाग पार्टनर के रूप में अर्मेनिया, अजरबेजान, कंबोडिया, नेपाल, श्रीलंका और तुर्की हैं।

रूस पर प्रतिबंधों से नहीं पड़ा कोई असर
ये बताता है कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भी रूस और भारत के बीच के संबंधों में किसी तरह की कोई कमी नहीं आई है। चाहे रूस के मिसाइल डिफेंस सिस्टम एस-400 की बात हो या दूसरे चीजों की भारत ने देशहित में ही हर फैसला लिया है। पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन के बीच होने वाली बैठक में ये देखना बेहद दिलचस्प होगा कि यूक्रेन को लेकर क्या कुछ निकलकर आता है।


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