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    कभी सज्‍जनता तो कभी शाही सम्‍मान की पहचान बना है छाता, दिलचस्‍प है इसका इतिहास

    By Kamal VermaEdited By:
    Updated: Sun, 23 Aug 2020 02:54 PM (IST)

    धूप हो या बरसात हमेशा काम आता है छाते का साथ। मौसम की मार से बचाने के साथ ही शान-ओ-शौकत के लिए सदियों से इस्तेमाल किए जा रहे इस छाते का इतिहास है अपने ...और पढ़ें

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    कभी सज्‍जनता तो कभी शाही सम्‍मान की पहचान बना है छाता, दिलचस्‍प है इसका इतिहास

    नई दिल्‍ली (नवीन जैन)। बारिश का मौसम पूरे जोर पर है। घर पर रहते हुए बारिश का मजा लेना हो तो ठीक, मगर इस मौसम में अगर कहीं बाहर निकलना हो तो याद आता है छाता। छाता या छतरी, जिसे अंगे्रजी में अंब्रेला कहते हैं, यह लैटिन भाषा के शब्द ‘अंब्रा’ से बना है, जिसका अर्थ होता है ‘छाया’। मानव इतिहास में छातों का इतिहास बहुत प्राचीन है। एशियाई देशों में 3000 वर्ष पूर्व से छातों का प्रयोग होता आया है। ऐसा भी कहा जाता है कि मूल छतरी का अविष्कार 4000 साल पहले ही हो गया था। मिस्र, ग्रीस तथा चीन की प्राचीन कला और कलाकृतियों में छतरियों के सबूत मिलते हैं। बारिश के पानी से बचने के लिए छातों का इस्तेमाल सबसे पहले रोम निवासियों ने किया था।

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    सज्जनता की पहचान

    छातों के इतिहास के लिए चाहे जितनी बातें हों, लेकिन छातों को समुचित प्रसिद्धि दिलाने का श्रेय जोनास हेनवे नामक अंग्रेज व्यापारी को जाता है। जोनास एक संपन्न तथा अमीर व्यापारी था। इन्होंने वर्ष 1750 में एक अभियान शुरू किया। चाहे बारिश हो या धूप, वह लंदन की सड़कों व गलियों में अपने छाते के साथ घूमते थे। हरदम अपना छाता लगाए रखने के लिए लोगों ने उनका मजाक भी बनाया। हालांकि धीरे-धीरे लोगों को छातों का महत्व समझ आने लगा। इंग्लैंड में छातों का प्रयोग सर्वप्रथम जॉन हेरवे ने किया। यहां तक कि अंग्रेज अफसर युद्ध में भी छातों का प्रयोग करते थे। ड्यूक ऑफ वेलिंगटन तो छातों में तलवार छिपाकर रखते थे। लंदन में तो सज्जन की पहचान ही हाथ में छाता होता है। ऐसा भी कहा जाता है कि फ्रांस के सम्राट लळ्ई के संग्रहालय में हर रंग के छातों के अलावा सोने तथा चांदी के छाते भी थे। इसी दौरान छातों को नया लुक देकर महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधन से जोड़ दिया गया। महारानी विक्टोरिया ने छातों में रंगीन रेशमी जालीदार कपड़े भी सजवाए। वहीं छातों के हत्थों को भी कलात्मक बनाया गया। लंदन में छातों की सबसे पहली दुकान वर्ष 1830 में खोली गई थी और यह अभी भी लंदन में स्थित है।

    शाही सम्मान की पहचान

    ऐतिहासिक तस्वीरों में महाराजाओं के सिर पर छाते तानकर चलते अनुचर नजर आते हैं। कहा जाता है कि किसी जमाने में छाता शाही सम्मान का प्रतीक भी माना जाता था। मिस्र, यूनान, चीन के साथ ही भारत की प्राचीन कलाकृतियों में छाते की छवि ऐतिहासिक तस्वीरों में दिखाई देती है। भारत में जहां छतरी आम आदमी की जिंदगी का हिस्सा है तो वहीं फिल्मों में भी छातों ने अपनी पूरी जगह बनाई है। इसी तरह ग्वालियर के सिंधिया घराने की बात हो तो राजमहल के एक हिस्से में समाधि स्थल है जहां छतरियों के नीचे सिंधिया राजवंश के दिवंगत सदस्यों की समाधियां हैं।

    काला छाता हर वक्त मांग में

    भले ही रंग-बिरंगी छतरियां प्रचलन में आ गई हैं, पर काले रंग का छाता आज भी अपनी शान बनाए हुए है। काले रंग का छाता अल्ट्रा वॉयलेट किरणों को हमारी त्वचा तक पहुंचने नहीं देता तथा अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से 99 फीसद तक सुरक्षा प्रदान करता है। इसके अलावा यह छाता अंदर से सिल्वर रंग का बनाया जाता है जिससे गर्म किरणें वापस छाते से बाहर चली जाती हैं। आधुनिक काल में भले ही रेनकोट प्रचलन में आ गए हैं, लेकिन बाजार विशेषज्ञों के अनुसार इससे छातों के चलन में कोई फर्क नहीं आया है और न ही इसकी डिमांड में कम हुई है।

    23 मीटर व्यास और 14.4 मीटर लंबाई वाले छाते का नाम दर्ज है दुनिया के सबसे बड़े छाते के तौर पर गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉड्र्स में, जिसे चीन की एक कंपनी ने बनाया है।

    उड़ने वाला अनोखा छाता

    जापानी आइटी कंपनी ने डोनबे्रला नामक छाता तैयार किया है। इसे हाथ से पकड़ने की जरूरत नहीं। इसके बारे में महिंद्रा समूह के चेयरमेन आनंद महिंद्रा ने अपने ट्वीट में भी साझा किया था। यह अनोखा छाता एक एप से नियंत्रित होता है। इतना ही नहीं, इसमें कई तरह के फंक्शन भी हैं।