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ऊर्जा के संचार को सूर्य नमस्‍कार करना है लाभप्रद, जानें विधि

कोरोना काल में योग इसलिए ज्यादा जरूरी है क्योंकि तन और मन दोनों को स्वस्थ रखना है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 21 Jun 2020 01:16 PM (IST)Updated: Sun, 21 Jun 2020 01:16 PM (IST)
ऊर्जा के संचार को सूर्य नमस्‍कार करना है लाभप्रद, जानें विधि
ऊर्जा के संचार को सूर्य नमस्‍कार करना है लाभप्रद, जानें विधि

नई दिल्‍ली। योगासन एक अभ्यास है, विकार पर विजय का, चित्त की एकाग्रता और संतुलन व बेहतर स्वास्थ्य का। कोरोना काल में यह इसलिए ज्यादा जरूरी है क्योंकि तन और मन दोनों को स्वस्थ रखना है। कोरोना से तो लड़ना ही है और बाकी बीमारियों से भी बचना है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर बात सूर्य नमस्कार पर।

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सूर्य नमस्कार क्या है

सूर्य ऊर्जा का सबसे बड़ा स्नोत है। सूर्य नमस्कार का मतलब है सूर्य को नमन करना। अगर योग की शुरुआत कर रहे हैं तो इसके लिए सूर्य नमस्कार का अभ्यास सबसे बेहतर है। यह एक साथ बारह योगासनों का फायदा देता है और इसीलिए इसे सर्वश्रेष्ठ योगासन भी कहा जाता है। सूर्य नमस्कार के बारह चरण का हर रोज अभ्यास करने से दिमाग सक्रिय और एकाग्र होता है।

लाभ 

वजन कम करने में मदद करता है। पाचन और भूख में सुधार करता है। शरीर को लचीला बनाता है।

कब्ज की समस्या को ठीक करने में कारगर है। शारीरिक और मानसिक मजबूती बढ़ाता है। हड्डियों को मजबूत करता है। 

बाजू, कंधों, कमर, पैर इत्यादि की मांसपेशियों को टोन करता है।

कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए सूर्य नमस्कार बेहद लाभदायक क्रिया है। सूर्य नमस्कार के लिए हम 12 चरणों में भिन्न-भिन्न स्थितियों में अभ्यास करते हैं और एक बार में 13 चक्रों का अभ्यास कर सकते हैं। इससे इम्यून सिस्टम तो मजबूत होता ही है, फेफड़ों की शक्ति भी बढ़ती है। शरीर में ऑक्सीजन रोकने की और उसका इस्तेमाल करने की क्षमता में भी लगातार वृद्धि होती है। जिससे शरीर में रक्त संचरण सुगमता से होने लगता है। सूर्य नमस्कार कोरोना ही नहीं, दूसरी गंभीर बीमारियों में भी रामबाण है।

डॉ हिमांशु सारस्वत, योग विशेषज्ञ, देहरादून

विधि

प्रणामासन: सूरज की तरफ चेहरा करके पैरों को मिलाएं, कमर सीधी रखें। दोनों हथेलियों को मिलाकर प्रणाम की अवस्था बनाएं। हस्तउत्तनासन: खड़े होकर अपने हाथों को सिर के ऊपर उठाकर सीधा रखें। अब हाथों को प्रणाम की अवस्था में ही पीछे की ओर ले जाएं और कमर को पीछे की तरफ झुकाएं।

पादहस्तासन: अब धीरे-धीरे सांस छोड़ें और आगे की ओर झुकते हुए हाथों से पैरों की उंगलियों को छुएं। अश्व संचालनासन: सीधा पैर पीछे की ओर फैलाएं। सीधे पैर का घुटना जमीन से मिलना चाहिए। अब दूसरे पैर को घुटने से मोड़ें और हथेलियों को जमीन पर सीधा रखें।

दंडासन: अब सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों और पैरों को सीधी लाइन में रखें।

अष्टांग नमस्कार: सांस लेते हुए अपनी हथेलियों, सीने, घुटनों और पैरों को जमीन से मिलाएं।

भुजंगासन: अब हथेलियों को जमीन पर रखकर पेट को जमीन से मिलाते हुए सिर को पीछे झुकाएं।

अधोमुख शवासन: इसे पर्वतासन भी कहा जाता है। पैरों को जमीन पर सीधा रखें और कूल्हे को ऊपर की ओर उठाएं। इसके बाद पुन: अश्व संचालनासन, पादहस्तासन, हस्तउत्तनासन और प्रणामासन करें।


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