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कश्‍मीर में अलगाववाद को भड़काने में सबसे आगे रहे सैयद अली, हमेशा बोली पाकिस्‍तान की भाषा

कश्‍मीर में अलगाववाद को भड़काने में निकल गया। वो इस पंक्ति के अग्रणी लोगों में से एक थे। यही वजह है कि उनके चहेतेे पाकिस्‍तान ने उनके निधन शोक जताते हुए अपने झंडे को आधा झुका दिया है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 02 Sep 2021 07:13 AM (IST)Updated: Thu, 02 Sep 2021 07:56 AM (IST)
वर्ष 2020 में गिलानी ने हुर्रियत को छोड़ दिया था।

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। सैयद अली शाह गिलानी का पूरा जीवन पाकिस्‍तान की भाषा बोलने और कश्‍मीर में अलगाववाद को भड़काने में निकल गया। वो इस पंक्ति के अग्रणी लोगों में से एक थे। यही वजह है कि उनके चहेतेे पाकिस्‍तान ने उनके निधन शोक जताते हुए अपने झंडे को आधा झुका दिया है। आपको बता दें कि गिलानी 1972, 1977 और 1987 में सोपोर से विधायक भी रहे थे। 

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गिलानी की भारत विरोधी नीति का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्‍होंने वर्ष 2001 में भारतीय संसद पर हुए आतंकी हमलों का समर्थन किया था और आतंकियों को शहीद बताया था। इतना ही नहीं वर्ष 2008 में जब मुंबई हमले पर भी उनका यही रुख सामने आया था। लश्‍कर ए तैयबा का चीफ हाफिज सईद गिलानी के लिए हीरो रहा। इतना ही नहीं अमेरिका ने जब पाकिस्‍तान में अलकायदा के चीफ ओसामा बिन लादेन को ठिकाने लगाया तो गिलानी ने न सिर्फ इसकी आलोचना की बल्कि उसके लिए अपने समर्थकों के साथ मिलकर दुआ भी की थी।  

गिलानी के राजनीतिक करियर की बात करें तो वो पहले जमात ए इस्‍लामी कश्‍मीर से जुड़े थे लेकिन बाद में पाकिस्‍तान के इशारे पर उन्‍होंने तहरीक ए हुर्रियत पार्टी का गठन किया, जो आधिकृत रूप से पाकिस्‍तान की भाषा बोलने वाली एक पार्टी है। काफी लंबे समय तक वो आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमेन भी रहे। वर्ष 2020 में उन्‍होंने हुर्रियत को छाड़ दिया था।  

कश्‍मीर के सोपोर में जन्‍मे गिलानी ने लाहौर से अपनी पढ़ाई पूरी की थी। आपको बता दें कि गिलानी एक बेटा और बहू दोनों ही पेशे से डाक्‍टर हैं और वो पहले पाकिस्‍तान के रावलपिंडी में अपनी प्रैक्टिस करते थे लेकिन 2010 में ये दोनों ही भारत आ गए थे। उनका दूसरा बेटा श्रीनगर की एग्रीकल्‍चर यूनिवर्सिटी में काम करता है। उनका पोता एक प्राइवेट एयरलाइन में क्रू मैंबर है। 

ये काफी दिलचस्‍प है कि अलगाववाद की भाषा के हिमायती रहे गिलानी ने अपने बच्‍चों को अच्‍छी शिक्षा देने में कोई कोर-कसर नहीं रखी। वहीं दूसरी तरफ वो मासूम कश्‍मीरियों को भारत के खिलाफ भड़काने का पाठ पढ़ाते थे। यही वजह है कि 1981 में भारत सरकार ने उनका पासपोर्ट जब्‍त कर लिया था। वर्ष 2006 में हज पर जाने के लिए उनको पासपोर्ट जरूर दिया गया। इसी वर्ष गिलानी को कैंसर होने की बात सामने आई थी। 

वर्ष 2007 में गिलानी की  हालत अधिक खराब होने के बावजूद अमेरिका ने उन्‍हें वीजा देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद उनका इलाज मुंबई में कराया गया था। मार्च 2014 में उनकी हालत एक बार फिर खराब हुई थी। वर्ष 2010 के बाद अधिकतर समय गिलानी को नजरबंद रखा गया। वर्ष 2015 में गिलानी ने अपनी बेटी के पास सऊदी अरब जाने के लिए पासपोर्ट की मांग की थी, जिसके बाद उन्‍हें पासपोर्ट दिया गया था। वर्ष 2014 में गिलानी की मौत की अफवाह उड़ी थी, जिसके बाद जम्‍मू कश्‍मीर में इंटरनेट बंद कर दिया गया था।     


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