Move to Jagran APP

सात बार केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भी जनेश्‍वर के पास नहीं थी कोई गाड़ी और न ही कोई बंगला

जनेश्‍वर को राजनारायण ने छोटे लोहिया की उपाधि दी थी। वो सात बार केंद्र में मंत्री रहे थे। उनकी गिनती जमीन से जुड़े नेताओं में होती है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 21 Jan 2020 06:01 PM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 06:53 AM (IST)
सात बार केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भी जनेश्‍वर के पास नहीं थी कोई गाड़ी और न ही कोई बंगला
सात बार केंद्रीय मंत्री बनने के बाद भी जनेश्‍वर के पास नहीं थी कोई गाड़ी और न ही कोई बंगला

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्‍वर मिश्र देश के उन गिने-चुने नेताओं में से थे जो केंद्र में कई बार मंत्री रहे, लेकिन इसके बावजूद उनके पास न तो कोई गाड़ी थी और न ही कोई बंगला ही था। यह उनके जमीन से जुड़े नेता होने की भी पहचान थी। जनेश्‍वर यूं तो समाजवादी पार्टी के एक राजनेता थे, लेकिन उनका सम्‍मान हर पार्टी और हर नेता करता था। 

loksabha election banner

उनके ऊपर समाजवादी विचारधारा की छाप साफतौर पर दिखाई भी देती थी। इसी वजह से वो छोटे लोहिया के नाम से प्रसिद्ध भी थे। 5 अगस्‍त 1933 को बलिया के शुभनथहीं के गांव में जन्‍में जनेश्‍वर ने अपनी प्राथमिक शिक्षा बलिया से ही पूरी की थी। इसके बाद वह 1953 में इलाहाबाद आ गए जो बाद में उनकी कर्मभूमि भी बनी। समाजवादी विचारधारा से प्रभावित को हमेशा लगता था कि यही सोच देश को विकास के मार्ग पर अग्रसर कर सकती है। 

इलाहाबाद में ही उन्‍होंने अपनी कालेज की पढ़ाई भी पूरी की थी। वो ग्रेजुएशन के दिन थे जब जनेश्‍वर ने राजनीति का ककहरा सीखना शुरू किया था। यहां से ही वो छात्र राजनीति जुड़े थे। इस दौरान कई मुद्दों को लेकर उन्‍होंने आंदोलन शुरू किया तो कुछ आंदोलन का वो हिस्‍सा बने। 1967 उनके जीवन का सबसे बड़ा वर्ष था। यहां से ही उन्‍होंने सक्रिय राजनीति में हिस्‍सा लिया था। अपने आंदोलनों के चलते उस वक्‍त उन्‍हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था। इसी दौरान लोकसभा चुनाव का भी एलान हो चुका था।

छुन्नन गुरू व सालिगराम जायसवाल के काफी मनाने पर वो फूलपुर से विजयलक्ष्मी पंडित के खिलाफ चुनाव में उतरने को तैयार हुए थे। उनके सामने विजय लक्ष्‍मी काफी बड़ा नाम था। वहीं दूसरी तरफ मतदान नजदीक आ रहे थे और जनेश्‍वर जेल में ही थे। मतदान से करीब दस दिन पहले उन्‍हें जेल से रिहा किया गया। रिहा होते ही उन्‍होंने जमकर प्रचार अभियान में हिस्‍सा लिया। लेकिन उनकी यह मेहनत परिणाम में नहीं बदल सकी। उन्‍हें इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि दो वर्ष बाद ही विजय लक्ष्‍मी पंडित को रातदूत नियुक्‍त कर दिया गया और उन्‍हे अपनी लोकसभा सदस्‍यता से इस्‍तीफा देना पड़ा था।  

1969 में फूलपुर सीट पर उपचुनाव हुआ तो सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्‍याशी के तौर पर जनेश्वर मिश्र एक बार फिर चुनावी मैदान में उतर गए। इस बार उन्‍हें जीत मिली और वह पहली बार लोकसभा पहुंचे। उन्‍हें छोटे लोहिया का नाम राजनारायण ने दिया था। इसके बाद जनेश्‍वर लगातार राजनीति की सीढि़यां चढ़ते चले गए। 1972 के लोकसभा चुनाव में उन्‍होंने फूलपूर से कमला बहुगुणा को करारी शिकस्‍त दी। 1974 में उन्‍होंने इंदिरा गांधी के वकील रहे सतीश चंद्र खरे को भी करारी शिकस्‍त दी।

आपको बता दें कि जनेश्‍वर मिश्र राजनीति के उन धुरंधरों में शामिल रहे हैं जिन्‍होंने इस मैदान के महारथियों को भी धूल चटाई। 1978 के लोकसभा चुनाव में वह जनता पार्टी के टिकट से इलाहाबाद से मैदान में उतरे थे। उनके सामने थे विश्वनाथ प्रताप सिंह। यहां पर पहले पहल मामला कांटे का माना जा रहा था, लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आया तो वीपी सिंह की झोली में हार आई थी। इस जीत के साथ उन्‍हें पहली बार केंद्रीय केबिनेट में शामिल किया गया और उनके जिम्‍मे पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय आया। 

हालांकि स्‍वस्‍थ्‍य संबंधी परेशानी के चलते उन्‍होंने कुछ ही समय के बाद यह मंत्रालय स्‍वेच्‍छा से छोड़ दिया था। ठीक होने के बाद जनेश्‍वर को विद्युत, परंपरागत ऊर्जा और खनन मंत्रालय दिया गया। चरण सिंह की सरकार में वो जहाजरानी व परिवहन मंत्री बने। 1984 के लोकसभा चुनाव में उन्‍होंने देवरिया के सलेमपुर संसदीय क्षेत्र से चंद्रशेखर के खिलाफ चुनाव लड़ा था। यहां पर उन्‍हें हार का सामना करना पड़ा था। 1989 में

एक बार फिर उन्‍हें जीत का स्‍वाद चखने को मिला और उन्‍होंने जनता दल के टिकट पर इलाहाबाद से जीत हासिल की। इसके बाद उन्‍हें केंद्र में संचार मंत्री बनाया गया। 1991 में बनी चंद्रशेखर की सरकार में वो रेलमंत्री और एचडी देवगौड़ा की सरकार में जल संसाधन मंत्री बने। इसके बाद इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में  उन्‍हें एक बार फिर से पेट्रोलियम मंत्रालय की जिम्‍मेदारी सौंपी गई थी।1992 से 2010 तक वह राज्यसभा के सदस्य रहे थे। 22 जनवरी 2010 में हार्ट अटैक की वजह से उनका इलाहाबाद में निधन हो गया था। उस वक्‍त वो समाजवादी पार्टी के उपाध्‍यक्ष और राज्‍य सभा सदस्‍य थे। 

यह भी पढ़ें:- 

Alert! वर्षों तक जिंदा रह सकता है Corona Virus, खांसने और छींकने वालों से बनाकर रखें दूरी

'परिवार के साथ डर से कांपते उस दिन कितनी दूर तक बर्फ के बीच पैदल चले पता नहीं' 

दुनिया के कई शाही परिवार के सदस्‍यों ने भी ठुकराया Royal Family Member का दर्जा 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.