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जानें- क्‍या होती है एंटी सेटेलाइट मिसाइल तकनीक, जिसके मॉडल का रक्षा मंत्री करेंगे उद्घाटन

भारत ने पिछले वर्ष मार्च में अंतरिक्ष में मौजूद अपने एक उपग्रह को नष्‍ट कर एंटी सेटेलाइट मिसाइल तकनीक हासिल की थी। इसको पाने में लगभग एक दशक का समय लगा था। भारत इसके बाद दुनिया के उन चार देशों में शामिल हो गया था जिनके पास ये तकनीक है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 01:40 PM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 01:40 PM (IST)
जानें-  क्‍या होती है एंटी सेटेलाइट मिसाइल तकनीक, जिसके मॉडल का रक्षा मंत्री करेंगे उद्घाटन
भारत, अमेरिका, रूस और चीन के पास है ASAT की तकनीक

नई दिल्ली (ऑनलाइन डेस्क)। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह आज (9 नवंबर 2020) एंटी सेटेलाइट मिसाइल के मॉडल (ASAT Model) का उद्घाटन करने वाले हैं। यही वजह है कि एक बार फिर से ये शब्‍द और ये तकनीक मीडिया जगत की सुर्खियां बन गया है। ये मॉडल देश की उन्‍नत होती तकनीक का परिचायक है। दरअसल, ऐसा इसलिए भी है क्‍योंकि भारत के लिए ये शब्‍द नया नहीं है। पिछले वर्ष 27 मार्च को पूरी दुनिया ने भारत की इस ताकत को महसूस किया था। इसी दिन भारत अंतरिक्ष में घूम रहे अपने एक उपग्रह को नष्‍ट करने के लिए इस मिसाइल का इस्‍तेमाल किया था। इस सफलता के बाद भारत दुनिया का चौथा ऐसा देश बन गया था जिसके बाद इस तरह की तकनीक उपलब्‍ध है। हालांकि इस तकनीक को पाने में भारत को लगभग पूरा दशक ही लग गया। भारत के अलावा एंटी सेटेलाइट अमेरिका, चीन और रूस के पास मौजूद है। ये दो सॉलिड बूस्‍टर के साथ एक थ्री स्‍टेज सेटेलाइट है।

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आपको बता दें कि इस पृथ्‍वी पर केवल दो ही जगह ऐसी हैं जिसको युद्ध से अलग रखा गया है। इनमें एक है ब्रह्मांड तो दूसरा है अंटार्कटिका। एक अंतरराष्‍ट्रीय समझौते के मुताबिक स्‍पेस को किसी भी तरह के युद्ध में शामिल नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि इस तकनीक का इस्‍तेमाल किसी भी अन्‍य देश की सेटेलाइट को नष्‍ट करने के लिए नहीं किया जा सकता है। ऐसा करना अंतरराष्‍ट्रीय समझौते का उल्‍लंघन माना जाएगा। एंटी सेटेलाइट मिसाइल (Anti Satellite Missile) को स्‍पेस वैपन (Space Weapon) भी कहा जाता है। 27 मार्च की जिस कामयाबी का यहां पर जिक्र किया गया है उसमें भारत ने लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में घूम रहे अपने एक सेटेलाइट को नष्‍ट किया था।

इसका एल्‍टीट्यूड 2000 किमी तक होता है। मानवनिर्मित अधिकतर उपग्रह इसी कक्षा में धरती की परिक्रमा करते हैं। यहां पर मौजूद सेटेलाइट एक दिन में 11 बार धरती की परिक्रमा करता है। अधिकतर उपग्रह को यहां पर स्‍थापित करने की एक बड़ी वजह ये भी है क्‍योंकि यहां तक उपग्रह को भेजने में ईंधन की खपत कम होती है। यहां पर ही स्‍पेस स्‍टेशन भी मौजूद रहता है। इसरो ने भारत के उपग्रह को नष्‍ट करने के लिए के लिए मिशन शक्ति लॉन्‍च किया था। जिस वक्‍त भारत ने इस टेस्‍ट को अंजाम दिया था तब अमेरिकी विशेषज्ञों ने इसको चीन की ताकत को देखते हुए किया गया परीक्षण करार दिया था। वहीं भारत ने इस परीक्षण के बाद कहा था कि वो अपनी जिम्‍मेदारी को भलीभांति जानता है। ये तकनीक भारत की आत्‍मरक्षा के लिए विकसित की गई है, लिहाजा इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

एंटी सैटेलाइट सिस्टम की शुरुआत

इस तकनीक की शुरुआत के पीछे अमेरिका और रूस रहे हैं। वर्ष 1950 में अमेरिका ने ये क्षमता हासिल की थी, वहीं 1965 में रूस ने इसको विकसित किया था। वर्ष 2007 में चीन ने इसका सफलतापूर्वक परीक्षण किया था। चीन ने भी लो अर्थ ऑर्बिट में मौजूद अपने एक उपग्रह को नष्‍ट कर ये सफलता हासिल की थी। जहां तक भारत की बात है तो आपको बता दें कि वर्ष 2010 से ही भारत इस तकनीक को विकसित करने में जुटा था।


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