जानिये क्या होता है कोर्ट मार्शल, मेजर गोगोई को करना पड़ सकता है इसका सामना
होटल में महिला से मिलने के मामले में मेजर गोगोई के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के आदेश कर दिए गए हैं। जानिये क्या है इसकी पूरी प्रक्रिया। ...और पढ़ें

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। पत्थरबाजों पर काबू पाने के लिए एक पत्थरबाज को जीप के आगे मानव ढाल की तरह इस्तेमाल करने वाले मेजर लितुल गोगोई होटल मामले में फंस गए हैं। सेना की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी में उनको श्रीनगर के एक होटल में स्थानीय महिला से ‘मिलने’ और कार्यस्थल से दूर रहने का दोषी पाया गया है। इससे उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का रास्ता साफ हो गया है। उन्हें कोर्ट मार्शल का सामना भी करना पड़ सकता है। सेना के सूत्रों ने सोमवार को बताया कि गोगोई के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं।
कोर्ट मार्शल
कोर्ट मार्शल की प्रक्रिया शुरू होते ही आरोपी सैन्य अफसर या कर्मी को आरोपों की प्रति देकर उसे अपना वकील नियुक्त करने का अधिकार दिया जाता है। कोर्ट मार्शल भी चार तरह के होते हैं, जिनमें समरी कोर्ट मार्शल, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल, समरी जनरल कोर्ट मार्शल जनरल कोर्ट मार्शल शामिल हैं।
सजा के बाद नीचली अदालत या एएफटी में चुनौती
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल में सुनाई गई सजा को दोषी ठहराया गया कार्मिक सेशन कोर्ट में चुनौती दे सकता है। जबकि कोर्ट मार्शल में सुनाई गई सजा के खिलाफ पहले हाईकोर्ट में या सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी जाती थी। अब आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल (एएफटी) में इसे चुनौती दी जा सकती है। जनहित होने पर एएफटी के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में चुनौती देने का अधिकार है। कोर्ट मार्शल के चार प्रकार होते हैं।
समरी कोर्ट मार्शल
ये सबसे निचले स्तर की सैन्य अदालत होती है। इसमें नोन कमीशंड सैन्य कर्मियों के मामले की सुनवाई के लिए गठित होती है। इसमें सिपाही से लेकर एनसीओ यानी नोन कमीशंड ऑफिसर को सजा देने का प्रावधान है। ये किसी भी रेजिमेंट या यूनिट का सीओ (कमान अधिकारी) समरी कोर्ट मार्शल गठित करता है। इसमें पीठासीन अधिकारी ही अकेला कोर्ट होता है, वही जज की भूमिका में रहता है। मामले की सुनवाई के बाद वहीं सजा सुनाता है। इसमें दो साल से कम सजा का प्रावधान है। सजा किसी भी तरह की हो सकती है। सजा को यूनिट का सीओ ही एप्रूव्ड करता है।
डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल
ये कोर्ट भी सिपाही से जेसीओ स्तर तक के सैन्य कर्मी के खिलाफ जांच करती है। इसमें सुनवाई करने वाले सदस्यों की संख्या दो या तीन होती है। इसमें दो साल तक की सजा का प्रावधान है। इसका गठन भी स्टेशन कमांडर स्तर तक का अधिकारी करता है।
समरी जनरल कोर्ट मार्शल
प्रमुख फील्ड इलाके में जैसे जम्मू कश्मीर में अपराध होने पर जेसीओ तक के कार्मिक के खिलाफ जांच के लिए सैन्य अदालत गठित होती है। इसमें पीठासीन अधिकारी को त्वरित निर्णय करना होता है। इसमें तीन सदस्य तक शामिल होते है।
जनरल कोर्ट मार्शल
ये कोर्ट जवान से लेकर अफसर तक के खिलाफ जांच कर उसके से दंडित करने का अधिकार रखता है। इसमें पीठासीन अधिकारी के अलावा पांच से सात लोग शामिल होते है। इसमें दोषी के खिलाफ आजीवन प्रतिबंध, सैन्य सेवा से बर्खास्त या मौत की सजा देने का भी अधिकार होता है। ये अदालत शांति क्षेत्र में कम सजा और युद्ध के दौरान मौत की सजा का भी प्रावधान है। जैसे युद्ध के दौरान किसी ने अपनी पोस्ट छोड़ दी या भागने पर।
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मेजर गोगोई का पूरी कहानी
मेजर गोगोई का गृहनगर पतकाई पहाड़ियों में जंगलों के बीच डिब्रूगढ़ से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित है। यह इलाका कभी उल्फा आतंकियों की गतिविधियों का केंद्र था। वर्तमान में यहां तीन बड़े औद्योगिक इकाइयां ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर कार्पोरेशन लिमिटेड, असम पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड और नामरूप थर्मल पावर स्टेशन स्थापित हैं। मेजर गोगोई के पिता धर्मेश्वर गोगोई नामरूप की सार्वजनिक क्षेत्र इकाई ब्रह्मपुत्र वैली फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन से रिटायर हुए हैं। वह इकाई के उत्पादन विभाग में काम करते थे। लीतुल ने डिब्रूगढ़ और शिलांग में पढ़ाई की और बाद में भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक किया। सेना के सूत्रों ने कहा कि वह 18 साल उम्र में सेना में शामिल हुए थे। देहरादून स्थित आर्मी कैडेट कॉलेज (एसीसी) से एक अधिकारी बनने से पहले करीब 9 वर्षों तक उन्होंने असम रेजिमेंट की तीसरी बटालियन में बतौर जवान अपनी सेवाएं दीं। दिसंबर 2008 में गोगोई को लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया था।
चर्चा का विषय बने गोगोई
मेजर गोगोई देशभर में उस वक्त चर्चा का विषय बन गए थे, जब 9 अप्रैल को श्रीनगर में लोकसभा उप चुनाव के मतदान के दौरान सेना का एक वीडियो सामने आया था। इसमें एक स्थानीय शख्स को सेना की जीप के आगे बंधा हुआ दिखाया गया था, जिससे पत्थरबाजों ने सेना के काफिले पर हमला नहीं किया था। सेना प्रमुख बिपिन रावत ने आतंकवाद-विरोधी अभियानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मेजर गोगोई की पीठ थपथपाई और प्रशस्ति पत्र देकर उन्हें सम्मानित भी किया था।
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क्या है ताजा मामला
मई में मेजर गोगोई के अपनी एक महिला दोस्त के साथ एक होटल के रूम में जाने पर एक बार फिर से वह सुर्खियों में आए थे। श्रीनगर के डलगेट खनयार इलाके में स्थित होटल ग्रैंड ममता में असम निवासी मेजर लीतुल गोगोई के नाम पर एक कमरा ऑनलाइन बुक किया गया था। पुलिस का कहना है था कि सुबह 11 बजे होटल ममता से फोन पर सूचना मिली कि बीरवाह बडगाम से समीर अहमद एक स्थानीय युवती संग सैन्य अधिकारी से मिलने आया, लेकिन रिसेप्शन पर मौजूद होटलकर्मी ने उन्हें सैन्य अधिकारी के कमरे में जाने से मना कर दिया। इस पर विवाद पैदा हो गया। पुलिस दल तुरंत मौके पर पहुंचा और समीर अहमद व युवती सहित सैन्य अधिकारी को हिरासत में ले लिया। पुलिस तीनों को थाने ले आई। पूछताछ और अन्य कानूनी कार्रवाई पूरा करने के बाद पुलिस ने सैन्य अधिकारी को उसकी यूनिट के हवाले कर दिया। मेजर गोगोई सादे कपड़ों में थे। समीर के बारे में कहा जाता है कि वह पेशे से चालक है। कुछ लोगों का कहना है कि वह सेना में कार्यरत है। मामले को तूल पकड़ते देख आइजीपी (कश्मीर रेंज) डॉ. स्वयं प्रकाश पाणि ने एसपी (नॉर्थ) श्रीनगर को जांच का जिम्मा सौंपा था।
जवानों के लिए ये हैं दिशा-निर्देश
दरअसल, सेना के जवान या फिर अधिकारियों के लिए सख्त दिशा-निर्देश हैं। इसके तहत कोई भी जवान अपने अधिकारी को बिना बताए कहीं भी और कभी भी नहीं जा सकता है। इसके अलावा जवान बिना सुरक्षा के भी कहीं नहीं जा सकते हैं। दरअसल, जम्मू कश्मीर समेत दूसरे ऐसे राज्य जो आतंकवाद की मार झेल रहे हैं और जहां पर आतंकी हमलों का सबसे अधिक अंदेशा होता है, वहां जवानों की सुरक्षा को लेकर इस तरह के नियम बनाए गए हैं। नियमानुसार जम्मू कश्मीर में तैनात जवान सिविलयन से खुलेआम भी नहीं मिल सकते हैं। उन्हें अपनी पहचान भी छिपानी होती है।

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