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के. परासरन: जिनका घर ही राम मंदिर ट्रस्ट का पता, जानें कब-कब बटोरी सुर्खियां

वकील समुदाय के पितामह कहे जाने वाले के. परासरन एक बार फिर सुर्खियों में आ गए है।

By Ayushi TyagiEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 09:33 AM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 09:33 AM (IST)
के. परासरन: जिनका घर ही राम मंदिर ट्रस्ट का पता, जानें कब-कब बटोरी सुर्खियां
के. परासरन: जिनका घर ही राम मंदिर ट्रस्ट का पता, जानें कब-कब बटोरी सुर्खियां

 नेशनल डेस्क, नई दिल्ली। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में जब यह कहा कि केंद्रीय कैबिनेट ने राम मंदिर ट्रस्ट के गठन को मंजूरी दे दी है तो लंबे समय से चला आ रहा इंतजार खत्म हो गया और इसी के साथ वकील समुदाय के पितामह कहे जाने वाले के. परासरन एक बार फिर सुर्खियों में आ गए। इस बार सुर्खियों में आने की वजह उनकी वकालत नहीं, बल्कि उन्हें ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट का पहला ट्रस्टी बनाया जाना है और साथ ही यह ट्रस्ट उनके घर के पते पर ही पंजीकृत किया गया है। 

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दो बार देश के अटॉर्नी जनरल रह चुके पद्म सम्मान विजेता (पद्म भूषण व पद्म विभूषण) 92 वर्ष के वरिष्ठ वकील के. परासरन बीते वर्ष अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सुर्खियों में थे तो इस वर्ष इस फैसले के बाद गठित किए गए ट्रस्ट की वजह से चर्चा में आ गए। उन्हें ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ ट्रस्ट का पहला ट्रस्टी बनाया जाना है और यह ट्रस्ट उनके घर के पते पर ही पंजीकृत किया गया है

राम जन्मभूमि मामले में सुनवाई के दौरान आए थे सुर्खियों में 

92 वर्षीय परासरन बीते वर्ष अयोध्या राम जन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सुर्खियों में थे। 2016 के बाद से कोर्ट में उनकी उपस्थिति भले ही कम रही थी, लेकिन दो बड़े मुकदमों ने उन्हें एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया था। पहला-सबरीमाला और दूसरा अयोध्या राम जन्मभूमि मामला।

इन दोनों मुकदमों के चलते दो बार देश के अटॉर्नी जनरल रह चुके परासन चेन्नई से दिल्ली वापस आए। हिंदू धर्मग्रंथों के जानकार परासरन सवरेत्कृष्ट सरकारी वकील हैं। 1970 के बाद से वह हर सरकार के विश्वसनीय रहे। अदालत में अक्सर हिंदू धर्मग्रंथों पर व्याख्यान देते हैं।

भारत में वकील समुदाय के पितामह 

इतना ही नहीं, अपने धर्म से समझौता किए बिना कानून में दिए गए इनके योगदान के लिए मद्रास के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय किशन कौल ने इन्हें भारत में वकील समुदाय का पितामह कहा था। सबरीमाला और अयोध्या राम जन्मभूमि मामले से पहले एक और केस में वह सुर्खियों में रहे। राम सेतु केस में जब दोनों विरोधी पार्टियां परासरन के पास पहुंचीं तो उन्होंने सरकार के खिलाफ जाकर, सेतुसमुद्रम परियोजना से सेतु की रक्षा करने का निर्णय लिया। 

जज ने पूछा सरकार का विरोध क्यों?

जब जजों ने परासरन से पूछा कि वह सरकार का विरोध क्यों कर रहे हैं तो उन्होंने स्कंद पुराण का जिक्र किया, जिसमें इस सेतु का वर्णन है।1927 में तमिलनाडु के श्रीरंगम में जन्मे के. परासरन के पिता केशव अयंगर वकील और वैदिक विद्वान थे। उन्होंने मद्रास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में वकालत की। परासरन के तीनों पुत्र मोहन, सतीश और बालाजी भी वकील हैं। मोहन परासरन संप्रग-2 सरकार में कुछ समय के लिए सॉलिसिटर जनरल रहे। अब परिवार की चौथी पीढ़ी ने भी इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए वकालत की दुनिया में कदम रखा है। 

1958 में शुरु की थी प्रैक्टिस

परासरन ने 1958 में सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की थी। बीती सदी के सातवें दशक में बड़े मामलों में परासरन का सामना अक्सर नानी पालकीवाला से होता था। आपातकाल के दौरान परासरन तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल थे। 1980 में देश के सॉलिसिटर जनरल नियुक्त किए गए। 1983 से 1989 तक देश के अटॉर्नी जनरल के रूप में काम किया। 1992 में जब मुंबई निवासी मिलन बनर्जी को अटॉर्नी जनरल नियुक्त किया गया, तब परासरन को ‘सुपर एजी’ के रूप में संदर्भित किया गया। 

बनर्जी को मध्यस्थता और वाणिज्यिक कानूनों में महारत हासिल थी, लेकिन संवैधानिक मामलों में सरकार के पास परासन ही सबसे अच्छा विकल्प रहे।सरकारें बदलीं, लेकिन परासरन की सराहना हमेशा की गई। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें संविधान के कामकाज की समीक्षा के साथ प्रारूपण और संपादकीय समिति के सदस्य के रूप में नियुक्त किया। वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। वहीं, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग-1 सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा और उन्हें संसद के उच्च सदन में मनोनीत किया।


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