जानें उन 13 नेताओं के बारे में जिन्होंने संभाली थी कांग्रेस की कमान, गांधी-नेहरू परिवार से नहीं था कोई रिश्ता
कांग्रेस अध्यक्ष पद पर रहे उन 13 नेताओं के बारे में जानिए जिनका गांध या नेहरू परिवार से कोई नाता नहीं था लेकिन फिर भी ये कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुने गए। इनमें से कई स्वतंत्रता सेनानी भी थे।
नई दिल्ली, जागरण डिजिटल डेस्क। कांग्रेस (Congress) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव राजनीतिक गलियारों में इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। एक तरफ जहां राहुल गांधी (Rahul Gandhi) अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं हैं, तो दूसरी तरफ सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की तबीयत ठीक नहीं है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि इस बार अध्यक्ष कोई गैर-कांग्रेसी होगा। हालांकि यह कोई पहली बार नहीं, बल्कि इससे पहले भी कई गैर कांग्रेसी नेता में पार्टी में अध्यक्ष के पद की भूमिका बखूबी निभा चुके हैं।
बता दें कि कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया 22 सितंबर से शुरू हो गई है। इसके लिए मतदान 17 अक्टूबर को होगा और 19 अक्टूबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे। सन् 1947 में देश के आजाद होने के बाद से कांग्रेस 48 साल तक केंद्र में सत्ता में रही। तब से लेकर अब तक कांग्रेस के अध्यक्षों की संख्या 18 रही है। इनमें से पांच गांधी परिवार से रहे और 13 अध्यक्षों का गांधी परिवार से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा।
मालूम हो कि पार्टी की स्थापना 1885 में हुई थी और तब से 87 नेता अध्यक्ष की भूमिका में रह चुके हैं । इनमें से 18 ने आजादी के बाद से पार्टी की कमान संभाली। जबकि अध्यक्ष के तौर पर 13 नेता भले ही गैर कांग्रेसी हो लेकिन इस सच को भी नकारा नहीं जा सकता है कि करीब 40 सालों तक पार्टी की कमान गांधी परिवार के हाथों में ही रही। आइये अब जरा नजर डालते हैं उन 13 नेताओं पर जो गांधी-नेहरू परिवार से न होते हुए भी कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए नियुक्त किए गए:-
जेबी कृपलानी- आचार्य जेबी कृपलानी (J. B. Kripalani) देश की आजादी के बाद पहले अध्यक्ष चुने गए। उन्हें मेरठ में कांग्रेस अधिवेशन में यह जिम्मेदारी सौंपी गई। वह 1948 तक अध्यक्ष पद पर बने रहे।
पट्टाभि सीतारमैया- आचार्य कृपलानी के बाद कांग्रेस के अध्यक्ष पट्टाभि सीतारमैया (Pattabhi Sitaramayya) नियुक्त किए गए। वह जयपुर अधिवेशन में पार्टी प्रमुख चुने गए थे। उनके पास भी यह जिम्मेदारी एक साल तक रही।
पुरुषोत्तम दास टंडन- 1949-50 तक कांग्रेस की कमान इन्हीं (Purushottam Das Tondon) के हाथों रही। उन्होंने हिंदी को आधिकारिक भाषा घोषित करने की मांग की थी।
यूएन ढेबर- ये (U. N. Dhebar) 1955-59 तक पूरे पांच साल अध्यक्ष पद पर बने रहे। अपने इस लंबे कार्यकाल के दौरान उन्होंने अमृतसर, इंदौर, गुवाहाटी और नागपुर अधिवेशनों की अध्यक्षता की।
नीलम संजीव रेड्डी- ढेबर के गैर गांधी-नेहरू परिवार से अध्यक्ष नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjiva Reddy) चुनी गईं। उन्होंने बेंगलुरु, भावनगर और पटना के अधिवेशनों की अध्यक्षता की। इसके साथ ही साथ वह 1977 से 1982 तक छठें राष्ट्रपति रहे।
के. कामराज- ये (K. Kamraj) 1964 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और 1967 तक इस पद पर रहे। उन्होंने भुवनेश्वर, दुर्गापुर और जयपुर के अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। पंडित नेहरू की मौत के बाद लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाने में इनकी अहम भूमिका रही थी।
एस. निजलिंगप्पा- सिद्धवनल्ली निजलिंगप्पा (Siddavanahalli Nijalingappa) ने 1968 से लेकर एक साल तक पार्टी अध्यक्ष का पद संभाला। उनका योगदान न केवल देश के स्वतंत्रता आंदोलन में था, बल्कि कर्नाटक एकीकरण आंदोलन में भी उनकी भूमिका अग्रणी थी।
बाबू जगजीवन राम- ये (Babu Jagjivan Ram) 1970 में कांग्रेस अध्यक्ष बने और एक साल तक इस पद पर रहे। इन्हें बाबूजी के नाम से भी जाना जाता था। वह देश के कद्दावर राजनेताओं में से एक रहे हैं 1971 में उनके रक्षा मंत्री रहते हुए ही भारत ने पाकिस्तान को मात दी थी।
शंकर दयाल शर्मा-1972-74 के बीच कांग्रेस राष्ट्री अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालने वाले शंकर दयाल शर्मा (Shankar Dayal Sharma) भारत के नौवें राष्ट्रपति भी थे। उनका नाम देश के स्वतंत्रता सेनानियों में भी शुमार है।
देवकांत बरुआ- ये (Dev Kant Barooah) 1975 से लेकर 1977 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। उन्होंने 'इंदिरा इज इंडिया' का नारा दिया था। वह आपातकाल के समय में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे। उन्हें गांधी परिवार का वफादार माना जाता था।
पीवी नरसिम्हा राव- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव (PV Narasimha Rao) को राजीव गांधी की हत्या के बाद अनिच्छुक होते ही पार्टी अध्यक्ष की भूमिका निभानी पड़ी। वह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे थे। इन्हें देश में कई आर्थिक सुधारों को लागू करने का श्रेय दिया जाता है।
सीताराम केसरी- ये (Sitaram Kesari) 1996-98 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। इन्होंने कोलकाता अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। केसरी एक कुशल राजनीतिज्ञ थे और राजनीति के दांव-पेंच से भलीभांति वाकिफ थे। इनके बाद से सोनिया गांधी 2017 तक अध्यक्ष रहीं।
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