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    कमजोर हो रहा है जंगल का राजा, शेरों की संख्या में लगातार हो रही कमी

    By Dhyanendra SinghEdited By:
    Updated: Mon, 01 Apr 2019 11:36 AM (IST)

    जंगल का राजा कहे जाने वाले शेर की संख्या में कमी देखी जा रही है। भारत में सबसे ज्यादा शेर गुजरात राज्य में हैं। गुजरात में भी अन्य जगहों के मुकाबले शे ...और पढ़ें

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    कमजोर हो रहा है जंगल का राजा, शेरों की संख्या में लगातार हो रही कमी

    नई दिल्ली, जागरण स्पेशल। शेर की जंगल के राजा की पदवी आज भी बरकरार है, उसकी एक दहाड़ बड़े और खतरनाक जानवरों की घिग्घी बांधने को काफी है। लेकिन इस दहाड़ में छिपा दर्द दुनिया को सुनाई नहीं दे रहा है। शेर (पैंथेरा लियो) अब कमजोर हो चला है। सौ साल पहले इस प्रजाति के पूर्वज जितने ताकतवर और सामथ्र्यवान थे, आज उनकी पीढ़ी वैसी नहीं रही। जूओलॉजिकल सोसायटी आफ लंदन के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक व्यापक अध्ययन के अनुसार लगातार होते शेरों के शिकार ने उन्हें जेनेटिक रूप से कमजोर कर दिया है। इन नतीजों ने शेरों के अस्तित्व के संकट को गहरा दिया है। शेरों की यह प्रजाति भारत के पश्चिमी घाटों पर विलुप्ति के कगार पर है।

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    ऐसे हुआ अध्ययन :

    ‘ए सेंचुरी ऑफ डेक्लाइन: लॉस ऑफ जेनेटिक डायवर्सिटी इन ए सदर्न अफ्रीकन लायन-कंजरवेशन स्ट्रांगहोल्ड’ नामक शोध के तहत कुछ समय के अंतराल पर शेरों की जेनेटिक विविधता में आए बदलाव को पता किया गया। निष्कर्ष यह निकला कि एक सदी के दौरान अफ्रीका में लगातार शेरों के शिकार ने उनकी शारीरिक ताकत और क्षमता को कमजोर कर दिया है। इस अध्ययन में जीव विशेषज्ञों ने अफ्रीका के कवांगो-जांबेजी क्षेत्र के आधुनिक और सौ साल पुराने शेरों पर अध्ययन किया। इस क्षेत्र के पुराने शेरों के डीएनए नमूने नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम से एकत्र किए गए, जहां 1879 से 1935 के बीच शिकार किए गए इन शेरों के अवशेष संरक्षित हैं।

     चौंकाने वाले नतीजे

    इस इलाके के आधुनिक और सौ साल पुराने शेरों के डीएनए का तुलनात्मक अध्ययन हुआ। आधुनिक शेरों की जेनेटिक विविधता सौ साल पहले के उनके पूर्वजों से 15 फीसद कम निकली। इसका मतलब यह हुआ कि अगर किसी जीव की जेनेनिक विविधता ज्यादा है तो उसके पास व्यापक स्तर पर विविध प्रकार के जींस होते हैं। कम विविधता वाले जीव के पास ऐसा नहीं होता है। इसीलिए कम विविधता वाला जीव पर्यावरणीय बदलाव, बीमारियों और खतरों से निपटने में कम सक्षम होता है। यही चिंता का बड़ा मसला है कि शिकार के अलावा अब ये प्रकृति के बिगड़े रूप से खुद को बचाने में अक्षम हैं।

    औपनिवेशिक काल से शुरुआत

    विशेषज्ञों का आकलन है कि शेरों की संख्या में कमी 19वीं सदी में ही शुरू हो गयी थी जब यूरोप से लोग अफ्रीका पहुंचे। अंग्रेज शिकारियों ने बहुत तेजी से शेरों का शिकार करना शुरू कर दिया।

    कवांगो-जांबेजी क्षेत्र

    ब्रिटेन के आकार का यह क्षेत्र शेरों का प्राकृतिक आवास है। यह संरक्षित क्षेत्र अफ्रीका के बोत्सवाना, नामीबिया, जांबिया और जिंबावे के हिस्सों में फैला है। यह अफ्रीका का वह सबसे बड़ा क्षेत्र है जहां शेर बिना किसी दिक्कत के रह सकते हैं। 19वीं सदी के आखिरी दशकों में पैंथेरा लियो प्रजाति के दो लाख शेर यहां हुआ करते थे, अंधाधुंध शिकार ने इनकी संख्या घटाकर बीस हजार कर दी है।

    'जेनेटिक विविधता में कमी का सीधा और सरल सा मतलब है कि आज के शेर बीमारियों और सूखे व लू जैसी पर्यावरण संबंधी दिक्कतों से खुद को बचाने में बेबस हैं।' 

    - सीमोन ड्युरेस, प्रमुख शोधकर्ता