इस खिलाड़ी ने सुलभ शौचालय में काटे जिंदगी के 12 साल, अब मिला सरकार से सम्मान
इंदौर से दो को विक्रम, पांच को एकलव्य और एक को विश्वामित्र पुरस्कार मिला। 20 साल की जूही चौथी कक्षा में थी तब से हैप्पी वॉण्डरर्स में खो-खो खेलती हैं।
इंदौर, नई दुनिया। सुलभ शौचालय के पास से जब भी कोई निकलता है तो दुर्गंध के चलते नाक पर रुमाल आ ही जाता है। सोचिए, यदि यहीं पर रहना पड़े तो क्या हाल होगा। मध्य प्रदेश में इंदौर के एक सुलभ शौचालय में 12 साल रहकर खो-खो खिलाड़ी जूही झा ने मध्य प्रदेश सरकार द्वारा खेल के क्षेत्र में दिया जाने वाला प्रतिष्ठित विक्रम पुरस्कार हासिल किया। उपलब्धि इसलिए भी विशेष हो जाती है कि इस वर्ष यह सम्मान पाने वाली जूही शहर की एकमात्र महिला खिलाड़ी हैं। मंगलवार को खेल अलंकरणों की घोषणा हुई।
इंदौर से दो को विक्रम, पांच को एकलव्य और एक को विश्वामित्र पुरस्कार मिला। 20 साल की जूही चौथी कक्षा में थी तब से हैप्पी वॉण्डरर्स में खो-खो खेलती हैं। पिता सुबोध कुमार झा की नौकरी नगर निगम के समीप गंजी कंपाउंड में सुलभ शौचालय में थी। इसी शौचालय के भीतर एक कमरा भी था, जिसमें उनका पांच लोगों का परिवार रहता था।
जूही ने बताया, 'हम करीब 12 साल यहीं रहे। पिता को 6-7 हजार की कमाई होती थी जिससे घर चलता था। बहुत बुरा वक्त था, लेकिन मैंने खेलना नहीं छो़ड़। फिर तीन साल पहले पिता की यह नौकरी भी चली गई और घर भी..।' जूही आगे बताती हैं, 'इस घर से बहुत यादें जुड़ी हैं। अब परिवार बाणगंगा में किराये के घर में रहता है। मां रानी सिलाई करती हैं और मेरी एक स्कूल में नौकरी लगने से कुछ मदद हो जाती है। खुशी है कि अब मेरी सरकारी नौकरी लगने से परिवार को मदद मिलेगी। मैं बीकॉम अंतिम वर्ष में हूं और आगे भी पढ़ना चाहती हूं।' इस दौरान हैप्पी वॉण्डरर्स से मिली मदद के लिए वह सभी को धन्यवाद देना नहीं भूली।
कभी चाइनीज का ठेला लगाने वाले भीम बने 'विक्रम'
25 साल के पावर लिफ्टर भीम सोनकर विक्रम अवॉर्ड पाने वाले शहर के दूसरे खिलाड़ी बने। 402.5 किग्रा वजन उठाकर रिकॉर्ड बनाने वाले भीम ने बताया- मैं 16 साल की उम्र से इस खेल से जुड़ा हूं। मेरी मां और बहन के निधन के कारण बीच में खेल से दूर हो गया था, लेकिन मां की इच्छा पूरी करने फिर वजन उठाना शुरू किया। पिता रमेशचंद्र सोनकर मालवा मिल से रिटायर हो चुके हैं और आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रही। भाई के साथ चाइनीज का ठेला भी लगाया। किराने की दुकान चलाने वाले बड़े भाई धर्मेंद्र ने सपना पूरा करने में मदद की। मैंने एशियन चैंपियनशिप में कांस्य जीता तो विश्व चैंपियनशिप के लिए चयन हुआ। मगर भाग लेने के लिए ढाई लाख रपए नहीं थे, इसलिए नहीं जा सका। मैंने कभी मुश्किलों से हिम्मत नहीं हारी और इसलिए अब सम्मान जीत सका हूं।